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मदर ऑफ डेमोक्रेसी का हाल, निर्वाचित मुख्यमंत्री को भ्रष्ट साबित करने की कोशिशें और पद से हटाने के लिए पीआईएल

संजय कुमार सिंह

आज भी केजरीवाल की खबर की ही चर्चा करता हूं। दो कारण हैं। मेरे सभी अखबारों ने इसी को महत्व दिया है और इसमें यह बात बिल्कुल गोल है कि केजरीवाल के खिलाफ कार्रवाई  (और कांग्रेस से आयकर के जुर्माने की वसूली) अगर बिल्कुल जायज और जरूरी भी हो तो बाद में हो सकती है। चुनाव तक टाला जा सकता है और जब एलजी को संवैधानिक पद पर होने के कारण 20 साल पुराने मामले में राहत मिली हुई है तो केजरीवाल को मुख्यमंत्री और दूसरों को सांसद या विधायक मंत्री होने का कारण छूट क्यों नहीं मिलनी चाहिये। टाइम्स ऑफ इंडिया में पहले पन्ने पर छपी छोटी सी खबर के अनुसार एलजी दिल्ली में राज करने को लोहे के चने चबाने जैसा मानते हैं और मुख्यमंत्री को पद से हटाने के लिए जनहित याचिका दायर की गई है। यह सत्तारूढ़ दल की रणनीति और राजनीति का भाग तो हो ही सकता है यह भी दिखाई दे रहा है कि एलजी के मामले में किसी ने पीआईएल दाखिल नहीं की है और निर्वाचित मुख्यमंत्री को राहत तो नहीं ही मिली पद से हटाने में भी ‘जनहित’ देखा जा रहा है।

अव्वल तो दिल्ली के उपराज्यपाल मार-पीट के आरोपी थे तो संवैधानिक पद पर उनकी नियुक्ति ही नहीं होनी चाहिये थी। पर एक पार्टी ने जब आतंकवाद की आरोपी साध्वी प्रज्ञा को उम्मीदवार बनाया और जनता ने चुन भी लिया तो अखबारों का काम है कि वह जनता को सच बताये और सही चुनने के लिए प्रेरित करे या वैसी स्थितियां बनाए। दिलचस्प यह है कि पार्टी अपने पुराने उम्मीवारों के टिकट काटकर लोकप्रिय कलाकारों को टिकट दे रही है ताकि वे जीत जायें और बहुमत का उनका आंकड़ा पूरा हो जाये। अखबार ऐसे मामलों में लगभग मौन हैं। राजनीतिक दल का इतना भी करना गलत नहीं होता पर जीतने के लिए विपक्षी उम्मीदवारों और पार्टी के खिलाफ सरकारी एजेंसियों का प्रयोग करके उनकी छवि खराब की जा रही है और सत्तारूढ़ दल इलेक्टोरल बांड जैसे असंवैधानिक काम के बावूजद इन लोगों को जेल में रखकर या कांग्रेस का खाता फ्रीज करके चुनाव के समय खुद की छवि नियमों के मामले में पक्की होने की बनाने की कोशिश कर रहा है और व्यवस्था का समर्थन पा रहा है। आम आदमी यह सब नहीं समझे, मीडिया को तो समझ में आना ही चाहिये और उसका काम है कि यह सब अपने पाठकों को बताये लेकिन विज्ञापनों के लिए मुंह में हड्डी लिये बैठा है।

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केजरीवाल मामले में आज फिर शीर्षक से ही उपलब्ध या मौजूद खबरों को समझते हैं। इसमें यह महत्वपूर्ण है कि वे निर्वाचित मुख्यमंत्री हैं और उनका भारी समर्थन है। इतना कि तोड़-फोड़ कर सरकार बनाई या गिराई नहीं जा सकती है और ना पार्टी में फूट डाली जा सकती है। तभी मामला चल रहा है और बाकी राज्यों में यह सब किया जा चुका है। इसके बावजूद भाजपा को पूरी व्यवस्था का समर्थन मिल रहा है और निष्पक्षता के नाम पर सब (ज्यादातर) सत्तारूढ़ दल या शक्ति के साथ नजर आ रहे हैं। केजरीवाल मामले में यह स्पष्ट है कि एलजी के जरिये या वैसे भी केंद्र सरकार (या उसकी एजेंसी) अगर कोई कार्रवाई करेगी तो उसका लाभ भाजपा को मिलना पक्का नहीं है और आम आदमी पार्टी नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा से कम शातिर नहीं है। इसलिए, जनहित याचिका दायर की गई है। संभव है इसका मकसद अदालत से अनुकूल आदेश प्राप्त होने की संभावना टटोलना हो। मैं पहले लिख चुका हूं कि गिरफ्तारी भाजपा की मजबूरी थी और केजरीवाल ने इस्तीफा नहीं देखकर भाजपा को मुश्किल में डाल दिया है। अदालत जमानत दे देती तो मामला नहीं बढ़ता और भाजपा को तत्काल राहत मिलती लेकिन अदालतों से राजनीतिक फैसले की उम्मीद नहीं की जा सकती है और इसीलिए जनहित याचिका दायर की गई हो सकती है। उसकी राजनीति कुछ दिन में स्पष्ट हो सकती है।

