नई दिल्ली। नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स (इण्डिया) के राष्ट्रीय महासचिव श्री रतन दीक्षित ने उस खबर को भ्रामक और गलत बताया है जिसमें यह कहा गया है कि आगामी दिनांक 07.12.2015 को पत्रकार सुरक्षा कानून गठन सहित अन्य प्रमुख मांगों को लेकर संसद के समक्ष जो प्रदर्शन कार्यक्रम प्रस्तावित है, उसे निरस्त कर दिया गया है। साथ ही उन्होंने इस खबर का भी खण्डन किया है कि संगठन के अध्यक्ष श्री रास बिहारी जी ने अपने पद से त्याग पत्र दे दिया है।
राष्ट्रीय महासचिव रतन दीक्षित ने सांगठनिक दिशा बोध को स्पष्ट करते हुये बताया कि प्रस्तावित प्रदर्शन कार्यक्रम का नेतृत्व पत्रकार हित में पत्रकारों के द्वारा ही किया जा रहा है। राजनीतिक दलों के निहित वाद-प्रतिवाद का जो समकालीन परिदृश्य-वातावरण है, उससे अलग एन.यू.जे. (आई.) के प्रस्तावित प्रदर्शन का सिर्फ एक लक्ष्य-एक मकसद, एक सामूहिक आवाज यही है कि लोकतंत्र के प्रहरी कहे जाने वाले पत्रकार साथियों की सुरक्षा-संरक्षण और अधिकारों के प्रति केन्द्र व विभिन्न राज्य सरकारें सजग होकर एैसे विधायी उपाय सुनिश्चित करें जो पत्रकार हितों को वास्तविक स्वरूप में संरक्षित करें।
उन्होंने बताया कि पत्रकार सुरक्षा कानून का गठन, मीडिया काउण्सिल की स्थापना व मीडिया आयोग के गठन जैसी महत्वपूर्ण मांगों को लेकर दिनांक 07.12.2015 को संसद के समक्ष प्रदर्शन किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि इस प्रदर्शन में संगठन की विभिन्न राज्य शाखाओं के सैकड़ों पत्रकार साथी तथा इन मुद्दों से सहमत अन्य पत्रकार साथीगण भाग लेंगे। राष्ट्रीय महासचिव ने स्पष्ट किया कि कुछ निहित स्वार्थी तत्व पत्रकारों की एकता को तोड़ने के लिये साजिश कर रहे हैं जिनसे सावधान और सजग रहने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि प्रस्तावित प्रदर्शन को लेकर संगठन के अध्यक्ष श्री रास बिहारी जी के नेतृत्व में समस्त साथी एकजुट हैं।
श्री दीक्षित ने स्पष्ट किया कि एन.यू.जे. (आई.) अब किसी भी स्थिति में पत्रकारों के उत्पीड़न और उनपर हमलों को बर्दाश्त नही करेगीं। केन्द्रीय संगठन व उसकी राज्य शाखाओं के संगठन सामूहिक रूप से इन मुद्दों को लेकर राष्ट्रव्यापी अभियान संचालित करेगें और राज्य सरकारों से यह मांग करेगें कि अपने-अपने राज्य में पत्रकारों की सुरक्षा के लिए प्रभावी उपाय सुनिश्चित किये जाये।
प्रेस रिलीज
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अजय
November 18, 2015 at 10:47 am
बंधुओं, अपनी मांगों में मजीठिया की सिफारिस को भी शामिल कर ले. मजीठिया को लागु करना भी उतना ही जरुरी है. आखिर इस मांग को छोड़ा क्यों गया.