राज्य संपत्ति विभाग से मिले एक अदद सरकारी नोटिस ने राजधानी के पत्रकारों को हिंजड़ा बनने पर मजबूर कर दिया है. कलम तो ज्यादातर पत्रकारों ने पहले ही गिरवी रख दिया था, अब एक अदद सरकारी मकान में बने रहने की चाह ने उन्हें हिंजड़ा बना दिया है. ऐसा हिंजड़ा जो सरकार के गलत-सही कर्मों-कुकर्मों पर केवल ताली बजा सकते हैं, कलम नहीं चला सकते. नाना पाटेकर ने एक फिल्म में कहा था कि एक मच्छर आदमी को हिजड़ा बना देता है, ठीक ऐसे ही एक अदद सरकारी मकान हाथ से ना जाने देने की चाह ने राजधानी लखनऊ के बड़े-बड़े पत्रकारों को हिजड़ा बना दिया है. मकान खाली करने की नोटिस मिलने के बाद से ही ऐसे बौराए घूम रहे हैं, जैसे किसी ने पिछवाड़े में लुत्ती लगा दी हो.
सरकारी मकान की सुविधा हाथ से ना छीन जाए इसको लेकर राजधानी के इस सुविधा के भोगी पत्रकार अधिकारियों के आगे-पीछे घुम रहे हैं. नेताओं-मंत्रियों के यहां दरबार लगा रहे हैं. विधानसभा से लेकर एनेक्सी तक चक्कर काट रहे हैं. मुख्यमंत्री की चौखट पर भी दरबार लगा चुके, लेकिन असली मसला अब तक हल नहीं हो पाया है. मकान खाली करने का डर अब भी सर पर नाच रहा है. मुख्यमंत्री ने नई योजना लाने का आश्वासन दिया, लेकिन वहां भी ये पत्रकार बंधु श्रेय लेने के लिए आपस में ही कुक्कुरझांव करने लगे. सीएम ने भी इस दुर्लभ दृश्य का पूरा आनंद उठाया और कहा भी कि पार्टियों से ज्यादा राजनीति तो पत्रकारों के संगठन में है. नई योजना की जानकारी मिलने के बाद कुछ पत्रकारों ने मुख्यमंत्री की शान में कसीदे भी काढ़े. दरबारी कवि जैसा भाव भी प्रकट किया. गुणगान भी गाया, लेकिन असली समस्या तब भी दांत चियार कर चिढ़ा रही थी.
दरअसल, एक संस्था की पीआईएल पर सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्रियों को बंगले खाली करने के आदेश दिए. अब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनके पिता मुलायम सिंह यादव समेत कई पूर्व मुख्यमंत्रियों पर इस आदेश से प्रभाव पड़ना था, लिहाजा सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेश को न्यून करने के लिए कोई भी कदम उठाती तो मीडिया उसकी लानत-मलानत करती. सरकार को घेरती. बेइज्जत करती. इस काल्पनिक और संभावित खतरे से बचने के लिए किसी अधिकारी ने सरकार को यह दांव चलने का सुझाव दे दिया कि अगर इसी आदेश का आड़ लेकर पत्रकारों को सरकारी मकान खाली करने का आदेश दे दिया जाए तो बात बन सकती है. फिर क्या था? राज्य सम्पत्ति विभाग हरकत में आया. नोटिस पकड़ाई और पत्रकारों को नाना पाटेकर के मच्छर ने काट लिया. बेचारों के तमाम संगठन दर-ब-दर पहुंचकर मर्सिया गाने लगे. किसी भी दर से उन्हें राहत नहीं मिली.
थक-हार कर मुख्यमंत्री के पास पहुंचे. मुख्यमंत्री ने उनका असली दर्द सुनने की बजाय नया आश्वासन दे दिया कि पत्रकारों के लिए नई योजना लाई जाएगी. उनके लिए फ्लैट बनाए जाएंगे. सरकारी मकान खाली करने से रोकने वाले मामले पर कोई बात नहीं हो सकी. मतलब असली दुख दूर नहीं हुआ, लेकिन भविष्य की कथित योजना को लेकर पत्रकार बंधु आपस में ही उलझ गए. जमकर एक दूसरे का तियां-पांचा करने लगे. भगवान कसम, मसला श्रेय लेने का था. शुक्ला, तिवारी, मिश्रा, दूबे, सिंह, यादव, खान, सिद्दीकी, वर्मा, शर्मा, विश्वकर्मा, नरमा-गरमा जितने से सब कुक्कुरझांव में जुट गए.
मुख्यमंत्री इस दुर्लभ दृश्य को देखने और व्यंग्य करने के बाद जन्माष्टमी की शुभकामनाएं देते हुए. मंद-मंद मुस्काते हुए निकल गए. पत्रकारों का रियल्टी शो, मेलो ड्रामा देर तक जारी रहा. कुछ ने यह भी कहा कि नई वाली योजना में उन्हें ही फ्लैट मिले, जिनके पास सरकारी दर का प्लाट या सरकारी मकान ना हो, इस पर भी लाभ लेने वाले बौखला-बौखला कर स्पीच देते रहे. अपने प्राइवेट मकान को किराए पर देकर सरकारी मकान लाभ लेने वाले भी प्रवचनात्मक मोड में दिखे. मतलब, मुख्यमंत्री आवास में करुणा, दया, भिखमंगई, दोगलई, हरामखोरी, हवाखोरी, थेथरई जैसे सारे रस नजर आए. वीर रस का माहौल बनने से पहले ही किसी ने खाना उपलब्ध होने का संदेश हवा में लहराया, तो सभी वीर अपनी तलवारें म्यान में रखकर उस तरफ चल दिए.
दरअसल, सरकार की तरफ से सारा पैंतरा इसलिए रचा गया था कि पूर्व मुख्यमंत्रियों का बंगला बचाने के लिए कैबिनेट और विधानसभा में जो प्रस्ताव पास किया जाए, उसको लेकर मीडिया में ज्यादा कचर-पचर न हो. सरकार ने पूर्व मुख्यमंत्रियों के बंगले को लेकर प्रस्ताव विधान मंडल से पास कर लिया, किसी भी अखबार-चैनल में एक खबर उल्टी नहीं चली, ना दिखी. सरकार की योजना सफल हो गई. अब देखना है कि एक अदद सरकारी मकान में रहने की इच्छा के लिए हिंजड़ा बन गए राजधानी के कुछ सौ पत्रकरों पर सरकार कुछ रहम दिखाती है? सरकारी मकान में रहने का कुछ बख्शीस देती है या खाली हाथ ही लौटाती है?
लखनऊ से भड़ास संवाददाता की रिपोर्ट.