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सुख-दुख

जनवादी पत्रकार के पीछे पड़ा खुफिया विभाग, जानें कैसे खुद को बचा सके!

रुपेश कुमार सिंह-

कोलकाता में ख़ुफ़िया विभाग के द्वारा मेरी निगरानी क्यों?

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मैं कल यानि 12 नवंबर को कोलकाता के अस्पताल में अपने पैरों के नस से सम्बंधित समस्या को दिखाने के लिए गया था, लेकिन न्यूरो सर्जन डिपार्टमेंट में मरीजों की लगी लम्बी कतार को देखकर हिम्मत हार गया। चूँकि मैंने वापसी का बस टिकट कल रात का ले लिया था, इसलिए समय बिताने के लिए बगल के विक्टोरिया मेमोरियल में 10:30 बजे चला गया। विक्टोरिया मेमोरियल में घुसते ही मुझे लगा कि कोई मेरा पीछा कर रहा है। कन्फर्म होने के लिए मैं इधर-उधर घूमने लगा, तो 2 व्यक्ति (सिविल ड्रेस) को आगे-पीछे करते देखा।

मुझे लगा कि कहीं ये लोग अकेला देखकर मुझे फिर से गिरफ्तार ना कर ले, इसलिए मैंने कोलकाता के एक मानवाधिकार कार्यकर्त्ता को वहाँ आने को बोला। वे एक घंटे में आ गए, उन्हें मैंने सारी बात बताई। तो उन्होंने जादवपुर विश्वविद्यालय के एक छात्र को भी बुला लिया। अब हम एक से तीन हो गए थे, तो हमने भी तस्वीरें खींचनी प्रारम्भ की और उन दोनों का वीडियो भी बनाने लगे। वीडियो बनाते देख दोनों ख़ुफ़िया पुलिस भागने लगे। हमें लगा कि अब ये पीछा नहीं करेंगे।

हमलोगों ने तय किया कि झारखण्ड वापसी की बस तो रात में हैं, इसलिए तबतक जादवपुर विश्वविद्यालय घुमा जाये। लगभग 16 सालों बाद जादवपुर के कैंपस में गया, लेकिन पीछे-पीछे दोनों ख़ुफ़िया पुलिस भी पहुँच गया, तबतक लगभग 2 बज चुके थे। थोड़ी देर बाद पता चला कि एक फोर व्हीलर से सात-आठ और ख़ुफ़िया के लोग गेट पर बिखरे हुए हैं, जिसमें जादवपुर विश्वविद्यालय के अंदर के भी ख़ुफ़िया विभाग के लोग शामिल थे। अब लगने लगा कि शायद फिर से एक बार मेरे खिलाफ बड़ी साजिश रची जा रही है।

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जादवपुर विश्वविद्यालय के कैंटीन पर हम 3 लोग चाय पीने लगे, तबतक कई जानने वाले छात्रों (फेसबुक दोस्त) से मुलाकात हो गयी। सभी से बात करते-करते शाम के लगभग 5 बज गए, लेकिन ख़ुफ़िया पुलिस के लोग अब भी गेट पर जमे हुए थे। तब हमने एक प्रसिद्ध मानवाधिकार कार्यकर्त्ता के घर जाने का प्लान बनाया और सोचा कि अगर अब भी ये लोग नहीं हटेंगे, तो फेसबुक लाइव आकर इस अवैध निगरानी का भंडाफोड़ करेंगे। ख़ुफ़िया वालों को हमारे इरादे का पता चल गया और वे लगभग साढ़े 5 बजे वहां से हट गए। इस मानसिक तनाव के कारण मैंने रात की बस छोड़ दी और आज सुबह ट्रेन पकड़कर झारखण्ड वापस आया हूँ।

जैसा कि आप जानते हैं कि मेरे ऊपर झूठे आरोपों के तहत यूएपीए लगाकर मुझे सरकार ने 6 महीने जेल में रखा, लेकिन पुलिस चार्जशीट भी सब्मिट नहीं कर सकी और मैं डिफ़ॉल्ट बेल पर बाहर आ गया। पिछले दिनों पेगासस जासूसी सॉफ्टवेयर के जरिये भी मेरी निगरानी की कोशिश की गयी, इसमें भी सरकार को कुछ नहीं मिला (इस मामले में मैंने सुप्रीम कोर्ट में रीट भी फाइल किया है)।

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अब आखिर कोलकाता में ख़ुफ़िया पुलिस मेरी निगरानी कर क्या करना चाहती है?

रुपेश कमार सिंह जनवादी पत्रकार हैं और झारखंड में अपनी जनपक्षधर सक्रियता के चलते हमेशा पुलिस प्रशासन व सत्ताओं के निशाने पर रहते हैं. इन्हें अवैध तरीके से गिरफ्तार कर जेल भी भेजा जा चुका है. रिहा होने के बाद से रुपेश जनपक्षधर पत्रकारिता करते हुए आम जन के दुख दर्द और सत्ता के शोषण का लगातार खुलासा करते रहते हैं.

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