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जीभ और जांघ के भूगोल में फंसा मीडिया : इस एंकर को उनकी कार में महिला पत्रकार के साथ पुलिस ने रंगे हाथ पकड़ा था

घटना 22 जून की है । रविवार होने के कारण मैं घर पर ही था तभी एक साथी का फोन आया । उसने बताया कि टी आर पी के रेस में अव्वल आने को आतुर न्यूज़ चैनल ‘इंडिया टीवी’ की एक जवान व खूबसूरत एंकर ने कार्यालय में ही ज़हर खाकर जान देने का प्रयास किया । मीडिया अन्दरुनी हालात से अच्छी तरह वाकिफ होने के कारण यह खबर सुन मुझे कोई हैरानी नहीं हुई, लेकिन देखने जानने की उत्सुकता ज़रुर हुई कि आखिर माजरा है क्या? फौरन टीवी आन किया और एक-एक कर तमाम न्यूज़ चैनल खंगाल डाले, लेकिन एंकर की आत्महत्या की खबर कहीं नहीं दिखी।

घटना 22 जून की है । रविवार होने के कारण मैं घर पर ही था तभी एक साथी का फोन आया । उसने बताया कि टी आर पी के रेस में अव्वल आने को आतुर न्यूज़ चैनल ‘इंडिया टीवी’ की एक जवान व खूबसूरत एंकर ने कार्यालय में ही ज़हर खाकर जान देने का प्रयास किया । मीडिया अन्दरुनी हालात से अच्छी तरह वाकिफ होने के कारण यह खबर सुन मुझे कोई हैरानी नहीं हुई, लेकिन देखने जानने की उत्सुकता ज़रुर हुई कि आखिर माजरा है क्या? फौरन टीवी आन किया और एक-एक कर तमाम न्यूज़ चैनल खंगाल डाले, लेकिन एंकर की आत्महत्या की खबर कहीं नहीं दिखी।

अगले दिन कुछ अखबारों ने अन्दर के पन्नों पर सिंगल कॉलम खबर छपी थी । लिखा था एक न्यूज़ चैनल की एंकर ने अपने बॉसेज़ की हरकतों से परेशान होकर कार्यालय में ही ज़हर खाकर जान देने का प्रयास किया। छपी खबरों में ना तो चैनल का नाम था और ना ही उस एंकर का जिसने ज़हर खाया। भला हो सोशल मीडिया का जिसने चैनल व एंकर दोनों के नाम तस्वीरें प्रमुखता से छाप मीडिया जगत को इस घटना की जानकारी देने का फर्ज़ पूरा किया था। एंकर तनु शर्मा द्वारा जान देने का प्रयास आम लोगों के लिए एक सामान्य घटना हो सकती है लेकिन मीडिया जगत के लिए यह एक बड़ी घटना मानी जाएगी । चॅूकि यह घटना इंडिया टीवी के कर्ताधर्ता रजत शर्मा के चैनल से जुड़ी है इसलिए दब गयी । यदि आत्महत्या का प्रयास करने वाली महिला किसी अन्य पेशे से जुड़ी होती तो चैनल वालों ने उसका, उसके परिवार का और साथ ही कार्यालय वालों का जीना हराम कर दिया होता।

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सवाल यह है कि मीडिया में ऐसे हालात क्यों पैदा होते जा रहे हैं कि इस पेशे से जुड़े लोगों को जान देने की नौबत तक आ गयी है। दरअसल पत्रकारिता की दुनिया बाहर से जितनी खूबसूरत, भव्य और ग्लैमरस दिखती है अन्दर से उतनी ही बदरंग है। खास तौर से टीवी पत्रकारों की तो बेहद बुरी हालत है। लगभग दो दशक की पत्रकारिता के कैरियर में मेरी जानकारी में कई ऐसे मामले आए हैं। एक न्यूज़ चैनल है जिसका कार्यालय कुछ माह पहले ही नोएडा फिल्म सिटी से शिफ्ट होकर ग्रेटर नोएडा चला गया है। चैनल के आलीशान और भव्य कार्यालय के अन्दर क्या-क्या होता है इसके किस्से अक्सर बाहर आते रहते हैं। महिला पत्रकारों के शोषण के अधिकांश किस्से इसी चैनल से जुड़े हैं।

