उच्चतम न्यायालय ने न्यू दिल्ली टेलीविजन लिमिटेड (एनडीटीवी) को एक बड़ी राहत देते हुए आयकर विभाग द्वारा जारी नोटिस को रद्द कर दिया। आयकर विभाग ने विदेशी स्रोतों से कथित तौर पर एनडीटीवी को प्राप्त हुए करोड़ों रुपयों के लिए वित्त वर्ष 2007-08 के आयकर आकलन का फिर से आकलन करने के लिए नोटिस जारी किया था।
जस्टिस एल. नागेश्वर राव और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा कि एनडीटीवी को जारी नोटिस में आकलन अधिकारी की तरफ से इस बात को मानने के पर्याप्त कारण दिए गए हैं कि आकलन को फिर से खोला जा सकता है, लेकिन चूंकि राजस्व विभाग तथ्यों का खुलासा करने में विफल रहा है, और नोटिस चार साल बाद जारी किया गया है, लिहाजा इसे रद्द किया जाता है।
उच्चतम न्यायालय ने हालांकि स्पष्ट किया कि यद्यपि उसने 2015 के नोटिस को तकनीकी आधार पर रद्द किया है, लेकिन राजस्व विभाग संबंधित आईटी प्रावधानों के तहत एक नया नोटिस जारी करने के लिए स्वतंत्र है। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि राजस्व विभाग कानून के तहत स्वीकृत दूसरे प्रावधान का लाभ उठाते हुए एक नया नोटिस जारी कर सकता है। आकलन अधिकारी ने कंपनी द्वारा आय छिपाने के आधार पर आयकर अधिनियम की धारा 148 के तहत एनडीटीवी को नोटिस जारी किया था।
इस मामले में एनडीटीवी पर 2007 में अपने गैर-समाचार कारोबार के लिए विदेशी निवेश जुटाने के दौरान मनी लॉन्ड्रिंग का बेबुनियाद आरोप लगाया गया था। उच्चतम न्यायालय ने रेवेन्यू डिपार्टमेंट को उस असेसमेंट को फिर से खोलने की इजाज़त देने से इनकार किया, जिस पर बरसों पहले फ़ैसला हो चुका था। 2015 में टैक्स अधिकारियों ने इसकी मांग की थी और आरोप लगाया था कि नडीटीवी ने तथ्य छिपाए हैं और पैसे को राउंड-ट्रिप कराया है। उच्चतम न्यायालय ने आज इसकी इजाज़त नहीं दी।