इधर सरकार कार्रवाई करेगी तो फंसेगी और नहीं करेगी तो फंसी ही हुई है। आम आदमी पार्टी के नेता इस मामले में सत्तारूढ़ दलों के नेताओं से आगे हैं और वैसे भी, सारे निर्णय एक ही व्यक्ति ले तो यह कोई जरूरी नहीं है कि हमेशा सही ही रहेगा। आज के शीर्षक इस प्रकार हैं – 

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अमर उजाला (खबर लीड है)

हाईकोर्ट से केजरीवाल को राहत नहीं एलजी बोले – जेल से नहीं चलेगी सरकार  (सामान्य सा सवाल है, तो कुछ करते क्यों नहीं?) पर वह भी नहीं है। जवाब तो छोड़िये। उपशीर्षक है, कोर्ट ने कहा इस स्तर पर दंडात्मक कार्रवाई से सुरक्षा नहीं दी जा सकती है। आप जानते हैं कि मामला क्या है और आज ही खबर छपी है कि (नवोदय टाइम्स) ईडी ने गोवा के आप नेताओं को तलब किया। कहने की जरूरत नहीं है कि सबूत नहीं हैं तो गिरफ्तारी का मतलब नहीं है और अभी सबूत जुटाकर मामला बनाने की कोशिश की जा रही है। ईडी इस मामले में मनी ट्रेल ढूंढ़ रही है जबकि आप नेताओं का कहना है कि वह इलेक्टोरल बांड के रूप में भाजपा को मिला है।

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नवोदय टाइम्स (खबर लीड है)

केजरीवाल को राहत नहीं, हाईकोर्ट का ईडी को नोटिस, 2 अप्रैल तक मांगा जवाब (मुझे लगता है कि निर्वाचित मुख्यमंत्री की गिरफ्तारी तो हो गई, गिरफ्तारी सही है या गलत इसे तय करने के लिए जवाब चाहिये और जवाब देने के लिए समय दिया गया है। तब तक जमानत दी जा सकती थी पर अदानत ने नहीं देना चुना है। इस बीच सरकार जेल से चल रही है क्योंकि पद से हटाने का मामला तो और उलझा हुआ होगा और चूंकि ऐसी कल्पना नहीं की गई थी, पहले ऐसा हुआ नहीं इसलिए कोई स्थापित नियम नहीं है। लेकिन इस समय चुनाव होने से राजनीतिक नफा – नुकसान है। इसपर भाजपा पीड़ित एक और सांसद महुआ मोइत्रा ने कहा है कि चुनाव के समय ऐसी कार्रवाई नहीं होनी चाहिये। इसे अखबारों ने वो प्रमुखता नहीं दी जो मिलनी चाहिये थी।

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इंडियन एक्सप्रेस (खबर लीड है)

ईडी की रिमांड खत्म हो रही है, मुख्यमंत्री आज दिल्ली की अदालत में होंगे (फ्लैग शीर्षक है) मुख्य शीर्षक है, केजरीवाल के लिए कोई अंतरिम राहत नहीं, हाईकोर्ट ने ईडी को अपीलों का जवाब देने के लिए समय दिया उपशीर्षक, उनके वकील की दलील है कि गिरफ्तारी के कारण वे (केजरीवाल) सक्रिय भूमिका नहीं निभा पा रहे हैं और (चुनाव के समय) सबके लिए समान स्थिति के बजाय किसी के लिए फायदे और किसी के लिए नुकसान की स्थिति बन गई है।  

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टाइम्स ऑफ इंडिया (खबर लीड है)

शहर में राष्ट्रपति का शासन? एलजी ने कहा कि सरकार जेल से नहीं चलाई जाएगी। यही नहीं, एलजी ने यह भी कहा है कि दिल्ली में एलजी के रूप में काम करना लोहे के चने चबाने जैसा है (उन्हें इसका मतलब एलजी बनने के बाद समझ में आया)। अच्छे कार्यों से बाधित करने के लिए अनंत ताकतें खड़ी हो जाती हैं। आप जानते हैं कि जो सरकार चलाने के लिए निर्वाचित है वह जेल में है और जिसे जेल में होना चाहिये वह संवैधानिक पद पर होने के कारण उस पद पर है जो सरकार चलाने के लिए नहीं है और उनकी सरकार ने कानून में संशोधन करके उन्हें सरकार चलाने का काम दिया है और पहले के एलजी इस्तीफा दे चुके हैं। यही नहीं, दिल्ली को पूर्ण राज्य बनाने का मुद्दा भी है। भाजपा पहले कहती थी कि वह सत्ता में आई तो पूर्ण राज्य का दर्जा देगी लेकिन अब जो हुआ और हो रहा है उसके बाद एलजी साहब को तकलीफ है और आज यह टाइम्स ऑफ इंडिया में छपा है।

