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न्यूज बेंच की खबर का असर, अब शहीदों के बीच भेदभाव खत्म होगा

नई दिल्ली। मुद्दा सही हो तो आज भी खबर का तुरंत असर होता है। मासिक पत्रिका न्यूज बेंच के अगस्त अंक में प्रकाशित एक खबर का ऐसा ही असर हुआ। न्यूज बेंच पत्रिका ने अपने हिंदी और अंग्रेजी संस्करण में शहादत के दर्जे के मामले में पारा मिलिट्री और सेना के जवानों के बीच होने वाले भेदभाव के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया। अंग्रेजी में तो इसे कवर स्टोरी बनाया और हिंदी में विशेष कथा के रूप में प्रकाशित किया था। उसमें यह सवाल उठाया गया था कि देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए अपनी जान गंवाने के लिए सदैव तत्पर रहने वाले पारा मिलिट्री बलों के जवानों को शहीद का दर्जा और उसके अनुरूप सम्मान क्यों नहीं दिया जाता। उनके साथ बरते जाने वाले भेदभाव के मुद्दे से सहमत एवं प्रभावित होकर सीआरपीएफ के डायरेक्टर जनरल दिलीप त्रिवेदी ने सरकारी आदेश जारी कर इस बात की घोषणा की है कि अब जान गंवाने वाले हर एक जवान या अधिकारी के नाम के आगे शहीद का प्रयोग किया जाएगा।

<p>नई दिल्ली। मुद्दा सही हो तो आज भी खबर का तुरंत असर होता है। मासिक पत्रिका न्यूज बेंच के अगस्त अंक में प्रकाशित एक खबर का ऐसा ही असर हुआ। न्यूज बेंच पत्रिका ने अपने हिंदी और अंग्रेजी संस्करण में शहादत के दर्जे के मामले में पारा मिलिट्री और सेना के जवानों के बीच होने वाले भेदभाव के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया। अंग्रेजी में तो इसे कवर स्टोरी बनाया और हिंदी में विशेष कथा के रूप में प्रकाशित किया था। उसमें यह सवाल उठाया गया था कि देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए अपनी जान गंवाने के लिए सदैव तत्पर रहने वाले पारा मिलिट्री बलों के जवानों को शहीद का दर्जा और उसके अनुरूप सम्मान क्यों नहीं दिया जाता। उनके साथ बरते जाने वाले भेदभाव के मुद्दे से सहमत एवं प्रभावित होकर सीआरपीएफ के डायरेक्टर जनरल दिलीप त्रिवेदी ने सरकारी आदेश जारी कर इस बात की घोषणा की है कि अब जान गंवाने वाले हर एक जवान या अधिकारी के नाम के आगे शहीद का प्रयोग किया जाएगा।</p>

नई दिल्ली। मुद्दा सही हो तो आज भी खबर का तुरंत असर होता है। मासिक पत्रिका न्यूज बेंच के अगस्त अंक में प्रकाशित एक खबर का ऐसा ही असर हुआ। न्यूज बेंच पत्रिका ने अपने हिंदी और अंग्रेजी संस्करण में शहादत के दर्जे के मामले में पारा मिलिट्री और सेना के जवानों के बीच होने वाले भेदभाव के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया। अंग्रेजी में तो इसे कवर स्टोरी बनाया और हिंदी में विशेष कथा के रूप में प्रकाशित किया था। उसमें यह सवाल उठाया गया था कि देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए अपनी जान गंवाने के लिए सदैव तत्पर रहने वाले पारा मिलिट्री बलों के जवानों को शहीद का दर्जा और उसके अनुरूप सम्मान क्यों नहीं दिया जाता। उनके साथ बरते जाने वाले भेदभाव के मुद्दे से सहमत एवं प्रभावित होकर सीआरपीएफ के डायरेक्टर जनरल दिलीप त्रिवेदी ने सरकारी आदेश जारी कर इस बात की घोषणा की है कि अब जान गंवाने वाले हर एक जवान या अधिकारी के नाम के आगे शहीद का प्रयोग किया जाएगा।

