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संजय सिंह जेल से छूटे, गंभीर बातें कीं, सवाल उठाये – खबर सिर्फ इंडियन एक्सप्रेस में  

पहले पन्ने पर अखबार बता रहे हैं – मुख्यमंत्री की गिरफ्तारी ‘जरूरी’ है, यह नहीं कि भाजपा सांसद प्रज्ञा ठाकुर 2008 के मामले में एनआईए कोर्ट में नहीं जा रही हैं

संजय कुमार सिंह

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह कल जेल से छूट गये। आज के अखबारों में खबर तो यही होनी थी कि जेल से छूट कर उन्होंने क्या कहा, क्या किया और कहां गये। लेकिन मेरे छह अखबारों में अकेले इंडियन एक्सप्रेस ने इसे लीड बनाया है और शीर्षक में बताया है कि (उन्होंने कहा), संघर्ष का समय है …. जेल का जवाब वोट से। यही नहीं, दिल्ली हाईकोर्ट में कल ईडी की तरफ से कहा गया कि कानून मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के लिए एक ही है। इसपर संजय सिंह ने सवाल किया कि क्या विपक्षी राज्यों में मामले दर्ज हों तो मोदी, शाह जांच में शामिल होंगे? इंडियन एक्सप्रेस ने इसे उपशीर्षक बनाया है और खबर में इसका विस्तार भी है। दूसरे अखबारों से ये सारी बातें वैसे ही गायब हैं जैसे गधे के सिर से सींग। पर इतना ही नहीं है अखबारों ने अदालत में रखी गई थोथी दलीलों और कुतर्कों को प्रमुखता से छापा है।

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बेशक, यह खबर है और संपादकों को अधिकार है कि वे जिसे चाहें उसे प्रमुखता दें लेकिन संजय सिंह के सवाल का जवाब क्या मोदी और शाह देंगे? क्या यह सवाल नहीं है और देश में अघोषित इमरजेंसी नहीं है तो अखबारों ने इसे पहले पन्ने पर एक्सप्रेस की ही तरह क्यों नहीं छापा है? यही नहीं, इंडियन एक्सप्रेस की सेकेंड लीड बिशप्स कांफ्रेंस की है। इसके अनुसार कैथलिक बिशप्स कांफ्रेंस ऑफ इंडिया (सीबीसीआई) ने अपने क्षेत्राधिकार में आने वाली सभी शिक्षण संस्थाओं से कहा है कि स्कूलों में सभी धर्मों और परंपराओं का सम्मान किया जाये, दूसरे धर्म के छात्रों पर ईसाई परंपराएं न छोपी जायें, सुबह की असेम्बली में छात्रों को संविधान की प्रस्तावना पढ़ने के लिए कहा जाये और स्कूल परिसर में एक “अंतर धार्मिक इबादत कक्ष, प्रेयर रूम या प्रार्थना हॉल” बनाया जाये। इसका कारण सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक स्थिति के कारण उभरती चुनौतियां बताया गया है। 

आइये, आज के अखबारों की लीड, सेकेंड लीड और खास खबरें देख लें ताकि खबरों के साथ उनकी प्रस्तुति का अंदाजा मिले। आप को पता रहे कि आपके अखबार ने क्या छापा और क्या नहीं।

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इंडियन एक्सप्रेस

  • आप के संजय सिंह जमानत पर बाहर : संघर्ष का समय है …. जेल का जवाब वोट से। उपशीर्षक है, उन्होंने पूछा: अगर विपक्ष शासित राज्य केस दर्ज करें तो क्या मोदी, शाह जांच में शामिल होंगे। 

हिन्दुस्तान टाइम्स

  • एनसी-पीडीपी के बीच करार न होना विपक्षी एकता को झटका
  • हाईकोर्ट में केजरीवाल ने गिरफ्तारी को चुनावों से जोड़ा; ईडी ने संबंध से इनकार किया

टाइम्स ऑफ इंडिया

  • मुख्यमंत्री ने कहा, कोई पैसा नहीं मिला; ईडी ने कहा तर्क बेमतलब, उपयोग का सबूत है, मामले के लिए लांडरिंग पर्याप्त है। (पैसा लेकर खर्च कर देना मनी लांडरिंग कैसे है?)  