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द हिन्दू (पहले पन्ने पर खबर नहीं है)

यहां सिंगल कॉलम में आप की गोवा इकाई को समन भेजने की खबर है। इंडियन एक्सप्रेस ने पहले पन्ने पर सूचना दी है कि ईडी इस मामले में पंजाब भी पहुंची है। केजरीवाल का मामला यहां शहर की खबरों के पन्ने पर है। शीर्षक वही है, सरकार जेल से नहीं चलेगी: एलजी; आप ने कहा कोई कानून इससे रोकता नहीं है। मंत्री आतिशी ने आरोप लाया है कि यह राष्ट्रपति शासन लगाने की साजिश है। कहने की जरूरत नहीं है कि भाजपा ने ऐसा किया तो नुकसान और होगा। विदेश में भी चर्चा होगी। इसलिए मैं तो इंतजार कर रहा हूं।

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हिन्दुस्तान टाइम्स (खबर लीड है) 

केजरीवाल को कोई राहत नहीं, हाईकोर्ट ईडी का जवाब 6 दिन में सुनेगा। इस बीच आज खबर है और हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पन्ने पर है कि आम आदमी पार्टी के पंजाब के अकेले सांसद भाजपा में शामिल हो गये हैं। अब यह ईडी का डर हो या भाजपा की वाशिंग मशीन का काम तो हो गया। 

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द टेलीग्राफ (खबर पहले पन्ने पर तीन कॉलम में है)

केजरी को राहत से इनकार, पत्नी ने कहा कि ‘सच्चाई का खुलासा’ करेंगे  (खुलासा संभवतः यही होगा कि उनके खिलाफ वायदा माफ सरकारी गवाह ने इलेक्टोरल बांड के जरिये चंदा दिया है और खुद उन्हें कमर दर्द के लिए जमानत मिल गई, ईडी ने इसका विरोध नहीं किया वगैरह। लोग कह रहे हैं कि इसके लिए जमानत तो छोड़िये, छुट्टी नही मिलती है, आम आदमी पार्टी के सत्येन्द्र जैन को नहीं मिली है और उन्हें फिर जेल जाना पड़ा)।  

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अब आज की दूसरी खबरों की चर्चा कर लूं ताकि आपको हेडलाइन मैनेजमेंट का भी अंदाजा रहे। द टेलीग्राफ ने अमर्त्य सेन के बयान को लीड बनाया है। यह मीडिया का गला घोंटने पर वैश्विक ऐकेडमिक अलर्ट का नेतृत्व करना है। शीर्षक है आजादी पर अमर्त्य सेन का अलार्म। खबर के अनुसार एक अलग बयान में उन्होंने कहा है, “ब्रिटिश शासन के तहत, भारतीयों को अक्सर गिरफ्तार किया जाता था और बिना मुकदमा चलाए जेल में रखा जाता था… उस समय एक युवक के रूप में, मुझे उम्मीद थी कि जैसे ही भारत स्वतंत्र होगा, इस औपनिवेशिक भारत में उपयोग की जाने वाली यह अन्यायपूर्ण व्यवस्था, रुक जाएगी। अफ़सोस, ऐसा नहीं हुआ है, और आरोपी इंसानों को बिना मुक़दमा चलाए गिरफ़्तार करने और जेल में रखने की प्रथा स्वतंत्र और लोकतांत्रिक भारत में भी जारी है जबकि इसका समर्थन नहीं किया जा सकता है।”

द हिन्दू की लीड आज सीएए के तहत भारत की नागरिकता पाने के नियमों पर है। इसके तहत योग्यता के लिए आवश्यक प्रमाणपत्र एक ऐसा प्रमाणपत्र है जो कोई भी पुजारी या पादरी दे सकता है। अखबार ने लिखा है कि सरकारी हेल्पलाइन के अनुसार पोर्टल पर जमा कराये जाने वाले दस्तावेजों में एक आवश्यक है और नियमों के अनुसार इसे स्थानीय स्तर पर ख्यातिप्राप्त सामुदायिक संस्थान द्वारा जारी किया जा सकता है। केरल के मुख्यमंत्री की बेटी और उसकी फर्म के खिलाफ ईडी का केस खोलने की एक खबर आज कई अखबारों में उनकी पसंद के अनुसार छोटी या बड़ी छपी है।

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