बिहार में सता और सियासत के उठापटक पर एफबी पर लिखे-बांचे गए सैकड़ों स्टेटस-कमेंट्स में से मुझे झारखंड के वरिष्ठ पत्रकार विष्णु राजगढ़िया भाई की ये वाली टिप्पणी सबसे शानदार लगी. उनकी बिना अनुमति लिए अपने वॉल / पोर्टल पर अपलोड कर रहा हूं. -यशवंत, एडिटर, भड़ास4मीडिया
Vishnu Rajgadia : मूर्खों का लोकतंत्र मुबारक! बिहार की दुर्दशा के असल कारण खोजिये. पहले बीजेपी धारा अलग थी, समाजवादी धारा अलग. कांग्रेस के खिलाफ 1977 में दोनों एक हो गए. फिर अलग हो गए. समाजवादी खुद भी बिखर गए. लालू अलग, नीतिश अलग. भाजपा के खिलाफ लालू-कांग्रेस एक हो गए। उधर लालू के खिलाफ बीजेपी-नीतीश मिल गए. फिर बीजेपी-नीतीश भी अलग हो गये.
इसके बाद नीतीश ने मांझी को आगे किया तो मांझी ने नीतीश को पीछे ठेल दिया. फिर नीतीश ने मांझी को पीछे किया और खुद आगे आ गए. एक बार फिर नीतीश-लालू एक हो गए जबकि लालू यादव के कुशासन के खिलाफ नीतीश ने वोट माँगा था. फिर लालू-नीतीश-कांग्रेस ने मिलकर बीजेपी के खिलाफ चुनाव लड़ा। नीतीश ने डंके की चोट पर ‘भाजपा-आरएसएस मुक्त’ भारत का नारा दिया। अब एक बार फिर नीतीश-लालू अलग हो गए और नीतीश-भाजपा साथ-साथ हैं.
इसमें कहाँ कौन सिद्धान्त और कहाँ कौन नैतिकता है भाई? और अगर नीतीश कुमार को भ्रष्टाचार इतना ही नापसंद है, तो फिर देश में भ्रष्टाचार आखिर होता कहाँ है?
यह महज बिहार की नहीं. पूरे देश की राजनीति की असलियत है. 1947 की आजादी ऐसी गन्दी राजनीति का शिकार होने के लिए तो नहीं आई थी. देश के संविधान में बड़े बदलाव से ही बेहतरी के रस्ते खुलेंगे. वर्तमान राजनीति के सहारे तो नरक ही नसीब है.
बिहार के वरिष्ठ पत्रकार विष्णु राजगढ़िया की एफबी वॉल से.