Atul Kumar Agarwal : हरियाणा के लोगो से निवेदन है की इन लड़कियों से सावधान रहें… ये मर्दानी नहीं बल्कि निर्लज्जा हैं… किसी भी लड़के से भीड़ में बहस करना और फिर उस पर हाथ उठाना इनका पेशा है। जिन तीन सेना के लड़कों पर इन्होंने हाथ उठाया, उनमें से एक ही काफी था इन दोनों निर्लज्ज लड़कियो के लिए… लेकिन फिर भी उन तीनों ने इन अबला लड़कियों पर हाथ न उठाकर इनका सम्मान किया और इन्होंने उनके ऊपर झूठे आरोप लगाये जबकि उसी बस की एक बुजुर्ग महिला ने बयान दिया की इन लड़कियों ने ही झगड़ा शुरू किया था, कोई छेड़छाड़ नहीं हुयी… इन लड़कियो ने पहले भी एक लड़के पर हमला किया था और उसकी वीडियो बनायी थी… मतलब ये लड़कियां हमेशा कैमरा साथ लेकर चलती हैं… और वीडियो बनाकर लोगों को ब्लैकमेल करती हैं… कुलदीप, दीपक और मोहित का चयन भारतीय सेना में हुआ था. कुलदीप 5 बहनों का इकलौता भाई है… दीपक के माँ बाप अक्सर बीमार रहते हैं…और मोहित बहुत ही गरीब माँ बाप का बेटा है… इन लड़कों का सेना में चयन इनके माँ बाप के लिए किसी वरदान से कम न था. लेकिन इन दो निर्लज्ज लड़कियों ने अपनी कुटिल चाल से सबकी ज़िन्दगी तबाह कर दी…. आज जरूरत है ऐसी तथाकथित मर्दानियों को सबक सिखाने की… जब लोमड़ी शेर को बार बार ललकारे तो शेर को भी एकदहाड़ मार ही देनी चाहिए… जागिये…कहीं अगला शिकार आप न हों … इनसे बचकर रहें… सीता को सम्मान दें और सूर्पनखा की नाक काट दें…
Drigraj Madheshia : रोहतक की बहादुर बहनों ने मीडिया की बहुत भद पिटवाई। सोशल मीडिया ने विशेषकर न्यूज चैनलों को कटघरे में खड़ा किया। इनका हक भी बनता है। स्ट्रींगरों का अति उत्साह और वरिष्ठों को टीआरपी का भूत, खबर की ठीक से पड़ताल भी करने नहीं देता। विजुअल आया नहीं कि इनपुट से आवाज आती है कि सर क्या कमाल का वीडियो है। छेड़खानी करने वाले लड़कों को लड़कियां भरी बस में पीट रही हैं। इससे पहले दूसरा चैनल खबर पर खेले वरिष्ठ शुरू हो गए। तान दो, पूरे दिन खेलो। मर्दानी का फुटेज निकालो। दोनों को साथ-साथ विंडों में दिखाओ। दर्शकों की राय लो। रिपोर्टर को फोन लाइन पर लो। पैनलिस्ट बुलाओ, चर्चा कराओ। मिनट भर में इतने सारे निर्देश। कोई ये भी नहीं जानना चाहा कि मामला क्या है। पड़ताल नहीं की। खबर पर खेलने के चक्कर में खबर से खेलने की फिल्डिंग सज गई। हमारे ग्रुप एडीटर कहते हैं कि खबरों को प्याज की तरह छिलो। एक-एक परत उतरेगी तो खबर और खिलेगी। अखबारों में अभी गनीमत है लेकिन न्यूज चैनलों में ट्रेंड बिगड़ा हुआ है। रिपोर्टर सोचता है कि खबर की पड़ताल करने के चक्कर में कहीं नौकरी न चली जाय। डेस्क पर बैठे लोगों की दुश्वारियां भी कम नहीं है। अगर खबर कुछ सेकेंड की देरी से भी ब्रेक होने से रह गई तो सरेआम नंगा होना तय है। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की खबरों की तफ्तीश करने की क्षमता को टीआरपी ने कुंद कर दिया है। ठीक वैसे ही जैसे धरती के भगवान कहे जाने वाले डॉक्टरों की बीमारी पकड़ने की क्षमता। विभिन्न तरह की जांचों की मशीनें क्या आईं डॉक्टर पूरी तरह इनपर ही निर्भर हो गए। बुखार की शिकायत लेकर जाइए तो डेंगू, मलेरिया, टायफाइड सबकी जांच कराने के बाद रिपोर्ट नार्मल आई तो वायरल फीवर का इलाज करेगा। सिर में दर्द भले ही कब्ज की वजह से हो लेकिन एमआरआई जरूर कराएगा। छीक आ गई तो स्वाइन फ्लू है, सीने में दर्द हुआ तो एंजियोप्लास्टी कराओ। अजीब है यह खौफ का कारोबार। डॉक्टरों की भी मजबूरी है। एक करोड़ खर्च करके एमबीबीएस की डिग्री ली तो पैसे का रिटर्न कैसे मिले। प्राइवेट मेडिकल कालेज में नौकरी कर रहा है तो मालिक का डंडा। मरीज की जेब से 50 हजार से कम नहीं निकलनी चाहिए। बीमारी चाहे कोई भी हो। टारगेट फिक्स है। एमआरआई मशीन का खर्च निकालना है। प्रतिदिन 50 एमआरआई होनी चाहिए। डॉक्टर बेचारा क्या करे। लिखो भाई कौन सा अपनी जेब से जा रहा है।
अतुल कुमार अग्रवाल और दृगराज मद्धेशिया के फेसबुक वॉल से.
santosh singh
December 8, 2014 at 3:02 pm
bat to sahi hai