द हिन्दू

  • सभी ईवीएम के वोटों की गिनती की पुष्टि करने से संबंधित अपीलों को सुप्रीम कोर्ट चुनाव से पहले लिस्ट करेगा
  • बगैर मुनाफे वाली फर्मों ने भी इलेक्टोरल बांड के जरिये चंदा दिया

द टेलीग्राफ

  • राहुल गांधी वायनाड परिवार में वापस पहुंचे फ्लैग शीर्षक है, फिर से जीतेंगे इंडिया प्रण के साथ शुरुआत की

अमर उजाला

  • विश्व बैंक को भारत पर भरोसा, 7.5 फीसदी की रफ्तार से बढ़ेगी जीडीपी। उपशीर्षक है, भारत की विकास दर में सेवा क्षेत्र और औद्योगिक गतिविधियों में तेजी की बड़ी भूमिका।
  • कानून तोड़ने वाले पांच एनजीओ अब नहीं ले पायेंगे विदेशी चंदा, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एफसीआरए पंजीकरण किया रद्द।

नवोदय टाइम्स

7.7 की तीव्रता पर दहला ताईवान

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गिरफ्तारी के खिलाफ केजरीवाल की याचिका पर फैसला सुरक्षित

मैंने कल लिखा था कि सुप्रीम कोर्ट ने संजय सिंह को जमानत दी उससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि राजनीतिक विरोधियों को जेल में रखने के लिए इस्तेमाल किये गये पीएमएलए (मनी लांड्रिंग अधिनियम) का उपयोग गलत है, मामला इसका नहीं है और सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर वह जमानत देते हुए अपनी यह राय बताये कि प्रथमदृष्टया अपराध नहीं हुआ है तो ट्रायल के समय इसका प्रभाव होगा। कल और आज के अखबारों में इसके बाद भी यह बताने की कोशिश की गई है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई है, विपक्ष के कथित दबाव के बावजूद बंद नहीं होगी। यही नहीं, यह भी कहा गया और प्रचारित करने की कोशिश है कि चुनाव के समय ऐसी कार्रवाई रोकने का कोई मतलब नहीं है आदि आदि। इसमें संजय सिंह ने कहा, जेल का जवाब वोट से पर वह भी सिर्फ इंडियन एक्सप्रेस में लीड का शीर्षक में है। 

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आप जानते हैं कि कल ही इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के अनुसार भ्रष्टाचार के मामले का सामना कर रहे 25 विपक्षी नेता भाजपा में शामिल हो चुके हैं। इनमें 23 को राहत मिली है। तीन मामले बंद किये जा चुके हैं, 20 रुके पड़े हैं। अधिकारियों का कहना है कि जांच खुली हुई है और आवश्यकता होगी तो कार्रवाई करेंगे। इन मामलों में असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्व शर्मा का मामला भी है।  उन्हें वाशिंग मशीन पार्टी में बने रहने के लिए रोज बयान बदलने पड़ते हैं। कल ही यह भी खबर थी कि आम आदमी पार्टी के दो नेताओं ने आरोप लगाया है कि उन्हें अपने राजनीतिक करियर के लिए भाजपा में शामिल हो जाना चाहिये थे। दूसरे लोगों ने भी यह आरोप पहले भी लगाया गया है। दल बदल होते रहे हैं और इससे सरकारें गिरती और गिराई जाती रही हैं। लेकिन आज खबर छपी है कि भाजपा ने आम आदमी पार्टी की मंत्री आतिशी को अवमानना का नोटिस भेजा है।

भाजपा की कथित बदनामी पर तो भाजपा की यह फुर्ती है लेकिन आम आदमी पार्टी के नेताओं को भ्रष्ट साबित करने के लिए भाजपा न सिर्फ ईडी का उपयोग कर रही है पार्टी नेता सुषमा स्वराज की बेटी और अब भाजपा उम्मीदवार ईडी की वकील भी रही हैं। द हिन्दू में आज (चार अप्रैल चौबीस को पेज दो पर) छपी खबर के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि संजय सिंह के जमानत आदेश से अधिवक्ता बांसुरी स्वराज का नाम हटा दिया जाये। ऐसा ई़डी के यह कहने के बाद किया गया है कि सुश्री स्वराज का नाम ‘गलती से’ जुड़ गया था। इसपर आम आदमी पार्टी ने कहा कि सुश्री स्वराज ने पहले की कई तारीखों पर ईडी का प्रतिनिधित्व किया है। बाद में सोशल मीडिया पर बांसुरी स्वराज का एक इस्तीफा भी घूम रहा था कि उन्होंने मार्च में सरकारी वकील के पद से इस्तीफा दे दिया है और वह स्वीकार भी हो गया है।

