Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

मैंने कल लोगों में रोहित सरदाना के लिए जो प्रेम देखा, वो अभूतपूर्व था!

संजय सिन्हा-

मैंने बहुत मौतें देखी हैं। हमारा काम है जीवन और मृत्यु देखना। पर कल जो देखा वो अभूतपूर्व था। ‘जनसत्ता’ की नौकरी में प्रभाष जोशी ने हमें सिखाया था कि अभूतपूर्व का प्रयोग कम से कम करना चाहिए। उन्होंने समझाया था कि संसद, विधानसभाओं में अभूतपूर्व हंगामा, शोरगुल आदि का प्रयोग आम हो गया है। इस विशेषण का प्रयोग अति विशेष स्थितियों के लिए बचा कर रखना चाहिए। तब से अभूतपूर्व विशेषण का प्रयोग बहुत सोच समझ कर करते हैं। पर कल का दिन अभूतपूर्व था।

सुबह हमें पता चला कि हमारे एंकर रोहित सरदाना नहीं रहे। हमारे पास रोज़ ख़बरें आती हैं कि ये नहीं रहे, वो नहीं रहे। मेरे लिए मृत्यु की हर खबर मुझे विचलित करने वाली होती है। पर कल की खबर नहीं यकीन करने वाली थी। कल मैं जड़वत हो गया था। पर इंगलिश में कहते हैं न ‘शो मस्ट गो ऑन’। मैं कल भी ऑफिस गया था। मैं चाहता तो नहीं भी जाता। पर 32 साल के करीयर में एक भी दिन ऐसा नहीं आया है जब मैं पूर्व सूचना के बिना काम पर नहीं गया। हालांकि अब मेरा मन ऑफिस जाने का नहीं होता। छोड़िए, उस पर चर्चा बाद में।
कल जब ऑफिस गया तो मैं हैरान था ये देख कर पार्किंग में मौजूद सिक्योरिटी गार्ड की आंखें सूजी हुई थीं। मैंने पूछा कि क्या हुआ?

Advertisement. Scroll to continue reading.

‘’सर, रोहत सर नहीं रहे।” इतना कह कर गार्ड सुबक पड़ा।
लिफ्ट से ऊपर गया तो सामने जो पहली एंकर पड़ी उसने मास्क थोड़ा और ऊपर कर चेहरा ढकने की कोशिश की, वो नहीं चाहती थी कि उसके रुआंसे चेहरे पर मेरी नज़र पड़े। मैं चुप था। मैंने उसे नहीं टोका। अपने केबिन में पहुंचा। सिर उठा कर चारों ओर देखा, सन्नाटा था।

अपने ऑफिस में मैंने हमेशा एंकरों को चहकते हुए, दमकते हुए देखा है। पर कल हर चेहरा उदास था। सबकी आंखें सूजी थीं। हम ख़बरों के संसार में हैं। हम मौत की न जाने कितनी ख़बरों से रोज़ गुजरते हैं। पर कल ऐसा लग रहा था जैसे सभी का कोई अपना मर गया हो।

Advertisement. Scroll to continue reading.

सुबह जब ख़बर आई थी तो हमारा पूरा ऑफिस स्तब्ध रह गया था। किसी को यकीन नहीं था कि ये ख़बर सच भी हो सकती है। रोहित की तबियत कुछ दिनों से ख़राब थी। उसे बुखार हुआ था। कोविड ने अपनी गिरफ्त में ले लिया था। पर ये ख़बर आएगी, कोई सोच भी नहीं सकता था।

अभी जब मैं आपके लिए ये पोस्ट लिख रहा हूं तो मुझे याद आ रहा है कि कई साल पहले रात नौ बजे के बुलेटिन में हमने केरल में एक आदमी की मौत की ख़बर दिखलाई थी। किसी कांफ्रेंस में एक व्यक्ति माइक पर बोल रहा था, बोलते-बोलते अचानक उसकी मृत्यु हो गई। पूरा दृश्य कैमरे में दर्ज़ हो गया था। वो दृश्य जैसे ही टीवी पर दिखा हमारी एंकर रितुल जोशी एंकरिंग कुर्सी से उठ गईं। वो सब लाइव था। एंकर का आंसू पोछना, बुलेटिन छोड़ कर उठ जाना भी। वो दृश्य अभूतपूर्व था। एंकर का इस तरह लाइव रो पड़ना इस बात का प्रमाण था कि मेकअप के पीछे छिपा चेहरा एक इंसान का चेहरा ही होता है।
एंकर, ऐक्टर को अभ्यास होता है अपने आंसुओं को रोक लेने का। पर जब कुछ अभूतपूर्व होता है तो हमारा वो अभ्यास टूट जाता है।
कल वही हुआ।

Advertisement. Scroll to continue reading.

