पत्रकारिता में गलाकाट प्रतिस्पर्धा के दौर में अपुष्ट खबरों को प्रकाशित करने का चलन तेजी से बढ़ रहा है. इसका जीता जागता प्रमाण नवभारत टाइम्स यानी एनबीटी में देखने को मिला. नेपाल में आए भूकंप में चंदौली जिले के चार युवक भी फंसे थे, लेकिन शाम तक उन युवकों का संपर्क अपने परिजनों से हो गया, लेकिन खबर को बेचने के चक्कर में एनबीटी ने चारों युवकों के लापता होने की भ्रामक खबर छाप दी, जिसके चलते युवकों के परिजनों को परेशानी उठानी पड़ गई.
दरअसल, यह मसला घर बैठे पत्रकारिता करने का है. जिस तरह दूरस्थ शिक्षा से लोग शिक्षित होते हैं आज कर दूरस्थ पत्रकारिता का दौर चल रहा है. घर बैठे-बैठे अनाधिकृत लोगों से सूचनाएं मंगाकर पत्रकारिता की जा रही है. एनबीटी ही नहीं, एएनआई समेत इंडिया टीवी, आईबीएन7 समेत कई स्थानीय चैनलों ने भी इस खबर को प्रसारित किया. हालांकि गलती इन चैनलों की नहीं बल्कि खबर बेचने के लिए गलत फीड और न्यूज भेजने वाले स्थानीय पत्रकार की रही. यह पत्रकार इसके पहले भी कई भ्रामक और गलत खबरें टीवी चैनलों पर चलवा चुका है, क्योंकि कई चैनलों और अखबारों में खबर भेजने का ठेका भी इसके पास है, जिसके चलते गलत खबरें भी कई चैनलों और अखबारों में प्रकाशित होने के बाद सच के रूप में स्टेबलिश हो जाती हैं.
खैर, मामला यह था कि नेपाल में आई भूकंप की त्रासदी के दौरान चंदौली जिले चार युवक भी घूमने गए हुए थे. ये चारो युवक अनिल, प्रशांत, अरविन्द व राकेश 24 अप्रैल को पशुपतिनाथ के दर्शन करने के लिए नेपाल को रवाना हुए थे. वहां एक जाकर एक होटल में ठहरे थे. भूकंप की पहली घटना के चश्मदीद चारो युवक, उस वक्त एक गुफा के भीतर फोटोग्राफी करा रहे थे, जब पहली धरती हिलने लगी थी. इनलोगों ने बताया कि गुफा के भीतर अचानक तेज आवाज आई, लेकिन वे लोग समझे कि गुफाओं में ऐसी आवाजें आती होंगी. जब लोग गुफा से बाहर भागने लगे तो ये लोग भी वहां से बाहर भाग गए.
इन लोगों बताया कि कई मिनट तक धरती कांपती रही, जैसे ही ये लोग गुफा से बाहर आए वहां चट्टानें इधर उधर खिसकने लगी और गुफा का भी कुछ हिस्सा धराशायी हो गया. इस दौरान भूकंप आने का सिलसिला दर्जनों बार चलता रहा और ये लोग सुरक्षित स्थान की तलाश में इधर उधर भागते रहे. यहाँ तक कि रात में भी ये लोग सो नहीं पाये और 25 अप्रैल की सुबह 5 बजे के करीब जब एक बार फिर भूकंप आया तो ये लोग अपने निजी साधन से वहां से भारत के लिए निकल पड़े. नेपाल में मोबाइल नेटवर्क ध्वस्त होने कि वजह से इनका संपर्क परिवार से टूट चूका था.
इस लोगों ने बताया कि जब वे लोग 25 अप्रैल को ही तीन बजे के करीब भारत की सीमा से कुछ दूरी पर पहुंचे तो मोबाइल नेटवर्क आ गया. इसके बाद इन लोगों ने घर वालों से बात की तथा अपने सकुशल होने की सूचना दी. 27 अप्रैल की भोर में करीब तीन बजे ये लोग घर पहुंच गए, लेकिन नवभारत टाइम्स ने खबर प्रकाशित करने से पहले इनके परिजनों से एक बार भी पुष्टि करने की कोशिश नहीं की कि क्या ये लोग लापता हैं या उनका लोकेशन मिल चुका है, जबकि इन लोगों की अपने परिजनों से शाम को तीन बजे ही बात हो चुकी थी और अखबार का प्रकाशन रात में होता है.
इतना ही नहीं, खबर को प्रकाशित करने से पहले संवाददाता ने जिला प्रशासन से भी इस संदर्भ में कोई जानकारी नहीं ली, जिससे उन्हें सही तथ्य की जानकारी हो सके. बस खबर को बेचने और सनसनीखेज बनाने के चक्कर में भ्रामक और गलत खबर का प्रकाशन कर दिया गया. जाहिर है कि जब दूरस्थ पत्रकारिता होगी और खबरों को प्रकाशित करने से पहले सूचनाओं को क्रास चेक करने का जहमत नहीं उठाया जाएगा तो पत्रकारिता के इससे बेहतर होने की उम्मीद तो कतई नहीं की जा सकती है.
चंदौली से एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधरित.