Awadhesh Kumar : मेरठ कांड का एक पक्ष और…. मेरठ के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी कह रहे हैं कि लड़की मदरसे में एक साल से पढ़ाती थी। इस दौरान उसका वहां के लोगों से अच्छा सम्पर्क हुआ। उसे लगातार समझाया गया कि आप मुसलमान बन जाओगी तो आपको काफी रुपया मिलेगा और आप संपन्न हो जाओगी। एक सामान्य परिवार की लड़की इसके प्रभाव में आ गई। इसके बाद वह मुसलमान बनी। अगर पुलिस अधिकारी की बात मान लें तो जबरन धर्म परिवर्तन का आरोप गलत साबित हो जाता है। हालाकि अभी हम किसी भी बात को अंतिम नहीं मान सकते हैं, लेकिन लालच से धर्म परिवर्तन कराना भी अपराध है। अगर एक के साथ हुआ है तो दूसरों के साथ भी होता होगा। आरोपी परिवार हर आरोप से इन्कार कर रहे हैं। लेकिन अगर उसका धर्म परिवर्तन हुआ है तो उसमें किसकी भूमिका थी? क्यों धर्म परिवर्तन के लिए प्रेरित किया गया? कहां से धन देने का लालच दिया गया? अगर उसने लालच में धर्म परिवर्तन किया तो उसका औपरेशन क्यों हुआ? उसने विद्रोह क्यों किया है? इन सबका उत्तर तलाशना होगा। अभी तक लड़की के बलात्कार की पुष्टि नहीं हुई है। पुनः मेडिकल होना है। औपरेशन क्यों हुआ यह भी अभी स्पष्ट नहीं हुआ है। उसकी भी जांच होनी शेष है।
मेरठ कांड में पीड़ित लड़की के माध्यम से अभी तक जो कुछ सामने आया है उससे सिहरन पैदा हो जाती है। हम चाहते हैं कि इसकी जांच सीबीआई करे और तुरत मामले को उसे सौंपा जाए। लड़की के बयान को देखें तो इसमें एक साथ पांच भयानक अपराध है। एक, लड़की का अपहरण, दुष्कर्म की पुष्टि होनी शेष है। दो, उसका जबरन धर्मातरण। तीन, मानव तस्करी खासकर लड़कियों को अरब देशों में ले जाकर बेचा जाना। 4, उसके लिए लड़की का जबरन ऑपरेशन करना। आरोप है कि गर्भाशय की फेलोपियन ट्यूब निकाल दिया गया है। एवं 5, इन सबमें स्थानीय मदरसे और मुजफ्फरनगर के किसी अस्पताल की संलग्नता। यह स्थिति कल्पना से परे है कि कानून में राज में ऐसा भी हो सकता है। कुछ लोग लड़की के बयान पर प्रश्न उठा रहे हैं। हालांकि उसकी कुछ बातों की कड़ियां नहीं मिलती हैं। पर यह घबराहट का भी परिणाम हो सकता है। हो सकता है वह प्रेमजाल में फंसकर निकली होगी और उसके बाद उसके साथ ऐसा हुआ होगा। उसे तो यहां तक पता नहीं कि उसका ऑपरेशन कहां और किस अस्पताल में हुआ। लेकिन ऑपरेशन तो हुआ है। अभी इस प्रश्न का उत्तर मिलना मुश्किल है कि आखिर लड़की इतनी सारी झूठी बातें क्यों करेगी? पहले आशंका व्यक्त की गई थी कि उसकी किडनी निकाली गई है। किडनी ठीक होने का अर्थ उसका झूठी होना नहीं हो सकता। क्योंकि वह डॉक्टर या मेडिकल की छात्रा नहीं थी। आखिर उसका ऑपरेशन हुआ है। युवती के पेट में दो सेमी चौड़ा और सात सेमी लंबा आपरेशन का निशान है। कहा जा रहा है कि मुजफ्फरनगर के किसी अस्पताल में युवती के गर्भाशय से फेलोपियन ट्यूब निकाली गई, जिससे उसका भविष्य में मां बनना भी बड़ा मुश्किल है। अभी इसकी पुष्टि होनी शेष है। लेकिन केन्द्र सरकार ने जिस तरह राज्य का विषय मानकर पल्ला झाड़ा है वह शर्मनाक है। केन्द्रीय संसदीय कार्यमंत्री वेंकैया नायडू ने कहा कि कानून और व्यवस्था राज्य का विषय है। यह बयान किसी भी संवेदनशील व्यक्ति को तिलमिला देगा। लड़की का बयान है कि उसकी जैसी वहां 30 40 हिन्दू लड़कियां और हैं जो अलग-अलग जगहों से लाई गईं हैं। लड़कियों की विदेशों में बिक्री का पहलू आते ही यह राज्य के विषय से बाहर चला जाता है। उ. प्र. एवं अन्य राज्यों से लड़कियों को उठाकर उनकी बिक्री होती है यह छिपा तथ्य नहीं है। अरब के शेखों के लिए लड़कियां भेजी जातीं होंगी। वास्तव में जिस ढंग का सांप्रदायिक तनाव पश्चिम उत्तर प्रदेश में बना हुआ है उसके मद्दे नजर इस घटना के सामने आते ही राज्य सरकार को वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का