बिहार के गया जिले में दम तोड़ रही है पत्रकारिता
बिहार में गया एक प्रमुख शहर है. यहाँ के पत्रकारों से अपेक्षा की जाती है निष्पक्षता और निर्भीकता की. पूर्व में गया में स्वाभिमानी निर्भीक पत्रकार रहे भी हैं परन्तु हाल के दौर में गया के पत्रकारों की लेखनी का स्तर अपने निम्नतम अवस्था में है. बल्कि यह कहना ज्यादा यथोचित होगा कि अब पत्रकार अपने पेशे के बजाय आर्थिक लाभ और व्यक्तिगत स्वार्थ को सर्वोपरि मान रहे हैं.
इधर दो तीन घटनाएं हुई हैं. एक व्यवसायी के घर डकैती की घटना हुई जिसमे डकैतों ने घर की मालकिन की अंगुली के नाख़ून को उघाड़ लिया. कारण था घर में छुपाकर रखे गए पैसे के बारे में जानकारी लेना. हालांकि उक्त व्यवसायी ने मात्र तीन लाख की लूट की रिपोर्ट दर्ज कराई है परन्तु यह डकैती की रकम 2-3 करोड़ की बताई जाती है. उक्त व्यवसायी गया के भाजपा विधायक एवं बिहार सरकार में मंत्री प्रेम कुमार का करीबी है. प्रेम जी का अघोषित व्यवसाय का भागीदार भी है. इस मामले में किसी भी अखबार के पत्रकार ने सच लिखने की हिम्मत नहीं दिखाई. यहाँ तक की प्रशासन की नाकामी पर भी किसी की कलम नहीं उठी.
दूसरा मामला एक स्वर्ण व्यवसायी के दिन दहाड़े अपहरण का है. उक्त व्यवसायी कलकाता से जेवरात लेकर सुबह सात बजे गया के कोचर पेट्रोल पम्प पर बस से उतरा. उसके बाद उसका कोई पता नहीं चल रहा है. उसके परिवार वालों ने उसके अपहरण की रिपोर्ट भी दर्ज कराई है. इस मामले में भी रकम काफी कम दर्शाई गई है जबकि तकरीबन करीब एक करोड़ से ज्यादा के जेवरात के साथ अपहरण की चर्चा खुलेआम हो रही है. आज दस दिन बाद भी गया पुलिस इस मामले में कुछ पता नहीं लगा पाई है परन्तु गया के पत्रकारों की कलम में वह ताकत नहीं है कि पुलिस प्रशासन के खिलाफ आवाज उठा सके.
दैनिक जागरण और दैनिक भास्कर गया के दो अखबार प्रमुख हैं. इन दोनों अखबारों में पत्रकार कम, लायजनर ज्यादा दिखते हैं. दैनिक जागरण में कमल नयन हैं जिन्होंने अपनी पूरे कैरियर में कभी भी प्रशासन के खिलाफ खबर लिखने की हिम्मत नहीं दिखाई है. भास्कर में कमलेश सिंह हैं. ये कभी जहानाबाद राजद के सक्रिय नेता रह चुके हैं. इनका मधुर संबंध गया नगर निगम में उप मेयर मोहन श्रीवास्तव के साथ है. मोहन श्रीवास्तव पटना में होटल में दो लड़कियों के साथ गिरफ्तार हुए थे तथा उन पर अनैतिक देह व्यापार का मुकदमा भी चला था. ऐसे व्यक्ति से एक पत्रकार का संबंध पत्रकारिता के गिरते हुए स्तर को दर्शाने के लिए काफी है.
हालांकि पत्रकारिता में आई गिरावट का दोषी पूर्णत: पत्रकारों को भी नहीं माना जा सकता. अखबारों द्वारा कम वेतन का भुगतान और विज्ञापन लाने का दबाव भी एक बड़ा कारण है गिरावट का. जब पुण्य प्रसून वाजपेयी जैसे पत्रकार को किन्हीं दबावों के कारण आजतक जैसा टीवी चैनल छोड़ना पड़ सकता है तो फिर इन छोटे पत्रकारों की क्या हैसियत है. फिर भी गिरता हुआ स्तर निराश तो करता ही है
Madan Kumar Tiwary
Senior Advocate and Journalist
Gaya, Bihar