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सियासत

अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाना मुलायम के पतन का कारण बना!

बद्री प्रसाद सिंह-

नेता जी नहीं रहे। अभी खबर मिली कि नेता जी नाम से मशहूर, पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव जी नहीं रहे।वह कुछ दिनों से बीमार थे और अथक प्रयासों के बाद भी डाक्टर उन्हें बचा नहीं सके।

नेता जी का राजनैतिक जीवन संघर्षों का पर्याय है। सैफई गांव का एक मास्टर अपने दम एवं अपनी शर्तों पर, बगैर किसी गाडफादर के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद तक पहुंचा,यह उनकी उपलब्धि थी। उन्होंने जातिवाद, परिवार वाद को प्रश्रय दिया, उ.प्र. की राजनीति में अपराधीकरण को बढ़ावा दिया,उन पर मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप भी लगे,इसके बावजूद वह प्रदेश की राजनीति में एक मजबूत स्तंभ बने रहे। अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस करने पहुंचे कारसेवकों पर फायरिंग कराकर उन्होंने अपनी दृढ़ता तथा मुसलमानों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का परिचय दिया।

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वर्ष २०१२ में उ. प्र. विधानसभा में सपा के बहुमत मिलने के बाद अपने पुत्र अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाकर उन्होंने जो दांव खेला था ,वह उनके पतन का कारण बना। अखिलेश यादव और शिवपाल यादव की चक्की में वह पिसते रहे ,अंत में पुत्र ने पार्टी पर कब्जा कर नेता जी को बेआबरू कर उन्हीं की पार्टी में उन्हें अप्रासंगिक बना दिया। तभी से वह सपा के लिए महत्वहीन हो कर सपा के लालकृष्ण आडवाणी हो गए थे।

मुलायम सिंह यादव जी से मेरी पहली व्यक्तिगत मुलाकात १९९६ में हुई जब वह केंद्रीय रक्षामंत्री और मैं पुलिस अधीक्षक नगर लखनऊ था।एमबी क्लब में आयोजित “इला अरुण नाइट” में वह मुख्य अतिथि थे और मुझे उन्हें उनके आवास से कार्यक्रम तक ले जाना था।मैं जब उन्हें लेने पहुंचा तो चलते समय वह मुझे अपनी कार में साथ बिठा कर मेरा परिचय लिया। मैंने उन्हें बताया कि मैं अरुण कुमार सिंह मुन्ना का भाई हूं। रास्ते में वह बहुत स्नेह से बात किए।

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१९९७ में मैं जब बसपा सरकार में पुलिस अधीक्षक बदायूं था,तो वह सपा के एक आंदोलन में रक्षामंत्री के रूप में गुन्नौर आए और जाते समय उन्होंने सबके सामने कहा कि उनके कार्यकर्ताओं के साथ ज्यादती न होने पाए, यदि वे खुराफात करें तो उनका हाथ पैर तोड़ देना, मुझसे निष्पक्षता का उन्हें पूरा भरोसा है।उनके इस कथन मात्र से स्थानीय सपा नेताओं ने मुझे पूरा सहयोग दिया।

वर्ष २००३ में जब वह पुनः मुख्यमंत्री बने तब मैं पीएसी नैनी, प्रयागराज में सेनानायके था। मैं उनसे मिलने गया तो वह मेरी नियुक्ति पूछकर बोले कि तुम तो अच्छे अधिकारी हो, तुम्हें अच्छी नियुक्ति मिलेगी।एक सप्ताह बाद मुझे मुख्यमंत्री से अगले दिन प्रातः मिलने हेतु आदेश मिला। मैं रात में ही लखनऊ आ गया और प्रातः पता चला कि मेरी नियुक्ति वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक मेरठ हो गई है। मैं प्रातः आठ बजे जब उनसे मिलने पहुंचा तो वह बाहर जाने को तैयार थे। उन्होंने बरामदे में ही पांच मिनट तक मुझे समझाया कि मैं अच्छा अधिकारी हूं, इसीलिए मेरठ भेजा गया हूं। मैं मेरठ में किसी मंत्री,नेता की चिंता किए बगैर अपराधियों पर प्रभावी नियंत्रण करूं।

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जब भी मैं मेरठ से लखनऊ आया और उनसे मिला,वह सदैव एक अभिभावक की तरह मिले,मेरे कार्य की प्रशंसा करते हुए पूछते कि कोई मंत्री या नेता मेरे काम में दखल तो नहीं देता। वह बगैर किसी से डरें,अपना कार्य निष्पक्षता से करने को कहते। कभी भी किसी गलत तो क्या सही कार्य के लिए भी नहीं कहा। मुझे उन्होंने मेरठ में निलंबित भी किया लेकिन मिलने पर बहुत स्नेह से कहते कि मैं परेशान न हूं,निलंबन शीघ्र समाप्त हो जाएगा, लेकिन किया तभी जब मुन्ना भाई ने उनसे इसके लिए कहा। मुन्ना भाई उनके विरुद्ध कोई तगड़ा वक्तव्य दे दिए थे जिसका खामियाजा मुझे निलंबित होकर चुकाना पड़ा था।

मुलायम सिंह जी जमीनी नेता थे और अपने लोगों के लिए लड़ते थे, इसीलिए उनके साथी सुख दुःख में सदैव उनके साथ बने रहे। उन्हें अपने कार्यकर्ता, अधिकारी तथा जमीनी हकीकत पता रहती थी।उनसे मिलने में सुरक्षा का तामझाम इतना नहीं था, इसलिए उनके लोग उन्हें छोटी से छोटी बात सीधे बतलाते रहते थे।उनके प्रिय इंस्पेक्टर ध्रुव लाल यादव जब सहारनपुर में रात्रि में आतंकी मुठभेड़ में शहीद हुए तो घटनास्थल से एक सिपाही ने उन्हें फोन से घटना की सूचना तत्काल दी और डीजीपी को उनके इंस्पेक्टर के शहादत की सूचना मुख्यमंत्री ने दी थी।

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इन्हीं छोटी सूचनाओं के कारण उनकी प्रशासन में पकड़ थी और धरतीपुत्र कहलाए। आज मुलायम सिंह जी नहीं रहे। जाना तो सभी को है लेकिन यदि वह ३-४ वर्ष पूर्व ही चले जाते तो पार्टी और परिवार की दुर्दशा देखने से बच जाते। माननीय मुलायम सिंह यादव जी को विनम्र श्रद्धांजलि एवं शत शत नमन।

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