Sanjaya Kumar Singh : क्या एनडीटीवी पर नियंत्रण के लिए क्या कॉरपोरेट तख्ता पलट की कोशिश की जा रही है? शुक्रवार की सुबह एनडीटीवी के बिक जाने की खबर पढ़कर मुझे याद आया कि प्रणय राय को अगर कंपनी बेचनी ही होती तो वे आईसीआईसीआई बैंक के 48 करोड़ रुपए के लिए पड़े सीबीआई के छापे के बाद प्रेस कांफ्रेंस क्यों करते। क्यों कहते कि झुकेंगे नहीं। मुझे इंडियन एक्सप्रेस की खबर पर यकीन नहीं हुआ।
मैंने पूरी खबर पढ़ी और अंदर मिल गया कि इसकी पुष्टि नहीं हुई है और स्पाइस जेट के अधिकारी ने तो खबर को पूरी तरह गलत और निराधार कहा था। इसके बावजूद इंडियन एक्सप्रेस ने यह खबर छापी थी तो कारण सूत्र पर भरोसा होगा और इसके पक्ष में तर्क यह था कि एनडीटीवी ने इसपर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। मेरे हिसाब से ऐसी खबरों के सही होने की संभावना आधी-आधी ही रहती है। इसलिए मैं अगर ब्रेकिंग चलाने की जल्दी ना हो तो इंतजार करना पसंद करता हूं। दोपहर तक स्पष्ट हो गया कि इंडियन एक्सप्रेस चूक गया था। मेरा मानना है कि इस तरह गलत खबर प्लांट करने या कराने की कोशिश करने वालों को सबक सीखाना चाहिए पर अब नहीं लगता कि वैसे दिन कभी आएंगे। हालांकि वह अलग मुद्दा है।
शाम तक मुझे समझ में आ गया कि हो ना हो यह एनडीटीवी में तख्ता पलट की कोशिश चल रही होगी। देश में कॉरपोरेट तख्ता पलट का पहला और संभवतः सबसे चर्चित मामला अनिवासी भारतीय स्वराज पॉल और देसी उद्योग समूह डीसीएम तथा एस्कॉर्ट्स से जुड़ा था। डीसीएम यानी दिल्ली क्लॉथ मिल को तब खादी के बाद देसी कपड़ों यानी भारतीयता का प्रतीक माना जाता था। एस्कॉर्ट्स को उस समय उसके मालिक नंदा परिवार के लिए जाना जाता था। राजन नंदा दूसरी पीढ़ी के मालिक थे उनके पिता हर प्रसाद आजादी के समय पाकिस्तान से आए थे। राजन नंदा की पत्नी राजकपूर की बेटी ऋृतु हैं और उनके बेटे निखिल की शादी अमिताभ बच्चन की बेटी श्वेता से हुई है। यह विवरण ये बताने के लिए स्वराज पॉल ने किससे किसलिए पंगा लिया होगा और क्यों नाकाम रहे। एस्कॉर्ट्स समूह पर नंदा परिवार का नियंत्रण पांच से 10 प्रतिशत के बीच की हिस्सेदारी से था और नियंत्रण की इस कोशिश के बाद कई महीनों तक भारतीय उद्योग जगह में उत्सुकता औऱ चिन्ता छाई रही। आखिरकार स्वराज पॉल ने हथियार डाल दिए।
अब स्थिति थोड़ी अलग है। तख्ता पलट का उद्देश्य भी। एक मीडिया संस्थान जो सरकार के खिलाफ है उसे सरकार समर्थक ताकतें नियंत्रण में लेना चाहती हैं। तरीके वही आजमाए जा सकते हैं औऱ कल जो सब हुआ वह ऐसी ही कोशिश का हिस्सा लगता है। इसमें करना सिर्फ यह होता है कि बाजार से किसी कंपनी के इतने शेयर खरीद लिए जाएं कि जिसका नियंत्रण है उससे ज्यादा हो जाए या निदेशक मंडल में बहुमत हो जाए। यह आसान नहीं है पर तकनीकी रूप से संभव है। इसे कंपनी का बिकना नहीं कहा जाएगा पर स्थिति वैसी ही होगी। सैंया भये कोतवाल से यह संभव है। वैसे ही जैसे थानेदार अपना हो तो कितने भी पुराने किराएदार को भगा ही देगा। इसलिए मामला अभी खत्म नहीं हुआ है। पिक्चर अभी बाकी है दोस्तों।
जनसत्ता समेत कई अखबारों में काम कर चुके और इन दिनों सोशल मीडिया पर बेबाक लेखन के लिए चर्चित पत्रकार संजय कुमार सिंह की एफबी वॉल से.
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जहाँ तक मुझे याद है सुबह ndtv.com ने भी छापी थी ये खबर इंडियन एक्सप्रेस और किसी एक और रिपोर्ट का हवाला देते हुए। बाद में यह खबर गायब हो गयी।