सरकारी गुणा-गणित के मुताबिक़, भारत के गाँव और शहर में रहने वाला व्यक्ति अगर 30 व 40 रुपये रोज़ कमाता है तो वो गरीब नहीं है। अब इस तीस और चालीस रुपये का हिसाब देख लें। दाल 80 रुपये, आटा 30 रुपये, टमाटर 90, चावल 30, प्याज 70, आलू 30, दूध 40 रुपये और इन सबको आम आदमी तक पहुंचाने वाला डीज़ल-पेट्रोल-गैस अपने-अपने हिसाब से। 30-40 वाला नंगा, नहाये क्या और निचोड़े क्या? दूसरी तरफ अपनी दौलत में बेतहाशा इज़ाफ़ा, हर-साल, करने वाले अम्बानी-अडानी सहित दुसरे रईस लोग फिर से सरकारी मेहमान हैं। यानि मनमोहन सिंह, मोदी नाम के नए अवतार में आम आदमी के पेट पर लात मारते रहेंगें।
पिछले 10 सालों से कांग्रेस के “अत्याचार” को जारी रखने का बीड़ा, अब नरेंद्र मोदी ने अपने कन्धों पर उठा लिया है। मोदी ने बहुत झूठ बोला। सफ़ेद झूठ। नरेंद्र मोदी की रैलियों को कवर करने व् उनका गुणगान कर उन्हें महान “योगी” बताने वाले “महान” वेतन “भोगी” पत्रकारों और मीडिया मालिकों को भले ,परदे के पीछे, बहुत कुछ मिला हो और मोदी की अंधभक्ति में लगे रहे लोगों ने भले मोदी को “भगवान” मान लिया हो। मगर आज ये सब शर्मसार हैं।
हालांकि 60 दिन बाद भी झूठी दुहाई बाकी है। ये वही लोग हैं, जो महज़ 15 दिनों में अरविन्द केजरीवाल से हिसाब मांग रहे थे, गरिया रहे थे। काल्पनिक “मोदी फैन क्लब” के अरूण पुरी का “आज-तक”, शर्माजी और भाजपा के चहेते दीपक चौरसिया का “इंडिया न्यूज़”, भाजपा के “मुखपत्र” के रूप में कुख्यात (माफ़ कीजियेगा-विख्यात) हो चुका “इंडिया टी.वी.”, मोदी के प्रिय मुकेश अम्बानी के “आईबीएन” सहित भाजपा की विचारधारा से प्रभावित “एबीपी न्यूज़” और अन्य छुटभैय्ये अनगिनत मीडिया के नाम हैं जिन्हें इस बात का पुरज़ोर खंडन करना चाहिए कि मोदी की झूठी वाह-वाही गलत थी और है। मगर कहाँ है इस बात की गवाही? ना तो मोदी के झूठे वायदों का टेप चलता है और ना ही उस वर्तमान महंगाई का खौफ़नाक ज़िक्र होता है, जो नरेंद्र मोदी अपनी भूत-काल की रैलियों में किया करते थे।
नरेंद्र मोदी को क़रीब से जानने वाले जानते हैं कि नरेंद्र मोदी की विचारधारा पूंजीवाद के इर्द-गिर्द घूमती है। मोदी का मानना है कि आम आदमी की मेहनत और पसीने से नहीं, बल्कि अम्बानी- अडानी की जेब से हिन्दुस्तान चलता है और तरक्की कर सकता है। जिस देश का शासक, गरीब को 2 जून की रोटी भी क़ायदे से मुहैया ना करा पाये, छत (बढ़ती महंगाई और 40- 50 रुपये की डेली आमदनी से पेट भी नहीं भर सकता, छत कहाँ से खरीदेगा) और रोज़गार ना दे पाये, वो गरीब-विरोधी नहीं तो और क्या है? मीडिया को लालच और धौंस दिखा कर अपने साथ कर लेना और खुद को हीरो मनवा देना, कोई नैतिकता की श्रेणी में नहीं आता।
नरेंद्र मोदी जानते थे कि महंगाई को वो कम नहीं करेंगें और न ही भ्रष्टाचारी जेल में होंगें, पर रैली दर-रैली उन्होंने झूठ बोला। यूपीए सरकार को पानी पी-पी कोसा। खूब भ्रष्टाचार और महंगाई विरोधी डायलॉग बोलकर तालियां बजवाईं। जब खुद प्रधानमंत्री की कुर्सी मिल गयी तो नक़ाब उतार कर मनमोहन सिंह की शक्ल का दर्शन करा बैठे। जिस देश में भ्रष्टाचार के ज़रिये अरब-पति, ख़रब-पति बनने का सिलसिला पुराना हो, मोदी उस देश में कोई नयी परम्परा नहीं शुरू करने जा रहे। सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा की छीछालेदर करने के लिए चुनाव के वक़्त भाजपा ने “दामादश्री” नाम की सीडी सरेआम दिखाई थी। पर तजुर्बेदार जानते हैं कि मोदी-राज में ऐसा कोई बड़ा-नाम, सलाखों के पीछे नहीं होगा। कैग की हालिया रिपोर्ट में, हिन्दुस्तान के तथकथित “ठेकेदार” अम्बानी-अडानी के “गुजराती मॉडल” की कमाई का बखान है। पर कोई कार्यवाही नहीं होगी। आने वाले दिनों में, ठेकेदारी प्रथा का परचम लहराएगा, मोदी के हिन्दुस्तानी “ठेकेदारों” की संख्यां में खूब इज़ाफ़ा होगा और ये अमीर भी बड़ी तेज़ी से होंगे। उधर महंगाई और भ्रष्टाचार जम कर अपना-अपना खेल खेलेंगे। मनमोहन सिंह बार-बार याद आयेंगें। आम-आदमी की दुर्गति अभी और बाकी है।
हिन्दुस्तान की पुरानी तासीर है, “भ्रष्ट व्यवस्था से गलबहियां और पैसों का आतंक, क़ामयाबी का शॉर्ट-कट रास्ता है।” बहुत कम समय में बहुत ज़्यादा रईस बन चुके अम्बानी-अडानी जैसे लोग जानते है कि ये बड़ा कामयाब नुस्खा है। किसे मालूम था कि गरीबों की रहनुमाई का दम्भ भरने वाले गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी, भारत का प्रधानमंत्री बनने के बाद इन रईसों से गलबहियां कर आम-आदमी को भूखे पेट खूब रुलायेंगें। प्रत्यक्षम् किम प्रमाणं।
नीरज…..लीक से हटकर। [email protected]