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सुख-दुख

मैंने अपने जीवन का बहुत बड़ा हिस्सा ब्रह्मचर्य जैसी मूर्खतापूर्ण फिलासफियों के चक्कर में पड़कर सेक्स के बिना गुजारा : बालेन्दु गोस्वामी

बालेन्दु गोस्वामी-

पोर्नोग्राफी और वैश्यावृत्ति… आजकल पोर्नोग्राफी और वैश्यावृत्ति को लेकर बहुत चर्चा चल रही है. एक पक्ष इसे काम का अधिकार, व्यवसाय की स्वतंत्रता की बात करते हुए लीगल कर देने के पक्ष में है और दूसरा पक्ष इसे स्त्री की अस्मिता, नैतिकता और शोषण की बात करते हुए औरत को उपभोग की वस्तु बनाकर पूंजीवाद के द्वारा माल की तरह बेचे जाने की बात करता है.

मैं अपने उन मित्रों के सिद्धांतों और उच्चतम आदर्शों का सम्मान करता हूँ, जिनमें कि वो हर तरह के शरीरिक श्रम को बेचने और खरीदने की खिलाफत करते हैं. क्योकि यही पूंजीवाद है. मैं भी पूंजीवाद के खिलाफ हूँ. परन्तु वर्तमान व्यवस्था में इस विषय पर शोषण के खिलाफ मेरे विचार लिखने का प्रयास कर रहा हूँ.

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वैश्यावृत्ति के व्यवसाय में निश्चित रूप से महिलाएं ही अधिसंख्य हैं क्योंकि पुरुष खरीदार है. हालाँकि आज के समय में बहुत कम संख्या में ही, परन्तु जिगोलो (पुरुष वैश्या) भी इस व्यवसाय में स्वयं को (अपने शरीर और श्रम) को आजमा रहे हैं. मुझे लगता है कि यहाँ भी गणित वही है, क्योंकि महिला खरीदार कम हैं इसलिए पुरुषों की संख्या भी इस व्यवसाय में कम है.

हालाँकि पुरुष वैश्यावृत्ति के अलावा यहाँ यूरोप में मेल स्ट्रिपर्स भी क्लबों में, स्टेज पर और प्राइवेट पार्टियों में अपनी सेवाएँ देते हैं और निश्चित ही उनकी सेवाओं की खरीदार महिलाएं ही हैं. जहाँ तक पोर्नोग्राफी की बात है वहां पुरुष अभिनेताओं का अनुपात वैश्यावृत्ति में संलग्न पुरुषों से ज्यादा है परन्तु फिर भी महिलाओं से कम ही है. यहाँ भी गणित वही, खरीदार और बिकने वाले माल का ही है. पोर्नोग्राफी में पुरुषों की संख्या ज्यादा इसलिए है, क्योंकि वहां प्रदर्शन में दोनों की जरुरत है और महिलाओं की खरीदार के रूप में संख्या ज्यादा है.

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आइये अब जरा पोर्न फिल्मों की तुलना मेन स्ट्रीम की बालीवुड या हालीवुड की सेक्सी फिल्मों से करें! जहाँ पेड़ों के चक्कर लगाती, पानी में भीगती या बहुत ही कम कपड़ों में उत्तेजक सेक्सी डांस करती नायिका क्या अपने शरीर को दिखाकर दर्शकों को आकर्षित और उनका मनोरंजन करने का प्रयास नहीं कर रही होती? कुछ फिल्मों में तो न्यूड, सेक्स और बलात्कार के दृश्य भी फिल्माए जाते हैं. क्या यह शरीर और शरीर की सेवाएँ बेचने का प्रयास नहीं है? यहाँ भी फंडा वही है कि मार्केट में इसके खरीदार हैं इसीलिए ये बिक रहा है.

परन्तु पोर्न फिल्मों की आलोचना करने वालों को मेन स्ट्रीम की सेक्सी फ़िल्में स्वीकार्य हैं! क्या इसलिए कि उसमें खुल के सेक्स को नहीं दिखाया गया है? अच्छा खुल कर दिखाने का पैमाना तो सब के लिए अलग हो सकता है! मेरे ख्याल में तो ये अपने अपने टेस्ट की बात है. या फिर उन्हें ये स्वीकार्य इसलिए है कि इसमें काम करने वाली नायिका कोई बहुत शोहरत वाली सेलिब्रिटी है और फिल्मों में काम करने का करोड़ों रुपया लेती है!

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निश्चित ही शोहरत की बुलन्दियों पर पहुंची करोड़ों कमाने वाली अभिनेत्री का शोषण नहीं हो रहा और वो जो भी कर रही है अपनी मर्जी से कर रही है. वो इसलिए ये कार्य कर रही है क्योंकि उसे ये करना अच्छा लगता है और वो इससे अच्छे पैसे भी कमा सकती है.