केंद्रीय पुलिस बल में ऐसा पहली बार हुआ है कि सीआरपीएफ ने अपने जवान तथा अधिकारियों के किसी मुठभेड़ में जान चली जाने पर उनके सक्वमान में उन्हें शहीद का दर्जा देने का फैसला किया है। न्यूज बेंच ने इस विषय में काफी विस्तृत स्टोरी प्रकाशित की थी। इस बावत न्यूज बेंच की टीम जंग में शहीद हुए पारा मिलिट्री के बहादुर जवानों के घर जाकर उनके परिजनों से मिली। उनकी भावनाओं को महसूस किया और अपने पाठकों तक उसे संप्रेषित किया। शहीद जवानों के गांव के आस पास के लोगों से पूछताछ करने पर पता चला कि आम लोगों की नजर में अपनी नौकरी के दौरान जान गंवाने वाला हर जवान चाहे वह सेना का हो या पारा मिलिट्री का शहीद ही समझा जाता है। भेदभाव पुलिस बल के उच्च नेतृत्व तथा गृह मंत्रालय में बैठे नीति निर्धारकों के स्तर पर किया जाता है। आज चाहे लड़ाई आतंकवादियों के खिलाफ हो या फिर नक्सलियों के खिलाफ पारा मिलिट्री फोर्स के जवान देश में हो रही छोटी-बड़ी सभी लड़ाइयों पर मोर्चा लेने के लिए तैयार रहते हैं। इसके अलावा देश की सुरक्षा के लिए भी सबसे ज्यादा सीआरपीएफ का ही इस्तेमाल किया जाता है। सीआरपीएफ के जवान देश के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सबसे ज्यादा संक्चया में तैनात हैं। नक्सल क्षेत्रों में इनकी संक्चया लगभग 90,000 है। इस बल ने पिछले कुछ सालों में अपने सैकड़ों जवानों की कुर्बानी दी है। डीजी ने बताया कि फील्ड में तैनात विभिन्न टुकडिय़ों के लिए अपने संवाद, संदेश तथा व्याक्चयान में अपनी जान की कुर्बानी देने वाले हर एक जवान तथा अधिकारी के नाम के आगे शहीद का इस्तेमाल करना अनिवार्य हो गया है।

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तीन लाख की संक्चया बल वाले सीआरपीएफ ने हाल ही में अपने वीर शहीदों के नाम पर ट्रॉफी की शुरुआत की है। न्यूज बेंच ने इस बात को बखूबी उजागर किया था कि पारा मिलिट्री बलों में ज्यादातर जवान तथा अधिकारी गांव के रहने वाले हैं और उनमें से अधिकों को शहीदी रेखा से काफी दूर रहकर ही संतोष करना पड़ता है।  एक महत्वपूर्ण बात यह कि आंतरिक सुरक्षा के लिए तैनात सभी बलों की तुलना में सीआरपीएफ के जवानों व अधिकारियों जिन्होंने नौकरी काल में अपनी जान गंवाई है, उनकी संक्चया सबसे अधिक है। फील्ड में तैनात अपनी टुकडिय़ों के अफसरों को सूचित करने के क्रम में सीआरपीएफ के डीजी दिलीप त्रिवेदी ने लिखित आदेश जारी कर दिया है। उन्होंने कहा है कि हमें अपने लोगों को सक्वमान देने में कोई आपत्ति नहीं है। इसके साथ ही श्री त्रिवेदी ने बताया कि हमने हाल ही में जान गंवाये अपने बहादुरों के नाम से पहले शहीद लगाने का निर्णय लिया है।

न्यूज बेंच ने इस बात को उजागर किया कि पारा मिलिट्री बलों के लिए शहीद शब्द का इस्तेमाल करने का कोई आदेश नहीं था परंतु अब उन शहीदों के परिवारों को काफी राहत मिलेगी क्योंकि अब बाहरी तथा आंतरिक दोनों सुरक्षा कार्यों में अपनी जान गंवाने वाले शहीद ही कहलाएंगे। उन्हें वही सक्वमान और उनके परिजनों को वही सुविधाओं मिलेंगी जो सेना के जवानों को मिलती हैं। सीआरपीएफ के डीजी श्री त्रिवेदी द्वारा उठाये गये इस कदम पर न्यूज बेंच काफी प्रसन्नता और आभार व्यक्त करता है तथा उक्वमीद करता है कि अन्य अर्द्ध सैनिक बलों में भी इसी तर्ज पर निर्णय लिए जाएंगे। न्यूज बेंच सीआरपीएफ, बीएसएफ, एसएसबी, आईटीबीपी, एनएसजी, सीआईएसएफ तथा आरपीएफ के 9 लाख बहादुर जवानों को तहे दिल से सलाम करता है।

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भवदीय
अनिल पांडेय
(संपादक)

प्रेस विज्ञप्ति

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