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आप जानते हैं कि वे दिल्ली से ही भाजपा की उम्मीदवार हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि ईडी की गलती से भाजपा का यह राज जगजाहिर हो गया और अपने आका के मामले में ऐसी गलती करने वाली ईडी अपना काम कितना ठीक से करती होगी। ऐसे लोग, ऐसी टीम देश चला रही है और यही लोग इस आधार पर आम आदमी पार्टी को बदनाम करने में लगे हैं। अखबार खुद नंगे होकर भी उनका साथ दे रहे हैं। अगर अखबार खबरों से ऐसा कर पा रहे हैं तो वकील कोर्ट में मसाला दे रहे हैं। आप कह सकते हैं कि यह सब पहले भी होता था। लेकिन अब खास बात यह है कि अदालत ने लगभग कह दिया है कि मामले में दम नहीं है, लोगों को डरा-धमका कर भाजपा में शामिल करने के कई उदाहरण दिख रहे हैं (इंडियन एक्सप्रेस की खबर भी है) तो भी अदालत में फूहड़ दलील दी जा रही है। आज की खबरों के अनुसार अरविन्द केजरीवाल ने दिल्ली हाईकोर्ट में अपनी (मुख्यमंत्री की) गिरफ्तारी को चुनौती दी है।

सुनवाई के बाद कल उसपर हाईकोर्ट ने आदेश सुरक्षित रख लिया है। फैसला जब भी आये यहां मैं बताता हूं कि अखबारों में कल दी गई दलील के बारे में क्या छपा है। आज के अखबारों में सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने के बाद आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह के कल जेल से रिहा होने की खबर भी है। आप जानते हैं कि जमानत देने वाली पीठ ने कहा था (टाइम्स ऑफ इंडिया में बुधवार को जो छपा था उसका अनुवाद), दिनेश अरोड़ा ने शुरू में उनका (संजय सिंह) नाम नहीं लिया था। बाद में एक बयान में वे ऐसा करते हैं। कोई पैसा बरामद नहीं हुआ। पैसे का ट्रेस नहीं है क्योंकि मामला पुराना है। इस मामले में तथ्य है कि पैसा बरामद नहीं हुआ है …. अगर हमें धारा 45 के अनुसार याचिकाकर्ता के पक्ष में विचार करना है (कि प्रथम दृष्टया उन्होंने अपराध नहीं किया है), तो कृपया ट्रायल के दौरान इसके प्रभाव को समझिये। इस तथ्य के साथ कल अखबारों में छपा था कि ईडी ने विरोध नहीं किया।

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आज टाइम्स ऑफ इंडिया में अरविन्द केजरीवाल के मामले में सुनवाई की खबर लीड है। शीर्षक है, मुख्यमंत्री ने कहा कोई पैसा नहीं मिला है; ईडी ने कहा, तर्क अप्रासंगिक है। इसे सुप्रीम कोर्ट में संजय सिंह को जमानत देते हुए अदालत की पीठ ने जो कहा है उसके साथ पढ़िये। खबर के अनुसार, अदालत में कहा गया कि पैसे के उपयोग (खर्च करने) का सबूत है। कहने की जरूरत नहीं है कि पैसे से अगर संपत्ति नहीं खरीदी गई है और पैसे खर्च हो गये तो राशि बहुत कम होगी और इसके लिए क्या बिना सबूत या ऐसे सबूत पर मुख्यमंत्री को गिरफ्तार किया जा सकता है? वह भी तब जब दिल्ली के उपराज्यपाल को संवैधानिक पद पर होने के कारण मारपीट के मामले से राहत मिली हुई है। साध्वी प्रज्ञा के सांसद होने के कारण उनके खिलाफ आतंवाद का मामला रुका ही रहा है। कल की एक खबर इस प्रकार है, मुंबई की एक विशेष एनआईए अदालत ने केंद्रीय एजेंसी को भोपाल से भाजपा सांसद साधवी प्रज्ञा सिंह ठाकुर की हेल्थ रिपोर्ट और वास्तविक स्थिति के वैरिफिकेशन का निर्देश दिया है। दरअसल, साध्वी प्रज्ञा मालेगांव 2008 विस्फोट मामले में आरोपी हैं, उन्हें अदालत में पेश होने के निर्देश हैं, लेकिन वह ऐसा नहीं कर रही हैं और इससे अदालती कार्यवाही में बाधा आ रही है।