शोषण तो कहीं भी गलत है. भले ही वो ईंट गारा ढोने वाले मजदूर का हो या फिर फैक्ट्री में काम करने वाली लेबर का हो या फिर मेन स्ट्रीम फिल्मों में काम करने वाली नई, उभरती या पुरानी अभिनेत्री या अभिनेता का हो अथवा पोर्न फिल्मों में काम करने वाली या वैश्यावृत्ति करने वाली औरत का हो!

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मैं ये नहीं कहता कि पोर्नोग्राफी या वैश्यावृत्ति के व्यवसाय में शोषण नहीं होता. बिलकुल होता है, और वैसा ही होता है जैसे कि अन्य व्यवसायों में भी होता है. परन्तु यकीन मानिए मैंने केवल पोर्न फिल्मों में काम करने वालों के इंटरव्यू ही नहीं पढ़े कि उन्हें सेक्स इतना अच्छा लगता था कि यही पसंदगी उन्हें इस व्यवसाय में ले आई, कि वो इससे अपनी आजीविका भी कमाने लगी. बल्कि मैं व्यक्तिगत रूप से भी ऐसी बहुत सी महिलाओं से मिल चुका हूँ जोकि पोर्नोंग्राफ़ी और वैश्यावृत्ति में संलग्न हैं उससे पैसा कमा रहीं हैं. अपनी मर्जी से ये काम कर रहीं हैं. उनका कोई शोषण नहीं हो रहा. परिवार भी है, टैक्स भी देती हैं और सुपर मार्केट में शॉपिंग करते हुए भी मिल जाती हैं.

हाँ ये मानता हूँ कि भारत जैसे देश में, जहाँ सेक्स पर बात करना भी अनैतिक है और पोर्नोंग्राफी तथा वैश्यावृत्ति गैरकानूनी है, वहाँ निश्चित ही शोषण की संभावनाएं अधिक हैं. मुझे पता है कि भारत में मेरे इन विचारों का विरोध करने वाले लोग ही अधिक होंगे परन्तु फिर भी मैं स्पष्ट रूप से अपने विचार रखुंगा. मेरे विचार से इसे कानूनी रूप देना उचित होगा क्यों कि उससे शोषण की सभी नहीं तो अधिकांश संभावनाएं समाप्त होंगीं. इसका विरोध करने वाले लोग असल में शोषण की संभावनाओं को और भी मजबूत कर रहे हैं.

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आइये अब विचार करते हैं इससे जुड़े नैतिकता के सवालों पर! निश्चित ही नैतिकता के पैमाने देश, काल, परिस्थिति और वातावरण के अनुसार बदलते रहते हैं. उदाहरण के लिए यहाँ यूरोप के स्कूलों में 9 साल के बच्चों को सेक्स एजुकेशन दिया जाना पूरी तरह से नैतिक और आवश्यक है परन्तु भारत में जवान बच्चों के साथ भी इस विषय पर बात करना अनैतिक माना जाएगा.

मैं व्यक्तिगत रूप से सेक्स को नैतिकता से नहीं जोड़ता. धोखा देना, झूठ बोलना, शोषण करना या किसी की मज़बूरी का फायदा उठाना किसी भी रूप या किसी भी क्षेत्र में अनैतिक और गलत है. परन्तु मैं दुनिया की सबसे खूबसूरत और सुख देने वाली चीज “सेक्स” को नैतिकता से नहीं जोड़ सकता.

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मैंने अपने जीवन का एक बहुत बड़ा हिस्सा ब्रह्मचर्य जैसी मूर्खतापूर्ण और अप्राकृतिक फिलासफियों के चक्कर में पड़कर सेक्स के बिना गुजारा परन्तु जब से सेक्स का सुख लेना शुरू किया तो वो इतनी आसानी से सहज ही उपलब्ध था कि उसे पैसे से खरीदने की कोई आवश्यकता भी महसूस नहीं हुई और उसके प्रति आकर्षण भी नहीं हुआ.

चूँकि मुझे सच कहने में कोई परेशानी नहीं है इसलिए आपको बताना चाहता हूँ कि टीन एज मतलब कि किशोरावस्था के स्कूल के जमाने में ही कोर्स की किताबों के बीच में मस्तराम के सस्ते घटिया पोर्न साहित्य को पढ़कर जो शारीरिक सनसनी होती थी, उस आनन्द का वर्णन करना असंभव है. उस समय इंटरनेट तो क्या हमारे पास टीवी भी नहीं था. परन्तु जब बड़ी क्लास का एक लड़का कहीं से सेक्स चित्रों की रंगीन एल्बम ले आया था तो उसे हमने 50 पैसे देकर 24 घंटे के लिए किराए पर लिया था. जोकि हमारा 2 दिन का जेब खर्च था, उस जमाने में माँ से रोज 25 पैसे स्कूल में चाट खाने को मिलते थे.