कुछ वर्ष पहले एक सज्जन इस चैनल में एंकर थे। आजकल वे रात के नौ बजे के आस-पास किसी दूसरे चैनल पर भाषण देते हुए देखे जा सकते हैं। इस एंकर ने कई महिला पत्रकारों को टहलाया घुमाया।  एक बार तो पुलिस ने नोएडा फिल्म सिटी में ही उनकी कार में एक महिला पत्रकार के साथ उन्हें रंगे हाथों पकड़ा था। मामला चैनल से जुड़ा होने के कारण रफा-दफा हो गया था। इसी चैनल में एक अन्य सज्जन एक्जी़क्युटिव प्रोड्यूसर थे। इन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में कैरियर बनाने आई कई इन्टर्न पर अपनी मर्दानगी का भरपूर प्रदर्शन किया। लेकिन एक इन्टर्न दबंग निकली। उसने दबंगई के साथ प्रोड्यूसर महोदय का गला पकड़ लिया और शादी करने पर मजबूर कर दिया। पहले से शादीशुदा प्रोड्यूसर महोदय की एक नहीं चली और अपनी उम्र से तकरीबन 18 साल छोटी लड़की को अपनी पत्नी बनाना पड़ा।

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कई न्यूज़ चैनलों में बतौर राजनीतिक सम्पादक काम कर चुके एक ऐसे पत्रकार को मैं जानता हूं जिनकी पत्नी भी इसी पेशे में हैं। पत्नी तेज़तर्रार है और उसे पत्रकारिता में बगैर काबलियत के आगे बढ़ने के सारे गुर पता हैं।  आज चैनलों में इस मोहतरमा की गिनती भी बड़े पत्रकारों में होती है। इसका पता उसके पति को भी है लेकिन वे चुप हैं। हरियाणा में प्रमुखता से देखे जाने वाले एक क्षेत्रीय चैनल की एक एंकर प्रिया सिंह ने कुछ वर्ष पहले आत्महत्या कर ली थी। यह घटना सितम्बर 2007 की है।  बिहार की रहनी वाली प्रिया ने आत्महत्या करने से पहले एक पत्र में इसके लिए अपने सीनियर बॉसेज़ को ज़िम्मेदार बताया था। प्रिया ने अपने सुसाईड नोट में लिखा था कि इन दोनों के शोषण से परेशान होकर जान देने पर मजबूर होना पड़ रहा है । मामले की जॉच चली लेकिन मीडिया से जुड़ा होने के कारण अन्ततः मामला रफा-दफा हो गया।

पत्रकारिता में महिलाओं का शोषण कोई नई बात नहीं है। कई महिला पत्रकार भी पुरुष का शोषण करने से बाज़ नहीं आतीं। तकरीबन तीस वर्ष पहले दूरदर्शन एकलौता चैनल हुआ करता था। उन दिनों दूरदर्शन में महिला पत्रकारों की संख्या अच्छी खासी थी। एक महिला रिपार्टर थी जो कामधाम कुछ नहीं करती लेकिन वेतन पूरा उठाती थी। एक दिन उसके बॉस ने उस महिला रिपोर्टर से कहा कि ऐसे कबतक चलेगा। आप आफिस आती नहीं हो और सैलरी पूरी उठाती हो। उस महिला रिपोर्टर ने अधिकारी से कहा कि आपको पता है कि कुछ लोग बुद्धिबल से नौकरी पाते हैं तो कुछ बाहुबल से। मैंने योनिबल से नौकरी पाई है। मैं तुम्हारे बॉंस को अभी तुम्हारी शिकायत कर दूं तो शायद तुम इस कुर्सी पर कल से दिखोगे नहीं । यह सुन अधिकारी सन्न रह गया ।

