Harish Pathak-
नहीं रहे वरिष्ठ पत्रकार ओम गुप्ता
जन्म : 25 नवम्बर, 1948
मृत्यु : 28 फरवरी, 2021
वरिष्ठ पत्रकार और पत्रकारिता के अध्यापन से जुड़े ओम गुप्ता का 28 फरवरी को निधन हो गया। वे अरसे से अस्वस्थ थे। वे अपने पीछे पत्नी आरती, पुत्र संजोग, संकल्प व पुत्री सिया छोड़ गए हैं। आज 2 मार्च को साकेत, नयी दिल्ली में उनकी स्मृति सभा आयोजित की गई।
ओम गुप्ता देश के उन दुर्लभ पत्रकारों में थे जिनका अंग्रेजी और हिंदी दोनों भाषाओं पर समान अधिकार था। वे अंग्रेजी व हिंदी के कई अखबारों के सम्पादक रहे।वे मूलतः फ़िल्म के पत्रकार थे पर राजनीति की खोजी खबरों ने उन्हें शिखर का पत्रकार बनाया। वे टेक 2 व सुपर जैसी फिल्मी पत्र-पत्रिकाओं व मिड डे (दिल्ली) के सम्पादक रहे। वे इंडिया टुडे, टाइम्स ऑफ इंडिया, इंडियन एक्सप्रेस, पायनियर, कैरेवान आदि में वरिष्ठ पदों पर रहे। इसके अलावा हिंदी में वे दिनमान टाइम्स व कुबेर टाइम्स के दिल्ली संस्करण के सम्पादक रहे।
बाद में वे पत्रकारिता के अध्यापन से जुड़ गए और मीडिया व मैनेजमेंट के चार विद्यालयों में वे डीन रहे।पत्रकारिता पर उनकी 23 किताबें हैं जिनमें मीडिया और सृजन,मीडिया और विचार व मेरे 15 नाटक जैसी पुस्तकें खासी लोकप्रिय हैं।उन्होंने ‘ धूप की लकीरें’ व ‘पूर्वी वसंती’ जैसे टीवी कार्यक्रमों का निर्देशन भी किया।
‘मेरे मन, प्राण पत्रकारिता में ही बसते हैं’ कहनेवाले ओम गुप्ता के अमिताभ बच्चन व अटलबिहारी बाजपेयी से लिये साक्षात्कार आज भी संदर्भ के तौर पर याद किये जाते हैं।
अलविदा हिंदी-अंग्रेजी के पवित्र सेतु।हमेशा खलेगी आपकी कमी।
Umesh Chaturvedi-
वरिष्ठ पत्रकार ओम गुप्ता दो दिन पहले नहीं रहे.. ओम गुप्ता को नई पीढ़ी के बहुत पत्रकार नहीं जानते होंगे। मेरा उनसे गहरा नाता नहीं रहा। हां, उनके प्रति आदर लगातार बना रहा..इसकी वजह रहा उनका अनुकरणीय पत्रकारीय लेखन, खासकर इंटरव्यू लेने एवं लिखने की विशिष्ट शैली..
जब वे अपनी पत्रकारिता के चरम पर थे, तब मैं संकोची और किंचित भीरू भी था..हालांकि उनके दफ्तर ‘स्वतंत्र भारत’ के आईएनएस बिल्डिंग स्थित दिल्ली ब्यूरो के दफ्तर में लगभग रोजाना जाता था.. उसकी वजह वहां फ्रीलांसिंग की गुंजाइश थी।
साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी के छोटे भाई और जहीन पत्रकार राजेंद्र रंजन उस समय स्वतंत्र भारत के टेबलॉयड फार्मेट में रोजाना निकलने वाले फीचर पेजों के दिल्ली संयोजक थे.. एक दौर में जनता दल और बीजेपी कवर करने वाले पत्रकारों के बीच डॉक्टर साहब के नाम से ख्यात राजेंद्र रंजन जी अब पत्रकारिता में नहीं हैं..अरसा हो गया उनको पत्रकारिता से विदाई लिए हुए..
जो नहीं जानते, उन्हें बता दें कि 1996-97 के पहले तक स्वतंत्र भारत उत्तर प्रदेश का प्रतिष्ठित पत्र था। लखनऊ, मुरादाबाद, कानपुर और वाराणसी से उसके संस्करण थे। तब उसका प्रबंधन प्रसिद्ध उद्योगपति थापर के पास था।
उसी स्वतंत्र भारत में ओम गुप्ता ब्यूरो चीफ थे। आम ब्यूरो चीफ लोगों की तरह वे उनकी दिलचस्पी सिर्फ राजनीति की खबरों में ही नहीं रहती थी, बल्कि वे किताब, संस्कृति, सिनेमा आदि में भी आवाजाही रखते थे। उन दिनों स्वतंत्र भारत उनके ऑफबीट साक्षात्कारों के चलते भी जाना जाता था।
हरीश पाठक जी ने उनके बारे में लिखते हुए अटल बिहारी वाजपेयी और अमिताभ बच्चन के इंटरव्यू को रेखांकित किया है। लेकिन मुझे उनके और दो इंटरव्यू याद आ रहे हैं…दोनों ने तब के पत्रकारिता- जिज्ञासुओं के साथ ही पत्रकारों को भी आकर्षित किया था।
इनमें एक था, मशहूर ठग चार्ल्स शोभराज का और दूसरा विनोद खन्ना का। विनोद खन्ना के इंटरव्यू का शीर्षक अभी तक याद है- ‘हां, मैंने सेक्स के लिए शादी की’। विनोद खन्ना ने उन दिनों उम्र में बहुत छोटी कविता से शादी की थी और यह शादी मीडिया में अखबारी वर्चस्व के उस दौर में फिल्मी पन्नों पर छपने वाले समाचारों के साथ ही गपशप का चर्चित विषय थी।
ओम गुप्ता स्वतंत्र भारत में ‘दिल्ली दिनांक’ नाम से साप्ताहिक स्तंभ भी लिखते थे। बीए की पढ़ाई के दौरान बलिया में रहते वक्त इस स्तंभ में प्रकाशित उनके एक लेख ने मुझे जैसे बांध लिया था.. तब ओम गुप्ता दक्षिण दिल्ली के प्रेस एन्क्लेव में रहते थे। पत्रकारों की इस कालोनी में एक दोपहर को अपने किसी मित्र के पास तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह पहुंच गए थे।
प्रधानमंत्री की सुरक्षा के तामझाम के चलते उस दिन आसपास की माताओं को स्कूली बच्चों को जो परेशानी झेलनी पड़ी थी, इसके लिए अपने उस स्तंभ में ओम गुप्ता ने विश्वनाथ प्रताप सिंह को उलाहना दिया था.. उनके पत्रकारीय लेखन के इन पहलुओं ने अवचेतन में ही सही, किंचित मुझे भी प्रभावित जरूर किया है..
विनम्र श्रद्धांजलि!