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खजुराहो और अजंता एलोरा में भी तो आज से हजार साल पहले पोर्न का चित्रण करके लोग अपना मनोरंजन ही करते थे. बारहवीं शताब्दी की रचना गीत गोविन्द में भी तो राधा कृष्ण के पोर्न का वर्णन है.

एडिक्शन यानि कि लत लग जाना तो किसी भी चीज का बुरा होता है परन्तु मैं पोर्न को इतना बुरा भी नहीं मानता. किसी को हॉरर फिल्म अच्छी लगती है, किसी को को जासूसी, किसी को एक्शन, किसी को कॉमेडी, तो हो सकता है कि किसी को सेक्स फिल्म अच्छी लगती हो. मैं बिलकुल मानता हूँ, कि कुछ लोगों को पोर्न नहीं अच्छा लगता होगा. ऐसे भी लोग हैं जिन्हें सेक्स भी बहुत अच्छा नहीं लगता या फिर कम अच्छा लगता है. एक चुटकुला तो ऐसा भी पढ़ा था कि एक मौलवी साहब जब फैशन टीवी देखते पकड़े गए तो हकबका कर बोले कि खुदा कसम मैं तो इसे नफरत की निगाह से देख रहा था.

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परन्तु बहुत से लोगों को सेक्स अच्छा लगता है. उससे जुड़ी बातें अच्छी लगतीं हैं और उसकी फ़िल्में भी अच्छी लगतीं हैं. आखिर इसमें बुरा क्या है? आधे घंटे तक अगर केवल अन्दर बाहर, अन्दर बाहर हो रहा हो तो कोई भी बोर हो जाएगा परन्तु अगर अच्छे से किसी स्टोरी के साथ फिल्माया गया हो और थोड़ा क्लासिकल हो तो मुझे भी पोर्न अच्छा लगता है. मैं भी कभी कभी बीबी के साथ बैठकर देखता हूँ.

मैं तो ऐसे लोगों से भी बात करता हूँ जोकि बताते हैं कि पोर्न देखकर होने वाली उत्तेजना के साथ ही वो हस्तमैथुन का सुख ले लेते हैं. उनके पास सेक्स सुख लेने का यही साधन है. परन्तु जिस संस्कृति में अथवा जिन लोगों के लिए सेक्स तब्बू है उनके लिए पोर्न भी तब्बू ही होगा.

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मुझे तो सेक्स अच्छा लगता है. उससे जुड़ी हर चीज अच्छी लगती है. उसे देखना भी अच्छा लगता है. स्क्रीन पर ही क्या बहुत से लोगों को तो लाइव भी देखना अच्छा लगता है. इतना अच्छा लगता था कि किशोरावस्था में पड़ोसी की खुली खिड़की में से एक झलक केवल मिल जाए उसके लिए घंटों का इन्तजार भी कर लेते थे.

लोग अपना दिमाग (इंटेलिजेंस) बेचते हैं, गला (गाना), कला अथवा हाथ पैर का शारीरिक श्रम बेचते हैं तो उसमें किसी को कोई परेशानी नहीं है. परन्तु वेश्यावृत्ति में आपको परेशानी केवल इसलिए है कि उसका सम्बन्ध स्त्री की योनि से है? हाथ पैर की तरह योनि भी शरीर का एक अंग ही तो है. यदि कोई सेक्स करके पैसा कमा रही या रहा है तो वो भी तो उसका शारीरिक श्रम ही तो है! आप मालिश कराने, चम्पी कराने जाते हैं तो आपको सुख मिलता है और जिस ग्राहक से पैसे लेकर एक वेश्या सेक्स सेवाएँ दे रही है वो भी उसे सुख ही तो दे रही है! इसमें गलत क्या है?

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हाँ शोषण कहीं भी हो रहा हो या किसी की भी मज़बूरी का फायदा उठाया जा रहा हो वो तो हमेशा और हर जगह ही गलत होगा. परन्तु योनि को इज्जत से मत जोडिए, सेक्स संबंधों को अस्मिता से मत जोडिए.

आखिरी में अपनी बात को इन शब्दों से समाप्त करूँगा कि ख़ास तौर से भारत जैसे देश में बच्चों को सेक्स शिक्षा दीजिए, उनसे इस विषय पर खुल कर बात करिए. इस तरह से आप उनके संभावित शोषण से उन्हें बचा पाएंगे. पोर्न और वैश्यावृत्ति को आपराधिक नहीं क़ानूनी बनाइये तो इससे होने वाले शोषण से मुक्ति की सम्भावनाये जगाएँगे.

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1 Comment

1 Comment

  1. Abhay

    July 29, 2023 at 9:13 pm

    Balendru Humko Milo aa kar Batate hai tumko

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