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महिलाओं के शोषण की बात खुशवन्त सिंह के चर्चा के बगैर अधूरी रह जाएगी। खुशवन्त सिंह का नाम पत्रकारिता जगत में बेहद सम्मान के साथ लिया जाता है। लेकिन खुशवन्त सिंह ने उन महिलाओं को सदैव कामुक नज़र से देखा। यह मैं नहीं कह रहा बल्कि उन्होंने यह बात अपनी पुस्तक में खुद स्वीकारी है। गत वर्ष प्रकाशित खुशवन्तनामाः द लैसंस ऑफ माई लाइफ नामक पुस्तक में उन्होंने लिखा है कि मैं हमेशा अय्याश व्यक्ति रहा।  4 वर्ष की उम्र से 97 वर्ष तक अय्याशी हमेशा मेरे दिमाग में रही। मैंने कभी भारतीय सिद्धान्तों में विश्वास नहीं किया कि मैं महिलाओं को अपनी मां, बहन या बेटी के रुप में सम्मान दूं। उनकी जो भी उम्र हो, मेरे लिये वे यानि महिलाएं सिर्फ वासना की वस्तु थी और रहेंगी। अपनी एक अन्य पुस्तक सन-सैट क्लब में तो उन्होंने यहां तक लिखा है कि जब वे लोदी गार्डेन में टहलते थे तो वहां स्थित इमारत की गुम्बद उन्हें महिलाओं के स्तन की याद दिलाती थी।

तेज़तर्रार महिला हो या फिर पुरुष, इस पेशे का इस्तेमाल करना जिसने भी सीख लिया वह कहां से कहां जा पहुंचा। हरीश खरे हों या फिर संजय बारु या पंकज पचौरी, सभी ने इस पेशे का इस्तेमाल किया और यूपीए 1 व 2 में प्रधानमंत्री डा0 मनमोहन सिंह के मीडिया एडवाइज़र बन कर ऐश काटी। इन लोगों ने मीडिया एडवाइज़र की भूमिका कितनी संजीदगी से निभाई इसका उदाहरण पिछले लोकसभा चुनाव में मिल चुका है। ये तीनों पी एम ओ में थे तो मीडिया एडवाइज़र लेकिन मीडिया वालों से बात करने में ये अपनी तौहीन समझते थे। नीरा राडिया के उल्लेख कि बिना पत्रकारिता जगत में फैले गंध की बात पूरी नहीं हो सकती। नीरा राडिया का असली नाम नीरा शर्मा है। केन्या में जन्मी व लन्दन में पली बढ़ी नीरा की शादी गुजराती फाइनेन्सर जनक राड़िया से हुई थी। उसके बाद ही वे नीरा राड़िया बन गयीं। पति से अनबन होने के बाद वे भारत आई और सबसे पहले उनकी दोस्ती हरियाणा दिवंगत मुख्य मंत्री राव विरेन्द्र सिंह के पोते धीरज सिंह से हुई। यहीं से देश के राजनीतिक गलियारे में उनका प्रवेश शुरू हुआ। राजग सरकार में नागर विमानन मंत्री रहे अनन्त कुमार की वे चहेती थीं। इतनी चहेती कि लंकेश पत्रिका ने उनके बारे में पूरा विशेषांक ही निकाल दिया था।  इसके बाद नीरा राडिया पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के दत्तक दामाद रंजन भट्टाचार्य के काफी करीब हो गयीं थीं। राजक शासन में वे खूब फलीफूंली। मंत्रियों, उद्योगपतियों, अफसरशाहों, टीवीचैनलों, आर्थिक व अंग्रेजी अखबारों के सम्पादकों से नीरा राडिया के प्रगाढ़ सम्बन्ध बने। इतने प्रगाढ़ कि नीरा राड़िया यह तय करने लगी कि यूपीए 2 में किसे मंत्री बनाना है किसे नहीं।