इसके बावजूद अरविन्द केजरीवाल के मामले में उनके वकील ने उनकी गिरफ्तारी के समय पर सवाल उठाया तो सरकारी वकील एसवी राजू ने कहा, मैं हत्या या बलात्कार करता हूं पर चुनाव से पहले मुझे गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है। यह किस तरह का तर्क है। ऊपर के उदाहरणों के आलोक में कहा जा सकता है कि यह सवाल कितना सही या गलत है। वैसे भी वकील साब खुद कह रहे हैं कि वे हत्या और बलात्कार भी कर सकते हैं। लेकिन अपना यह उदाहरण वे एक निर्वाचित मुख्यमंत्री के लिए दे रहे हैं जो पद पर है और संविधान की शपथ ली हुई है। मुझे लगता है कि यह तर्क घोर आपत्तिजनक है लेकिन अदालत में रखा गया है तो खबर भी है। यही नहीं उन्होंने यह भी कहा कि कानून सबके लिए बराबर है। ऊपर के उदाहरणों की जानकारी उन्हें नहीं होगी पर मुख्यमंत्री और अपराधी में अंतर होता है। यह तो जानते ही होंगे। सामान्य सा नियम है कि कोई भी अभियुक्त होता है और अपराध साबित होने के बाद ही किसी को अपराधी कहा जा सकता है। अपराध साबित होने तक मुख्यमंत्री भी अभियुक्त ही हो सकते हैं अपराधी नहीं।

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इसलिए उन्हे जेल से छूट या जमानत का वही अधिकार है जो आम आदमी को है न कि उसका पैसा लेना या खर्च करना ही गैर कानूनी है। आम आदमी पार्टी के मामले में सरकार और ईडी का यह रवैया है तो कल ही खबर छपी थी कि महुआ मोइत्रा और उन्हें कथित रिश्वत देने वाले हीरानंदानी पर मामला दर्ज हो गया है। कोई आश्चर्य नहीं कि उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया जाये। खबर है कि इस मामले में भी धनशोधन का मामला दर्ज किया गया है। भ्रष्टाचार के मामले को धनशोधन या मनी लांड्रिंग का मामला बनाना परेशान करना है, भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई नहीं। अब लोग इसे समझते हैं और इसीलिए प्रधानमंत्री का यह दावा, “भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई नहीं करेंगे बंद : मोदी”,  आज सिर्फ नवोदय टाइम्स में पहले पन्ने पर है। खबर के अनुसार प्रधानमंत्री ने कहा, … जो लोग भ्रष्टाचार में संलिप्त हैं उनके पास दो ही विकल्प हैं – जेल या बेल। कहने की जरूरत नहीं है प्रधानमंत्री सब कुछ जानने के बाद ऐसा बोल रहे हैं।

अखबारों में अगर किसी ने प्रधानमंत्री का दावा नहीं छापा है तो ईडी का छाप दिया है। अमर उजाला में सात कॉलम का शीर्षक है, केजरीवाल के खिलाफ लेन-देन के पुख्ता सबूत। अगर ईडी की बात मान ली जाये कि पैसे खर्च हो गये इसलिए सबूत नहीं है तो यह भी मानना पड़ेगा कि पैसे कम होंगे। बड़ी राशि जब कानूनन नकद दी या ली नहीं जानी है तो खर्च हो गया का कोई मतलब यही है। अगर वह पोस्टर छपवाने के लिए या गाड़ियों के किराये के रूप में दिया गया होगा तो ज्यादा पैसे नकद कोई क्यों देगा और कोई क्यों लेगा जब कानूनन गलत है। ऐसे में भुगतान की रसीद तो चाहिये ही। अगर कोई कह रहा है कि उसने नकद लिये, कानून का उल्लंघन किया तो कार्रवाई लेने वाले के खिलाफ होगी या देने वाले के खिलाफ। वैसे भी यह मानना मुश्किल है कि गोवा में पोस्टर छपवाने का खर्चा नकद देने के लिए मुख्यमंत्री दिल्ली से गोवा गये होंगे या किसी को भेजा होगा तो भी दोषी मुख्यमंत्री ही हैं। पर संपादकों का अपना विवेक है और मीडिया को स्वतंत्रता है कि वह जिसे चाहे उसे प्राथमिकता दे।

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