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सुख-दुख

दुनिया से अत्यधिक प्रेम करना और सौ साल जीने की कामना सुख से अधिक दुख ही लेकर आती है!

प्रतीक्षा पांडेय-

स्कूल में कुछ लड़कियां होती थीं जो टॉप करने के साथ-साथ हर एक्टिविटी में ‘ए’ लाया करती थीं. हॉस्टल में कुछ लड़कियां थीं जो पुरानी जींस काटकर झोले और दही के कप्स से पेन स्टैंड बना लिया करतीं. मैं कभी उतनी जुगाड़ू या रिसोर्सफुल नहीं हो सकी. मैं कभी वो व्यक्ति नहीं हुई जो लोगों का काम करवा सके. किसी को प्रताड़ना से बचाना, किसी को कोविड की लहर में ऑक्सीजन सिलेंडर दिलवाना- मैंने कुछ नहीं किया. ड्राइविंग सीखने के बावजूद इतना हाथ साफ़ नहीं है कि किसी को बीच रात अस्पताल ले जाना हो और मैं काम आ सकूं. मेरे जीवन में नेटवर्किंग के नाम पर कुछ नहीं है. सभी मौके, यहां तक कि मेरी नौकरी, एक अच्छे संयोग से आई. काबीलियत के नाम पर मेरे पास न अकेडमिक दौर में कुछ था, न आज जीवन के प्रोफेशनल दौर में है. मैं सेकंड डिवीजन पास हूं और साल के अधिकतर दिनों में कविताएं मुझसे रूठी रहती हैं.

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30 साल की उम्र में मैंने प्रेम के सिवा कुछ नहीं किया और मुझे यकीन है कि मेरे साथ जो भी अच्छा घटता है वो प्रेम कर पाने की वजह से घटता है. मैंने प्रेम के लिए बड़े फैसले लिए और कई बड़े फैसले लेने से खुद को रोक भी लिया. मैंने कई बार खुद से सवाल किया कि दूसरों को मुझसे रूठा न देख पाना क्या उनसे लगातार वैलिडेशन पाते रहने की कवायद है. मगर मैंने बार-बार पाया कि वे मेरे बारे में क्या सोचते हैं इससे मुझे फर्क नहीं पड़ता. मगर इससे ज़रूर पड़ता है कि वे मेरी आंखों के सामने उदास हैं, परेशान हैं. ये एक चारित्रिक खामी है. क्योंकि ये आपको हमेशा परेशान और गिल्ट में रखती है. आपको लगने लगता है कि उनकी उदासी की वजह आप ही हैं जबकि सबकी अपनी उदासियों की वजह कोई व्यक्ति नहीं बल्कि उनकी खुद की परिस्थितियां होती हैं.

जिन चीजों को करने के लिए कोई मोटिवेशन नहीं होता, प्रेम उन चीजों को करवाने का ईंधन बनता रहा. उम्र या पद में बड़े किसी व्यक्ति के कहे को निर्देश मानकर मैं कोई काम नहीं कर पाई, प्रेमवश किया, इसलिए किया कि वे निराश न हों. ये कोई त्याग की बात नहीं है, ये मुझे लगातार खुश और तुष्ट करता आया है.

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दुखद ये है के ये दुनिया रहने के लिए एक बेहद त्रासद जगह है और जिस दिन सब खुश होने होंगे उस दिन भी कोई उदास और परेशान दिख जाएगा. दुनिया से अत्यधिक प्रेम करना और सौ साल जीने की कामना सुख से अधिक दुख ही लेकर आती है. मुझे उन लोगों से रश्क होता है जिनके पास कोई हॉबी है, एम्बिशन है, मन में कुछ तय टारगेट्स हैं क्योंकि उनके पास खुश या दुखी होने और हर घटते सेकंड का विश्लेषण करने का वक़्त नहीं है. अगर फोन पर कुछ देखते हुए आपको देर-सबेर नींद आ जाती है तो आप फिर भी खुशनसीब हैं क्योंकि ये जागकर रिश्तों के बारे में सोचने से बेहतर है.

मैंने पाया कि मुझे फ़िल्में और सिरीज देखना पसंद है लेकिन मैंने उसके किरदारों तक से अत्यधिक प्रेम कर लिया और अंतिम एपिसोड देखने के बाद घंटों सोचा. मैंने खाना पकाने में सुकून पाया मगर कुछ समय बाद जाना कि सुख गैस स्टोव बंद करते ही खाने को किसी को चखवाकर उसके चहरे पर ज़ायके की मुस्कान देखने का है, पकाने का नहीं.

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मुझे लगता है कि लिखते रहना मुझे खुद से एक ब्रेक दिलवाता है मगर लिखते-लिखते ऐसा लगता है जैसे जो मन में था वो अचानक ख़तम हो गया है और जिस तरह मैंने टेक ऑफ़ किया था, उस तरह लैंडिंग नहीं की है. मैं कुछ लिखने की शुरुआत के बाद उसे समेट नहीं पाती हूं और कहीं और पहुंच जाती हूं. ये भी एक चारित्रिक खामी है अत्यधिक प्रेम की तरह.

प्रतीक्षा पांडेय इंडिया टुडे ग्रुप की प्रतिभाशाली पत्रकार हैं.

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