संजय झा-
‘Meet joe black’ मृत्यु जैसे संवेदनशील विषय पर बनी फिल्म है जो जीवन को लेकर एक अलग दृष्टिकोण देती है। फ़िल्म की कहानी का मुख्य किरदार कोई आम इंसान नहीं, बल्कि ‘मृत्यु’ है। मृत्यु अपनी दिनचर्या से भयंकर रूप से ऊबकर कुछ रोमांचक करने की चाह में धरती पर मानव जीवन बिताने आता है।
यहां वह एक मीडिया टायकून बिल पेरिस को चुनता है और कुछ शर्तों के साथ उसके घर रहने लगता है। इस बीच उसे बिल की बेटी सुजन से प्रेम हो जाता है। बिल और सुजन के साथ रहते वह जीवन के उन अनुभवों से गुजरता है, जिससे वह अब तक अनजान था। स्वाद, गंध, प्रेम, स्नेह, रिश्ता, परिवार की अनुभूतियों को महसूस करता है। तब उसे मालूम होता है कि लोग, मरते दम तक जीवन से इतना लगाव क्यों रखते हैं। क्यों कोई मरना नहीं चाहता।
खुद जब मृत्यु के किरदार के जाने का समय आता है, वह उदास हो जाता है। वह इस दुनिया से जाना नहीं चाहता। सुजन के साथ जीवन बिताना चाहता है। लेकिन वह जानता है कि जहां वह है, वह उसका ठिकाना नहीं है। प्रेम करना उसका उद्देश्य नहीं है। और फिर वह बिल के साथ कहीं अनंत आकाश की ऊंचाईयों में चला जाता है।
यह फिल्म वास्तव में महसूस कराती है कि आप लंबे समय तक किसी भी चीज के साथ बंधे नहीं रह सकते हैं। एक न एक दिन सबको खत्म होना है। मरना है। यदि आप भाग्यशाली हैं तो मृत्यु के दौरान आपके पास कुछ अच्छी यादें हो सकती हैं लेकिन बहुतों के पास यह विशेषाधिकार भी नहीं है।
फ़िल्म की शुरुआत में एंथनी होपकिंग्स कहते हैं कि जीवन वास्तव में बहुत तेजी से गुजर रहा है। और इस जीवन का कोई अर्थ नहीं जिसमें प्रेम न हो। इसलिए प्रेम करो। पूरी शिद्दत से करो। यदि सच्चा न मिला हो तो उसके लिए जतन करो। यदि आपने प्रेम पाने के लिए कोशिश ही नहीं की तो शायद आपने जीवन जिया ही नहीं।
फ़िल्म के 25 साल पूरे हो चुके हैं। तीसरी बार देखने के बाद भी ये उतनी ही खूबसूरत लगी। हालांकि फ़िल्म 3 घन्टे लंबी है और डूब कर न देखें तो आपको बहुत स्लो भी लग सकती है। जब ये रिलीज हुई थी तो घरेलू बॉक्स ऑफिस पर बहुत अधिक सफल नहीं हुई थी हालांकि अमेरिका से बाहर में इसने अच्छी कमाई की थी। इस फ़िल्म को आज भी लोग याद करते हैं और ब्रैड पिट की बेहतरीन फिल्मों में इसे गिना जाता है। यही इसकी सफलता है।