द टेलीग्राफ अखबार उन सभी को प्यारा लगता है जिनके भीतर मीडिया और पत्रकारिता के प्रति थोड़ी भी समझ-सरोकार है. मीडिया मतलब सत्ता की नीतियों-कुनीतियों की सच्चाई बताना, पोल खोलना. पत्रकारिता मतलब सत्ता सिस्टम की आंख में आंख डालकर सच को कह डालना. द टेलीग्राफ अखबार ये काम बखूबी करता है.
हालांकि उलटबांसी ये है कि जिस एबीपी ग्रुप का द टेलीग्राफ अखबार है, उस ग्रुप का दिल्ली का न्यूज चैनल एबीपी न्यूज कभी भी मोदी सरकार के प्रति हमलावर नहीं होता. वहीं कोलकाता से प्रकाशित टेलीग्राफ अखबार कभी भी ममता बनर्जी के प्रति ज्यादा हमलावर नहीं होता. यानि कोलकाता से निकलने वाला अखबार मोदी के प्रति हमलावर होकर पत्रकारिता करता है और दिल्ली से चलने वाला एबीपी न्यूज चैनल ममता बनर्जी पर हमलावर होकर मीडिया का दायित्व निभाता है. असल में यह अवसरवाद है लेकिन आज के जमाने में सरवाइवल के लिए मीडिया हाउसेज बहुत बड़े बड़े अवसरवादी कांड कर जाते हैं, एबीपी ग्रुप का अवसरवाद इस मुकाबले ज्यादा बड़ा नहीं है.
इन उलटबांसियों के बावजूद द टेलीग्राफ अखबार में होने वाले ढेर सारे प्रयोग रोमांचित करते हैं. जो बात आम जन मानस मोदी सरकार को लेकर कहता बोलता है, वही बात द टेलीग्राफ अखबार खुल्लमखुल्ला पहले पन्ने पर कह देता है. ऐसे में कई बार सवाल उठता है कि आखिर वो शख्स कौन है जो द टेलीग्राफ में चीखती हेडिंग लगाता है. रोज नए नए प्रयोग करता है.
चर्चित एंकर साक्षी जोशी अपने यूट्यूब चैनल के लिए बंगाल चुनाव कवर करने कोलकाता गईं तो खुद को द टेलीग्राफ वाले क्रिएटिव एडिटर से मिलने से न रोक पाईं. देखिए जब साक्षी टेलीग्राफ के दफ्तर गईं तो क्या हुआ….
SAKSHI JOSHI-
मिलिए उस अख़बार के संपादक से जिन्होंने बंगाल से ही दिल्ली को हिलाकर रखा हुआ है.
Telegraph की चीखती हेडलाइंस से लेकर बीजेपी की सरकार बनी तो क्या ये अख़बार तब भी चलेगा जैसे सभी सवाल पूछे मैंने…