रांची : इससे बड़ा शर्मनाक कुछ नहीं हो सकता कि एक पत्रकार अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए वेटर का काम करे। वह भी दो दिन फांका करने के बाद। पत्रकार और उसके परिवार वालों ने दो दिन हलवा बना कर खाया। वह पत्रकार भी इतना खुदगर्ज कि स्वयं भूखा रहा, लेकिन चेहरे की हंसी नहीं गयी। हां, जब खबर मन्त्र में को-ऑडिर्नेटर एडिटर नीरज सिन्हा ने पूछा, तो उसकी आंखें छलछला गयीं।
नीरज सिन्हा भी भौचक रह गये। तब तक इस घटना की जानकारी उस पत्रकार के अन्य साथियों को भी हो गयी। सभी दुखी। खबर मन्त्र के एडिटोरियल कर्मचारियों को अभी तक फरवरी माह का भी वेतन नहीं मिला है। जबकि मार्च महीना बीतने को है। नीरज सिन्हा उस पत्रकार को लेकर खबर मन्त्र के संपादक के पास गये। सारी बातें बतायीं गयीं। फिर उसे दस हजार रुपये का भुगतान किया गया। बेचारा पत्रकार तीन दिन वेटर का काम करके छह सौ रुपये पाया और अपनी घर चावल-दाल और कुछ सब्जी का इंतजाम कर पाया।
खबर मन्त्र के एडिटोरियल साथियों की हालत तो खराब है ही, सेंटरों पर कार्यरत पत्रकारों की भी हालत खराब है। उन्हें भी पिछले पांच-छह माह से वेतन नहीं मिला है। रांची और आसपास के रिपोर्टरों को तो आज तक एक भी माह का मेहनताना नहीं दिया गया है। पैसे की तंगी का आलम यह है कि खबर मन्त्र जमशेदपुर में काम करने वाले सुनील पांडेय ने संपादक को मेल भेजा, जो बहुत ही मार्मिक है। उसमें कहा गया है कि पिछले कई माह से वेतन नहीं दिया जा रहा है, जिस कारण मैं कर्ज में डूब रहा हूं। बेटा-बेटी का एडमिशन कराना है। और भी बहुत सारे खर्चे हैं। ऐसे में वेतन का भुगतान नहीं हुआ तो मैं आत्महत्या कर लूंगा।
18 मार्च को खबर मन्त्र के खूंटी के रिपोर्टर की तबीयत काफी खराब हो गयी। डॉक्टर ने ढेर सारा चेकअप और दवाइयां लिख दीं। बेचारे खूंटी के रिपोर्टर को चार माह से वेतन नहीं मिला था। परेशान होकर उसने अपने बेटा और बेटी को खबर मन्त्र ऑफिस भेजा। संयोग देखिये कि खबर मन्त्र ऑफिस में कुछ तनाव चल रहा था, सो उन्हें टरका दिया गया। उनके लड़कों ने डॉक्टर का लिखा सारा कागज ऑफिस में ही छोड़ दिया और कहा कि जब पैसे ही नहीं रहेंगे, तो इन कागज का क्या करेंगे। अगले दिन एक एडिटोरियल के सीनियर साथी ने खबर मन्त्र के को-ऑर्डिनेटर एडिटर नीरज सिन्हा से बात की। उन्होंने संपादक से बात की, तब जाकर उनके बेटा-बेटी को बुला कर दस हजार रुपये का भुगतान किया गया।
Comments on “पत्रकारों की फांकाकशी पर संपादक कुछ तो शर्म करो”
इतना भावुक काहे हो रहे हो भाई। जब एक धंंधे से रोटी न मिले तो दूसरे में हाथ आजमा लेना चाहिए। वेटरी की कोई गांजा तो नहीं बेचा। इन साले लालाओं के अखबारों में काम करने से तो अच्छा है कि वेटरी करें या गांजा बेचें। जय भैरव बाबा की।