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देश जिस मीडिया से सच्चाई, साहस और संघर्ष की उम्मीद करता है उस मीडिया की अति महत्वाकांक्षी सम्पादकों व चंद महिला पत्रकारों ने ऐसी की तैसी करके रख दी। इस पेशे में ऐसे – ऐसे लोग आ गये हैं जिनके लिए नैतिकता, ईमान्दारी और मेहनत का कोई मोल नहीं है। कोई काम नहीं सूझ रहा तो पत्रकार बन जाओ। आज दूधिया से लेकर प्रापर्टी डीलर और पनवाड़ी से लेकर चिटफन्ड कम्पनी की आड़ में लोगों को लूटने वाले लोग किसी न किसी समाचार पत्र, पत्रिका व चैनल के मालिक बने बैठे हैं। इनका एकमात्र उद्देश्य मीडिया के माध्यम से अपने गलत कार्यों का बचाव करना और ब्लैकमेलिंग कर पैसे कमाना है। उनके इस कार्य में महिला पत्रकार व दलाल काफी उपयोगी साबित हो रही हैं शायद यही वजह है कि पत्रकारिता में जीभ और जांघ का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है।

लेखक संदीप ठाकुर पिछले 23 वर्षों से पत्रकारिता में हैं. हिंदुस्तान अखबार, राष्ट्रीय सहारा, नवभारत टाइम्स, हमारा महानगर, सरिता, गृहशोभा समेत कई अखबारों में वरिष्ठ पदों पर काम कर चुके हैं. इन दिनों संदीप एक प्रोडक्शन हाउस में क्रिएटिव हेड के बतौर कार्यरत हैं.

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0 Comments

  1. पोल खोल

    July 8, 2014 at 12:19 am

    विवेक जी उनकी भी मजबूरी है आखिर वो भी इसी कीचड़ में है और रजत शर्मा से उन्हें भी डर लगता है. कई इन्हें भी कोई नोटिस न पहुंच जाए। लेकिन यहां एंकर तनु सुसाइड केस से एक बात नहीं समझ आयी कि अगर चैनल में सिर्फ काबिल लोगों को ही रखा जाता है तो यहां एक एंकर तो तोतली है जिसे स और श का अंतर भी नहींं पता और वो फिर भी इंडिया टीवी में छायी रहती है इसका क्या राज है संदीप जी? तनु उस तोतली से तो अच्छी ही थी।

  2. manmohan

    July 7, 2014 at 8:50 am

    🙄 😀 😆 🙂 😉 8) 😐 :-* 😳 🙁 😥 😮 😕 😡 😮 😛 🙄 :sigh:

  3. shailesh

    July 8, 2014 at 10:56 pm

    sandip sir, hamaam men sub nange hain. mauka milne ki jarurt hai, aap ki likhi baten dill ko chhu gai, lekin maff karna sir, pata nahin yesha kyon lag raha hai ki aap bhi apne lekh ke saath insaaf nahin kiya.

  4. vivek

    July 7, 2014 at 8:15 am

    सर जी, बड़ी बड़ी हांक दी और आधे से ज्यादा बार आपने भी ऊपर वाली स्टोरी में चैनल और अख़बारों के नाम नहीं लिखे.

  5. Manara

    July 23, 2014 at 6:41 am

    @MAJITHIYA. WAGEBOARD

    HINDUSTAN WALON KA KYA HOGA Lagta hai all Dallas yehi bhar gaye hain Sharad Saxena kehtey hain five thousand employees hain Ye HR head. Lagta hai HT Group me news censored Kar diya hai

  6. santosh singh

    December 2, 2014 at 1:34 pm

    hun dred parcent sahi bat patrkar apne pahuch ka galat upyog kar galat kam karta hai.nariyo ka to kahna hi nahi hai ish pese se jure hona ek aur power me char chand laga deta hai.kyoki sabhi jagah be hichak pahuch ho jata hai.ishi se apane power aur khubsurti ke bal per her galat kam me aur aage badhne ka mauka mil jata hai.

  7. santosh singh

    December 2, 2014 at 1:37 pm

    pura media jagat ka pol khol ke rakh dia hai.

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