एक विशेष जांच दल बनाकर उसे जांच सौंप देना चाहिए था। लगातार छापेमारी से कुछ सच सामने आ सकता था। लेकिन इसे एक सामान्य घटना मानकर सरकार एवं पुलिस प्रशासन ने व्यवहार किया है। तीन लोग गिरफ्तार किए गए हैं, लेकिन इसमें धर्म परिवर्तन एवं लड़कियों के विदेश में बिक्री का मामला होने के कारण यह राज्य तक सीमित मामला नहीं है। देश सच जानना चाहता है। केन्द्रीय गृहमंत्री को अपने खोह से बाहर निकलकर अपनी एवं अपनी सरकार की सम्मान रक्षा के लिए कदम उठाना चाहिए। राज्य सरकार का विषय जैसा पिलपिला बयान तथा मौन से जनता का आक्रोश बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार की छवि खराब हो रही है। (वरिष्ठ पत्रकार अवधेश कुमार के फेसबुक वॉल से)
Ashutosh Kumar : रेप तो रेप है , चाहे किसी मदरसे में हो, स्कूल में हो या पाठशाला में हो. घर में हो या हस्पताल में हो या थाने में हो. रेपिस्ट हिन्दू हो, मुसलमान हो या ईसाई हो. लेकिन पहली बार मेरठ में ऐसा हो रहा है कि रेप के विरोध को साम्प्रदायिक उन्माद का रूप दिया जा रहा है. आखिर भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष मुजफ्फरनगर दंगों के नम्बर एक आरोपी संगीत सोम के साथ पीडिता से क्यों मिलना चाहते हैं? शहर से से गाँव तक दंगे का माहौल क्यों बनाया जा रहा है? शायद ही किसी मामले में पुलिस ने इतनी जल्दी कार्रवाई की हो! पीडिता के बयान के साथ ही चार में से तीन एफआईआरशुदा आरोपी जेल में है . चौथे की तलाश और मामले की जांच मुस्तैदी के साथ हो रही है. अखबारी रपटों, चैनलिया खबरों, साइबर अफवाहों में जो तमाम तरह के अन्तर्विरोध और उलझने हैं, उन्हें छोड़कर हमें पीड़िता के बयान पर ध्यान देना चाहिए. उसके बयान से प्रथम दृष्टया यह गैंगरेप और मानव तस्करी का मामला जान पड़ता है. ये दोनों मामले अत्यंत गम्भीर हैं. इनकी अविलम्ब मुकम्मल जांच होनी चाहिए. यह दो चार लोगों का काम नहीं हो सकता. इसमें सरकारी-गैरसरकारी बहुत से लोग शामिल होंगे. उस समूचे गैंग का भंडाफोड़ होना चाहिए. उनमें से हरेक को ताउम्र जेल में सड़ना चाहिए. (मृत्यु दंड के विरोधी होने के कारण हम फांसी की मांग नहीं करते ) बीजेपी मामले के खुलासे और जांच से ज़्यादा इस पूरे इलाके को साम्प्रदायिक तनाव और संघर्ष में गर्क कर देने पर आमदा दिखती है. अफवाहबाजी, व्हाट्सऐपबाजी और खुफिया बैठकों का दौर जारी है. अगर मेरठ में मुजफ्फरनगर और सहारनपुर का दुहराव नहीं हुआ तो इसके लिए जिला प्रशासन और पुलिस कमान की पीठ जरूर ठोंकी जानी चाहिए. आईजीपी अमरेन्द्र सेंगर ने तवरित निर्णय, प्रभावी कारवाई और दूरदर्शी सोच का परिचय दिया है. (दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आशुतोष कुमार के फेसबुक वॉल से)
Sharad Shrivastav : मेरठ कांड पर लोग बलात्कार को लेकर नाराज नहीं हैं, उनका गुस्सा भड़का है धर्म परिवर्तन को लेकर। बलात्कार पर इनका पौरुष जागना होता तो बदायूं पर जागता, लखनऊ पर जागा होता। इन लोगों की ईगो हर्ट हो गयी है। बलात्कार को लेकर कोई अफसोस नहीं है, अफसोस किसी और बात से है। अभी बहन बेटी सब याद आ रही है, आगे फिर वही पुरानी कहानी हो जाएगी। लखनऊ में हुए निर्भया रेप केस की खबरें अब मिलनी मुश्किल हैं। हालांकि सीबीआई जांच का ऐलान हो चुका है, लेकिन अब उससे क्या हासिल हो पाएगा कहना मुश्किल है। लखनऊ से छपने वाले हर बड़े अखबार मे अखिलेश सरकार 4 पेज का कलर विज्ञापन आ चुका है। पत्रकारों को सरकारी आवास और न जाने कितनी सरकारी सुविधाएं मिलने लगी है ( ये सुविधाएं निर्भया कांड से पहले की बात है )। अब आपको मीडिया से ज्यादा उम्मीद नहीं रखनी चाहिए की वो यूपी की सही तस्वीर आपके सामने रखेंगे। (मार्केटिंग मैनेजर शरद श्रीवास्तव के फेसबुक वॉल से.)
