
Vivek Shukla : कुछ देर पहले पता चला कि आज रेडियो डे है। इसलिए याद आ गई देवकीनन्दन पांडे जी के साथ 1987 में हुई यादगार मुलाकात की। वे तब लक्ष्मी बाई नगर के एक सरकारी फ्लैट में शिफ्ट किए थे किदवई नगर से। उन्हें वह सरकारी घर कैबिनेट मंत्री वसंत साठे के प्रयासों से मिला था। पांडे जी के पास रिटायर होने के बाद दिल्ली में अपनी छत नहीं थी। साठे जी ने पांडे जी को आर्टिस्ट कोटे से घर दिलवा दिया था। ये सब उन्होंने मुझे बताया था।
कनॉट प्लेस से 505 नंबर की बस में पांडे जी के घर पहुंचा तो वे घर के बाहर एक कुर्सी पर बैठे थे। वहां पर सरकारी बाबुओं के बच्चे खेल रहे थे। उनका अब बंद हो गए हिन्दुस्तान टाइम्स के पेपर ईवनिंग न्यूज के लिए इंटरव्यू करना था।
तब तक दिल्ली हाट शुरू नहीं हुआ था। रेडियो मे खबरें सुनने वाली अब पचास पार कर गई पीढ़ी के लिए पांडे जी किसी लीजैंड से कम नहीं थे। उनसे मिलने सेपहले कुछ डरा हुआ था। पर उन्होंने मुझसे प्रेम से बात शुरू की तो बात से बात निकलने लगी।

अपने जीवन काल में ही पांडे जी समाचार वाचन की एक संस्था बन गए थे। उनके समाचार पढ़ने का अंदाज़, उच्चारण की शुद्धता, स्वर की गंभीरता और प्रसंग के अनुरूप उतार-चढ़ाव श्रोता को एक रोमांच की स्थिति में ले आता था।
सिगरेट का कश लेते हुए पांडे जी ने बताया था कि उनका परिवार कुमाऊँ का था। वे 1950 के आसपास आकाशवाणी के दिल्ली स्टेशन में आ गए थे। उसके बाद उन्होंने आकाशवाणी के सबसे खास रात पौने 9 बजे और सुबह आठ बजे के हजारों बुलेटिन पढ़े। जसदेव सिंह बार-बार कहते थे कि वे पांडे जी को सुनने के बाद ही रेड़ियो से जुड़े। देवकीनंदन पांडे की आवाज़ भारत के जन जन को अपनी तरफ खींचती थी।
एक सवाल के जवाब में पांडे जी ने कहा था कि हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा ज़रूर है लेकिन वाचिक परंपरा में उर्दू के शब्दों को लेना चाहिए। पांडे जी ने जब आई पी एक्सटेंशन में शिफ्ट किया तो भी उनसे मिलना होता रहा। वे कहते थे कि समाचार वाचक बुलेटिन को समझ लेने के बाद ही पढ़ना चाहिए।
देवकीनंदन पांडे के बारे में कहा जाता था कि वे अपने बुलेटिन पर कलम से मार्किंग नहीं करते थे। उन्हें पता होता था कि उन्हें कहां पॉज़ देना है या कहाँ पर स्ट्रेस देना है। अब उनके म्यार का दूसरा समचार वा चक नहीं होगा।
वरिष्ठ पत्रकार विवेक शुक्ला की एफबी वॉल से.
Comments on “रेडियो डे : अब आप देवकीनन्दन पांडे से समाचार सुनिए”
shandar lekh. shukriya shukla ji.