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सुख-दुख

आंखें कमजोर थी पर दृष्टि पैनी थी प्रदीप भाई की

राजेश अग्रवाल-

हंसमुख, मृदुभाषी लेकिन समय-समय पर कटाक्ष कर आईना भी दिखाने वाले प्रदीप आर्य pradeep arya भाई का आज दोपहर करीब तीन बजे कोरोना संक्रमण के चलते निधन हो गया। खबर सुनकर व्यथित हूं। करीब तीन दशक का साथी रहा। हमने साथ-साथ लोकस्वर से काम शुरू किया और करीब 10 साल देशबन्धु में साथ रहे।

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वरिष्ठ पत्रकार और कार्टूनिस्ट श्री प्रदीप आर्य नहीं रहे!

रिपोर्टिंग और सम्पादन में निपुण होते हुए भी उनका एकमात्र लगाव कार्टून की ओर रहा। 90 के दशक में जब उन्होंने कार्टून बनाना शुरू किया तो जाहिर है, धार की कमी थी। मेरी आलोचना के शिकार हुआ करते थे। कई मौके आये जब किसी विषय पर बनाये गये कार्टून को बार-बार सुधारने कहा, फिर पेज पर जगह दी जा सकी। अपनी आलोचना का कभी बुरा नहीं माना और हमेशा खुद को परिष्कृत करते रहे। उन्हें तनख्वाह रिपोर्टिंग और डेस्क की मिलती थी पर पहचान कार्टून की वजह से थी।

इन दिनों न केवल स्थानीय विषयों पर बल्कि राष्ट्रीय मुद्दों पर उनके कार्टून देखकर मैं हैरान होता रहा। कोरोना संक्रमण पर तो उन्होंने कई शानदार कार्टून बनाये। कुछ दिन पहले ही तेज धार, गहरी चोट वाले कार्टून तैयार करने पर मैंने उसे बधाई दी थी।

सब साथी देशबन्धु छोड़कर अपनी-अपनी अलग राह निकल गये लेकिन उन्होंने वहां करीब 30 साल काम किया। बीते साल ही उन्होंने इस अख़बार से विदाई ली थी। कहा था- मायूसी के साथ छोड़ा, वजह की बात रहने दें।

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खैर, उनके मित्र दूसरे अख़बारों में बैठे हुए हैं। जो कभी साथ काम करते थे। इन दिनों रोजाना लोकस्वर में उनका कार्टून छप रहा था। सम्पादकीय पन्ने पर अब आपको उनके रेखाचित्र नहीं दिखेंगे।

करीबी दोस्तों को पता है कि वे युवावस्था से ही आंख की बीमारी से जूझते रहे। बड़ी, फिर और बड़ी लैंस का चश्मा लगता रहा। वे काम करते-करते हर घंटे, आधे घंटे में चश्मा उतारकर आंखों से निकले पानी को पोंछते थे। आंखों की हिफाजत के लिये कई बार उन्हें चेन्नई, चंडीगढ़ जाकर भर्ती होना पड़ा। पर इस शारीरिक पीड़ा को उन्होंने कभी रोड़ा नहीं माना। खुशमिजाजी कम नहीं हुई। आंखें कमजोर थी मगर दृष्टि बड़ी तीखी थी। इसका प्रतिबिम्ब उनके कार्टून में दिखाई देता है।

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अपनी स्कूटर में अक्सर प्रदीप को घुमाने ले जाने वाले सहकर्मी, हमारे व्यंग्य कार मित्र अतुल खरे कह रहे थे कि खबर सुनकर स्तब्ध हूं। लग रहा है जैसे मेरे जिस्म का एक हिस्सा मुझसे अलग हो गया।

विडम्बना ही कहूंगा कि मेरे घर से सिर्फ 50 कदम के भीतर वह आरबी अस्पताल है जहां प्रदीप ने अंतिम सांसें लीं, मगर न मैं उसका चेहरा देख पाया, न कांधा दे सका। मना किया गया। आपदा ही कुछ ऐसी है।

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प्रदीप भाई के परिवार को साहस, संबल मिले। हम सदा साथ हैं। दैनिक अखबारों में नियमित छपने वाले बिलासपुर के पहले कार्टूनिस्ट को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि।

प्रदीप के साथ बरसों काम किये वरिष्ठ पत्रकार राजेश अग्रवाल की फेसबुक वाल से।

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