Mayank Saxena : क्या अभी तक आप में से किसी ने मेरठ मामले को लेकर एक भी संतुलित या सटीक ख़बर सुनी…हर अख़बार में जो ख़बर अलग तरह से छप रही है…और उस पर जिस तरह से असंतुलित और असावधान कवरेज हो रही है…मीडिया सियासत को पूरा सहयोग दे रही है दंगे भड़़काने में…और ये सारे बवाल उन्ही इलाकों में क्यों हो रहे हैं, जहां पर उपचुनाव हैं… अब ज़िम्मा आप लोगों पर है कि आप सियासी साज़िशों में फंसते हैं या कम से कम जल्दबाज़ी में आ कर साम्प्रदायिक दंगों को भड़कने से रोकने की अपनी कोशिश करते हैं या नहीं…बाकी आप समझदार हैं… (पत्रकार मयंक सक्सेना के फेसबुक वॉल से)
सिकंदर हयात
August 6, 2014 at 6:16 am
मेने बहुत पहले ही भाप लिया था की अरब देशो से आने वाले धन के प्रभाव से- और पूंजीवादी और आधुनिकता के पीस डालने वाले दबावों के मुस्लिम समाज में जगह जगह छोटे बड़े ” जाकिर नाइक ” जेंट्स ही नहीं लेडिस भी पैदा हो रहे हे इनका लोगो को धर्मांतरण का आग्रह मेने खुद देखा हे इन्हे किसी बात में कोई दिलचस्पी नहीं हे मुसलमानो की – शिक्षा सवास्थय रोज़गार- हाल हालात- भारत का सविधान सेकुलरिज़म चुनावी राज़नीति किसी चीज़ की न समझ हे न दिलचस्पी सिवाय धर्मान्तरण के वैसे सच हे की ये जो अरब देशो से पैसा आता हे इसका वैसे तो वाही हश्र होता हे जो सरकारी योज़नाओ के पैसे का – काफी सारा जाती जरूरियात में खर्च हो जाता होगा लेकिन जाहिर हे जब आप किसी से कोई पैसा लेते हे तो कुछ तो कुछ तो रिज़्लट दिखाना होता ही हे नतीजा सामने हे —
सिकंदर हयात
August 6, 2014 at 6:25 am
अफ़सोस की अधिकांश बड़े बड़े नाम निहाद सेकुलर मुस्लिम बुद्धिजीवी इन विषयो पर न कुछ लिखते न कुछ बोलते और ना आम मुस्लिम को कोई आगाह करते हे ये सिर्फ अलपसंख्यक कोटे की मलाई खाते हे इनमे से अधिकांश आम मुस्लिम बहुल इलाको में रहते भी नहीं आये हे ये पॉश या सेमी पॉश इलाको में रहते हे गैर मुस्लिमो के बीच बैठ कर सेकुलरिज़म की लम्बी लम्बी हांकते हे और मुस्लिम कटटरपन्तियो के सामने इनका मुह नहीं खुलता आम पढ़े लिखे मुस्लिम पर भी इनका कोई प्रभाव नहीं हे नतीजा कन्फ्यूज़न ही कन्फ्यूज़न और इसकी पूरी फसल काटने को भाजपा संघ तैयार बैठे हे आधी तो लोकसभा में काट ही चुके हे अब राज्यों की फसल की बरी लग रही हे बहुत अफ़सोस