मैंने इससे पहले सिर्फ अपनी मां की मृत्यु पर ऐसा देखा था। मैंने कई बार आपको बताया है कि मेरी मां जब मरी थी तो ऐसा लग रहा था जैसे पूरा शहर बंद हो गया है। उस छोटे-से शहर में जिसने सुना था कि मां नहीं रहीं, वो थम गया था। हो सकता है आपको थोड़ा अतिरंजित लगे पर मां की मृत्यु के बाद कई ट्रकों में भर कर वो लोग गंगा घाट पहुंचे थे, जिनसे मां कभी मिली ही नहीं। मेरी मां सामान्य घरेलू महिला थी। पर उसका समाजिक दायरा बहुत बड़ा था।

मैंने कल रोहित सरदाना के नहीं रहने के बाद वही देखा। कल शाम पहली बार हमारे ऑफिस का कैफेटेरिया पूरी तरह खाली था। शाम में एक भी आदमी चाय पीता न दिखे, ऐसा मैंने पहले कभी नहीं देखा। शाम साढ़े छह बजे के बाद अक्सर मेरी मुलाकात उसी कैफेटेरिया में रोहित से होती थी। वो अपने मित्र सिद्धार्थ के साथ नियमित रूप से वहां आते थे। हमेशा कोट-पैंट और पांव में जूती पहने हुए। मैंने उन्हें कभी ऊंची हील और फीते वाले जूते में नहीं देखा। कोट-पैंट पर एकदम पतले तले वाली जूती का उनका ये ड्रेस कोड अपना था। रोहित कद में छोटे थे। मैंने एक दो बार उन्हें ये समझाने की कोशिश की थी कि थोड़ी ऊंची ऐड़ी वाले जूते पहना करो। रोहित मुस्कुराते थे। संजय जी, जो सच है वही सच है। मेरी लंबाई थोड़ी कम है तो कम है। इससे क्या फर्क पड़ता है? शरीर का कद पहचान नहीं।
मैं चुप हो जाता था।

Advertisement. Scroll to continue reading.

कुछ ही दिन पुरानी बात है। वैक्सीन का पहला डोज लेकर मैं ऑफिस पहुंचा था। सामने रोहित थे।
“रोहित तुमने वैक्सीन लिया या नहीं?”
“नहीं सर। सरकार से कहिए न कि वो चालीस वालों को भी इंजेक्शन लगा दे।”
“सरकार तक तो तुम्हारी अच्छी पहुंच है। तुम खुद ही कह सकते हो। खैर ये मज़ाक की बात है। असल बात ये है कि जैसे ही मौका मिले तुम वैक्सीन ले लो।”
“हां, सर जैसे ही चालीस वालों को लगना शुरू होगा, मैं ले लूंगा।”
रोहित आते-जाते मेरे केबिन में आ जाते थे और दुनिया जहान की बातें करते थे।

रोहित से मेरा परिचय पहले से नहीं था। कुछ साल पहले जब वो हमारे ऑफिस में आए तब पहली बार मुलाकात हुई थी। हालांकि मैंने ज़ी न्यूज़ में उनकी एंकरिंग देखी थी। जब पहली बार मैंने उन्हें एंकरिंग करते देखा तो मुझे लगा था कि इस आदमी में गज़ब का कानफिडेंस है। जब वो हमारे यहां चले आए और एक दिन यूं ही बातचीत में पता चला कि प्रमिला दीक्षित के पति हैं तो उनसे अलग रिश्ता हो गया। प्रमिला कभी हमारे साथ ही थीं। उनके वन लाइनर और उनकी शानदार रिपोर्टिंग के लिए मैं हमेशा उनकी तारीफ करता था।
रोहित खबरों में अपनी लाइन लेते थे और पूरी ठसक के साथ लेते थे। यकीनन बहुत कम समय में उन्होंने अपनी एक बिल्कुल अलग पहचान बना ली थी। आप उनकी एंकरिंग को चाहे जैसे जज करें, पर मैं ये मानता हूं कि वो उन बहुत कम एंकरों में शामिल थे, जो हर शो से पहले अपनी पूरी तैयारी करते हैं। उनसे शो के लिए कहा जाता और वो अपने नोट बनाने शुरू कर देते थे।
पूरे कोरोना काल में उनसे लगभग हर रोज़ मेरी मुलाकात होती रही। दो मिनट के लिए ही सही पर हम रुक कर एक-दूसरे का हाल पूछते थे।

Advertisement. Scroll to continue reading.

रोहित कभी किसी से एक शब्द फालतू नहीं बोलते थे। सबसे हमेशा मुस्कुरा कर मिलते थे। उनके बारे में अक्सर ख़बर उड़ती थी कि वो किसी और चैनल में जा रहे हैं। जब भी ख़बर उड़ती थी मैं रोहित से सीधे पूछता था। वो हंस कर कहते थे, संजय जी, इकलौते आप हैं जो सीधे पूछ लेते हैं बाकी लोग तो कानाफूसी करते हैं। मैं कहता कि सीधे ही पूछना अच्छा रहता है। वो कहते कि पता नहीं कौन उड़ाता है ऐसी ख़बरें। पर संजय जी, ये तय है कि जब जाऊंगा तो सबसे पहले आपको बताऊंगा।

