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सुख-दुख

मुझे रजनीश की आंखें नशीली लगती थीं, कभी उसके पेनिस ने आकर्षित नहीं किया!

सत्येंद्र पी एस-

लक्ष्मी, शीला और हास्या। तीन महिलाओं ने रजनीश के जीवन में अहम भूमिका निभाई। लक्ष्मी ने रजनीश को भारत मे हीरो बनाया और शीला ने उन्हें वैश्विक गुरु बना दिया। रजनीश इंडिया में थे तब तक रजनीश थे।

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अमेरिका में उनको भगवान कहा जाने लगा। जब अमेरिका से भागकर भारत आए तो उन्होंने कहा कि मैं कोई भगवान नहीं हूँ तो उनके चेलों ने कहा कि फिर आपको किस नाम से पुकारें? फिर किसी ने ओशो नाम का सुझाव दिया, जो जापानी में गुरु को सम्मानपूर्वक कहा जाता था और वह ओशो हो गए।
सबसे मजबूत कैरेक्टर शीला का लगा। उसकी तुलना में रजनीश बौने लगते हैं। अगर रजनीश हास्या के चक्कर में नशेड़ी नहीं हो गए होते तो शीला सब कुछ सम्भाल लेती।

शीला इतनी बड़ी भक्तिन लगती है कि अगर आप गौर से सुनें तो फील कर पाएंगे कि वह रजनीश की तरह ही चबा चबाकर बोलती थी, रजनीश की तरह ही एरोगेंट थी, रजनीश की वायस कॉपी करती थी। अगर रजनीश ड्रग्स में न डूबते, हॉलीवुड के पैसे के लालच में न पड़ते तो शीला उनकी अच्छी उत्तराधिकारी साबित होती। कम्यून एक शानदार कंसेप्ट था।

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अमेरिका में कुल 5 साल रजनीश का खेल चला। उतने में अमेरिकी रजनीश के दीवाने बनते जा रहे थे। हथियार रखने से लेकर ट्रेनिंग वगैरा का काम वहां के कानून के मुताबिक था। ड्रग्स गड़बड़ था। नशे और नशेड़ियों के आने के बाद मामला बिगड़ा, उसके पहले का शीला का जबरदस्त बयान था कि हम बगैर शराब, बगैर नशे के जिंदगी का आनन्द ले रहे हैं।

और असल लड़ाई ईसाई बनाम अदर कल्ट बन गया। अमेरिकी जांच अधिकारी लफ्फाजी कर रहे थे और नया नया टीवी इस मामले को पीपली लाइव बना चुका था। लोकल लोगों को समझ मे नहीं आ रहा था कि ये नङ्गे पुंगे लोग कर क्या रहे हैं? कौन है ये बन्दा, जो यहां आकर उत्पात काटे हुए है? और उन्हें धीरे धीरे एनजीओ और पीपली लाइव बनाने वाली मीडिया का साथ मिलता गया। शीला डरती गई, सुरक्षा बढ़ाती गई। और कम्यून में ड्रग्स घुसने के बाद सब गुड़ गोबर हो गया।

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नशे के आदी हो चुके रजनीश आखिरी वक्त में शीला को रंडी बताते, गरियाते और कभी उसे वापस लौट आने का आह्वान करने में हुटकते रहे। शीला फिर नहीं लौटी। रजनीश ने शीला को खूब बद्दुआएं दीं, उसके आत्महत्या कर लेने, जेल में सड़ जाने की भविष्यवाणी की। लेकिन शीला अभी भी जिंदा है। शीला उनकी ड्रग्स लेने की आदत से खिन्न थी कि यह रजनीश को मार डालेगी और शीला की भविष्यवाणी सही साबित हुई। शीला के कम्यून छोड़ने के 5 साल के भीतर रजनीश नशे के ओवरडोज में मर गए।

यह पूछे जाने पर कि क्या आपने रजनीश के साथ सेक्स किया? शीला का वह बयान बहुत मस्त लगा कि मुझे रजनीश की आंखें नशीली लगती थीं, कभी उसके पेनिस ने आकर्षित नहीं किया। शीला के पैसे वैसे लेकर भागने की बात भी माया लगती है, क्योंकि रजनीश कम्यून छोड़ने वालियों की भूखों मरने की नौबत आ गई तब शीला ने जर्मन स्टर्न मैगजीन से पैसे लेकर अपनी नंगी फोटो उसके कवर पेज के लिए खिंचवाई थी।

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आखिरकार अमेरिका के रजनीशपुरम को एक बिल्डर ने खरीदकर ईसाई धर्म को समर्पित कर दिया, जहां अब लोगों को सेक्स से दूर रहने और यीशु की जय जय करने की शिक्षा दी जाती है।नेटफ्लिक्स पर वाइल्ड वाइल्ड कंट्री देखने लायक डाक्यूमेंट्री है।

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4 Comments

4 Comments

  1. Harjinder

    July 20, 2023 at 6:23 pm

    Bkwaas

  2. अशोक कुमार शर्मा

    July 20, 2023 at 7:42 pm

    ज्ञान की एक सीमा हुआ करती है और यह तय है कि हर ज्ञान की होती है। पत्रकारिता में आने के बाद हर साल मुझे कोई ना कोई ऐसा जरूर मिला जिसके ज्ञान के सामने अपना ज्ञान तुच्छ और बौना लगा।

    मैंने रजनीश पर बहुत स्कूप लिखे। अपने ज़माने की विख्यात पत्रिका”माया” में रहते हुए आचार्य रजनीश के रूप में उनकी गतिविधियों का एक रिपोर्ताज लिखा था। जिसमें उनके आश्रम के कुछ फोटोग्राफ्स ने उनको काफी हानि पहुंचाई थी। इसके बावजूद जब मैं उनसे दोबारा मिलने के लिए पुणे पहुंचा तो उन्होंने मुझसे सिर्फ इतना ही कहा कि आपने मेरे बारे में जो कुछ भी लिखा वह एकपक्षीय था। लेकिन मैं आपसे नाराज नहीं हूं उम्मीद करता हूं कि आप अपना नजरिया व्यापक बनाएंगे। लेकिन मैं उनके बारे में जो राय कायम किए था, मेरी वह राय बदली नहीं। हैरत की बात ये है कि उनके आश्रम से मुझे नियमित निमंत्रण और ग्रीटिंग्स आते रहे।

    कुछ समय बाद मैंने “अमर उजाला” में 2 नवंबर 1985 के संपादकीय पृष्ठ पर एक आलेख लिखा था “आचार्य रजनीश फंस गए अपने ही माया जाल में”।

    इसके बावजूद रजनीश के कम्यून से समय समय पर पिक्चर पोस्ट कार्ड संदेश आने बंद नहीं हुए। जब वह 1990 में मरे तो उनकी मौत का असली कारण कोई नहीं जानता था। मैं भी आज तक नहीं जान पाया था।

    इस आलेख में हालांकि रजनीश से भगवान रजनीश से ओशो रजनीश से एक बर्बाद प्रतिभावान नशेड़ी, की यात्रा के बारे में बहुत ही कम शब्द विस्तार या बिना लफ्फाजी के बावजूद गजब का ब्यौरा है। खासतौर से रजनीश और शीला की तुलना का।

    निश्चित रूप से रजनीश एक अत्यंत विलक्षण प्रतिभा से और ईसाई लोग ऐसे किसी भी व्यक्ति को अपनी जमीन पर पनपने नहीं दे सकते थे। इसके बावजूद उनकी संभावनाएं बहुत अधिक थीं, उनके नाकाम होने का कोई डर नहीं होता यदि उन्होंने शीला के राय के हिसाब से खुद को संभाल लिया होता।

    इस शानदार आलेख के लिए बार-बार साधुवाद, बधाई और शुभकामनाएं।

  3. Pramod Pandey

    July 20, 2023 at 7:42 pm

    ये भड़ास को क्या हो गया है

  4. Vinay Pandey

    July 20, 2023 at 10:29 pm

    रजनीश के ओशो बनने का सफर और खात्मे की जानकारी वाकई बहुत कम शब्दों में और सटीक तरीके से पेश की गई है. रजनीश की शुरुआत और मौत को लेकर कई लोग अभी भी अस्पष्ट हैं, मैं खुद. पुष्ट जानकारी साझा करने के लिए लेखक को शुक्रिया, भड़ास का आभार. लिखन्त-छपन्त-पढ़न्त जारी रहे. – शुभकामनाओं के साथ विनय, बनारस.

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