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सुख-दुख

गोदी मीडिया जासूसी की खबर नहीं, खंडन छापने के लिए दौड़ पड़ा है!

कृष्ण कांत-

द वायर ने जब जय शाह घोटाले की खबर छापी थी तो बाकी ज्यादातर मीडिया ने वो खबर नहीं छापी, सिर्फ सरकारी खंडन छापा। ताजा पेगासस प्रकरण में भी यही दिख रहा है। खबर है कि सरकार इजराइली कंपनी के सहारे पत्रकारों, नेताओं और जज की जासूसी करवा रही थी। खबर छपते ही गोदी मीडिया खबर सरकारी खंडन लेकर दौड़ पड़ा।

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वह ये नहीं बताता कि क्या गुल खिला है। वह बताता है कि जो गुल खिलाने की बात कही जा रही है, वह गुल नहीं खिला है। खिला है तो कहीं और खिला है। कैसे खिला है, कहां खिला है, कब खिला है, इसके बारे में कहीं कुछ नहीं मिला है।

हर आरोप पर गोदी मीडिया बताता रहता है कि “हमारे वो ऐसे नहीं हैं।”

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पेगासस वाली खबर छपने से पहले कई लोगों को अंदाजा हो गया था। इस दौरान गोदी मीडिया तैयारी कर रहा था कि खबर जो भी होगी, पहले उसका खंडन छापना है। खबर छपते ही गोदी मीडिया ने खंडन छाप दिया। मूल खबर गोल कर गया।

भारत का मीडिया ये नहीं पूछेगा कि सरकार ने ये अपराध क्यों किया। वह ये बताने में जान लड़ा देगा कि 16 मीडिया संस्थानों ने मिलकर जो स्टोरी छापी है, उसमें दम नहीं है। क्योंकि सरकार ऐसा कह रही है।

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इस बीच सांसद संजय सिंह ने कहा कि वे इस मुद्दे को संसद में उठाएँगे। लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार संजय शर्मा के चैनल 4pm द्वारा आयोजित डिबेट में फ़ोन सर्विलांस मुद्दे पर आप के सॉसद संजय सिंह , वरिष्ठ पत्रकार अशोक बानखेडे और अमर उजाला समूह के सलाहकार संपादक विनोद अग्निहोत्री ने क्या कुछ कहा, देखिये पूरी परिचर्चा, क्लिक करें-

https://youtu.be/mRYLiX0rr4I


पुष्प रंजन-

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रोहिणी सिंह कौन है? 40 पत्रकारों में से रोहिणी सिंह का फोन इंटरव्यू करना क्यों ज़रूरी समझा NDTV ने? जय शाह पर स्टोरी, अहमदाबाद में वेंटिलेटर घोटाले का पर्दाफाश उसका गुनाहे अज़ीम था. स्वाभाविक है संतरों का रोहिणी सिंह के पीछे पड़ना. मोटा भाई और उसके चिंटुओं के इशारे पर यह सब हो रहा था. सत्ता प्रतिष्ठान पर स्टोरी करनेवाली रोहिणी के फोन सर्विलांस पर न हो, असम्भव बात है.

भूमिहार जाति से है, बिहार में जन्मी. जड़ तक खंगाल डाला ZEN TSU ब्लॉगपोस्ट ने . The Wire में एमके वेणु ने कैसे ज्वाइन कराया? ET से कैसे निकाला? कहानियां गढ़ दी गयीं, “नीरा राडिया प्रकरण में नाम है, लेफ्टिस्ट है.” मान मर्दन के जितने हथकंडे अपना सकते थे, उसका इस्तेमाल किया संतरों ने. ब्रांडिंग करते रहे- “येलो जर्नलिजम करती है.
किसी ने सही कहा है- ‘शराफत की हद होती है यारों, हरामीपन का कोई हद नहीं होता !’

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