रोहित कल चले गए। जाने से पहले उन्होंने नहीं बताया। मुझे सबसे पहले प्रणव रावल ने बताया कि रोहित चले गए।
मैंने प्रणव से पूछा था, कहां चले गए? वो तो बीमार थे। शायद कोरोना हुआ था। ऐसे में कहां जाएंगे?
“सर। ख़बर उड़ी है कि रोहित सरदाना नहीं रहे।”
मैं ऑफिस जाने के लिए तैयार हो रहा था। मैंने कहा कि रोहित के बारे में ऐसे ही लोग ख़बरें उड़ाते रहते हैं। वो ठीक हैं।
प्रणव का फोन कटता उससे पहले प्रमोद का फोन आया।
“सर खबर पक्की है?”
“कौन-सी ख़बर?”
“रोहित वाली?”
“मुझे नहीं पता। चेक करता हूं।”
चेक करने को कुछ था ही नहीं। फिर तो धड़ाधड़ फोन आने लगे।

Advertisement. Scroll to continue reading.

मेरे लिए किसी का मर जाना बहुत बड़ी बात होती है। मैं इस सच को जानता हूं कि आदमी मर कर नहीं आता। रोहित अब कभी नहीं आएंगे। वो किसी टूर पर नहीं गए हैं। वो कोई शो करने भी नहीं गए हैं। वो चले गए हैं। जैसे मेरी मां चली गई। मेरे पिता चले गए। मेरा छोटा भाई चला गया। वैसे ही रोहित भी चले गए। हमेशा के लिए।
सरकार ने चालीस वालों के लिए वैक्सीन का इंतज़ाम भी कर दिया था। पर रोहित को वैक्सीन का इंतज़ार रह गया।
अभी जब मैं ये सब लिख रहा हूं तो मुझे यकीन ही नहीं हो रहा कि मैं ही ये सब लिख रहा हूं।
कल मेरे पास जबलपुर से राजीव चतुर्वेदी का फोन आया था। संजय जी, “ख़बर सही है?”
हां।
हे ईश्वर!
मैंने फोन पर राजीव चतुर्वेदी के सुबकने की आवाज़ सुन ली थी।
फिर फोन आया भोपाल से संजय शर्मा का। “भैया, रोहित सरदाना…।”
“हां।”
फिर मैंने संजय शर्मा के फूट-फूट कर रोने की आवाज़ सुनी।
फिर फोन की घंटी बजी।
“कमल ग्रोवर।”
हां भैया।
“संजय, ये क्या हो गया?”
अब मैं रो रहा था।
फोन पर फोन। मैं यंत्रवत फोन उठा रहा था। हां, हां, हां कह रहा था।
पत्नी ने पूछा, “क्या हुआ संजय?”
“रोहित सरदाना नहीं रहा।”
पत्नी दरवाज़ा पकड़ कर खड़ी हो गई। कुछ ही महीने पहले हम दोनों कहीं रोहित और प्रमिला से मिले थे। मैंने पत्नी का परिचय रोहित का परिचय कराया था।
“ये हैं रोहित सरदाना।”
“अच्छा, ये वही रोहित हैं?”
कल पत्नी कह रही थी कि रोहित की तो उम्र बहुत कम थी।
“हां। चालीस साल। पर मृत्यु के आगे किसकी चलती है?”
मैं ऑफिस के लिए निकलने ही वाला था कि फोन की घंटी फिर बजी।
“हैलो सर, मैं सुंदर बोल रहा हूं आगरा से।”
सुंदर हमारी सोसाइटी का सुपरवाइजर है। कहने लगा, “साहब रोहित जी को क्या हुआ था?”
“बीमार हो गए थे।”
“साहब, बहुत अच्छे एंकर थे। हमें रोना आ रहा है।”
ट्रिन-ट्रिन…। “महेंद्र बोल रहा हूं साहब।”
महेंद्र मेरी पिछली सोसाइटी का मैनेजर है।
“साहब, ये रोहित सरदाना…।”
“हां महेंद्र।”
“ये तो बहुत अच्छा आदमी था।”
“हां।”

कल ऐसे-ऐसे लोगों ने रोहित को याद किया जिनसे रोहित कभी नहीं मिले। रोहित उन्हें जानते भी नहीं थे। पर मैंने कल लोगों में रोहित के लिए जो प्रेम देखा, वो अभूतपूर्व था। इससे पहले अपने ऑफिस में मैंने कभी इतना सन्नाटा नहीं देखा था। कल कोई किसी से बात नहीं कर रहा था।

Advertisement. Scroll to continue reading.

आप रोहित को चाहे जैसे याद करें, पर मैं रोहित को हमेशा ऐसे व्यक्ति के रूप में याद रखूंगा जिसने अपने लिए मानक खुद तय किए। अपने लिए बिंब खुद गढ़े। अपने लिए रास्ते भी खुद तैयार किए।

प्रभाष जोशी होते तो कहते कि संजय, ये अभूतपूर्व था।

Advertisement. Scroll to continue reading.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement