कन्नौज के रहने वाले दीपक कुशवाहा के पेट में 24 जून 2013 को दर्द शुरू हुआ. उन्होंने कानपुर के मंधना स्थित रामा मेडिकल कालेज हॉस्पिटल एवं रिसर्च सेंटर में दिखाया. अल्ट्रा साउण्ड देखकर डॉक्टर ने बताया कि किडनी में स्टोन है. इसके बाद 28 जून 2013 तक परिवादी रामा मेडिकल कालेज हास्पिटल एवं रिसर्च सेण्टर में रहा, जहां उसका काफी रूपया खर्च हुआ.
आराम न मिलने पर 03 जुलाई 2013 को वह रामा मेडिकल कालेज हास्पिटल एवं रिसर्च सेण्टर पुन: आया जहां डॉ प्रफुल्ल गुप्ता ने बताया कि किडनी में स्टोन है, जिसे आपरेशन के द्वारा निकाला जायेगा. इसके पश्चात् उससे कई सादे कागजों पर हस्ताक्षर करवाये गये और फिर आपरेशन करने के बाद 09 जुलाई 2013 को उसे अस्पताल से मुक्त किया गया. अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद भी उसके पेट में दर्द बना रहा और असहनीय दर्द होने पर वह फिर 29 जुलाई 2013 को रामा मेडिकल कालेज आया तो फिर से अल्ट्रासाउण्ड कराया गया और यह पता चला कि उसके शरीर में बायां गुर्दा ही नहीं है और इसीलिए उसके लगातार दर्द हो रहा था. यह सुनकर वह बेहोश हो गया और काफी देर बाद होश में आया.
इस घटना की जानकारी पुलिस को दी लेकिन रिपोर्ट नहीं लिखी गयी. फिर न्यायालय के माध्यम से पीड़ित की प्रथम सूचना रिपोर्ट लिखी गयी. उसे सीएमओ ऑफिस बुलाया गया और विपक्षी के प्रभाव में आकर उसके ऊपर दबाव डाला गया कि वह अपना केस वापस ले ले अन्यथा परिणाम गम्भीर होंगे.
थक-हारकर पीड़ित ने राज्य उपभोक्ता आयोग, उप्र, लखनऊ का दरवाजा खटखटाया. जिसकी सुनवाई राज्य आयोग के माननीय श्री राजेन्द्र सिंह सदस्य एवं माननीय श्री विकास सक्सेना सदस्य द्वारा की गयी.
प्रिसाइडिंग जज माननीय श्री राजेन्द्र सिंह ने इस मामले में अपने 140 पेज के निर्णय में सभी तथ्यों को देखा और पाया कि पहली बार जब परिवादी का अल्ट्रासाउण्ड हुआ तब डॉक्टर ने कहा कि किडनी में स्टैग हॉर्न स्टोन है और यह आपरेशन के द्वारा निकाल दिया जायेगा. स्टैग हॉर्न स्टोन गुर्दे की कार्यशीलता पर विपरीत प्रभाव डालता है. इस स्टोन को निकालने के लिए डॉक्टर परक्यूटेनियस नेफ्रोलिथोटोमी के उपचार के द्वारा इसका निवारण करते हैं और दूसरा उपचार लिथेटिप्सी है, जिसके द्वारा शॉक वेव्स द्वारा स्टोन तोड़कर बाहर निकालते हैं. इस मामले में ऐसा कोई भी अभिलेख नहीं है, जिससे यह स्पष्ट हो कि यह प्रक्रिया अपनायी गयी हो.
विपक्षी ने आपरेशन के दौरान् परिवादी के पिता को बुलाया और उनसे कहा कि इस मामले में गुर्दे को निकालना पड़ेगा क्योंकि इसके अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं है. गुर्दे को निकालने के सम्बन्ध में कोई सहमति पत्र पत्रावली पर नहीं है. यहॉं पर प्रिसाइडिंग जज ने पाया कि इस मामले में मेडिकल काउन्सिल आफ इण्डिया के नियमों के अन्तर्गत उचित सहमति प्राप्त न करते हुए आपरेशन किया गया है, जो पावधानों का खुला उल्लंघन है. इस मामले में परिवादी यह कहा रहा है कि उसका गुर्दा किसी अन्य व्यक्ति को देनेके लिए निकाला गया है और उससे पहले ही सादे कागजों पर हस्ताक्षर कराये गये थे.
देखें आदेश…