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बालिका गृह कांड की रिपोर्टिंग के दौरान एक टीवी संपादक ने क्या-क्या झेला, पढ़िए

संतोष सिंह बिहार झारखंड के न्यूज चैनल कशिश न्यूज के संपादक हैं. उन्होंने मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड को लेकर लगातार ब्रेकिंग न्यूज दिए. पूरे प्रकरण पर लगातार खबरों का प्रसारण कराया. इस दौरान उन्होंने क्या क्या झेला, इसका खुलासा फेसबुक पर तब किया जब इस कांड के आरोपी ब्रजेश ठाकुर को सजा हो गई. पढ़िए टीवी संपादक संतोष सिंह की जुबानी, एक संपादक के दर्द और साहस की कहानी…

संतोष सिंह

Santosh Singh : मुज़फ़्फ़रपुर बालिकागृह मामले में कोर्ट का फैसला आ गया लेकिन इस मामले में कई ऐसे लोग हैं जिनका गुनाह ब्रजेश ठाकुर से भी बड़ा है लेकिन वो बच गया. फिर भी मेरा मानना है कि जिस स्तर से इस मामले में आरोपी को बचाने की कोशिश चल रही थी, सजा हो गयी तो यह समझिए उपर वाले की ही कृपा है।

खैर जो भी हो, लेकिन मुजफ्फरपुर बालिकागृह मामले ने मुझे अपराधी जरूर बना दिया है। जी हां, जब से मुज़फ़्फ़रपुर बालिकागृह मामले में हाथ डाला, पहले मॉर्निंग वाक छूटा, फिर दूध और सब्जी बाजार छूटा, फिर बच्चों का स्कूल छोड़ना छूटा, इससे भी बात नहीं बनी तो बच्चों का स्कूल बदलना पड़ा।

पिता की पहचान ना हो इसके लिए सारे जगह मां के नाम से ही काम चलाने की कोशिश शुरू हुई। हाल ऐसा है जहां मेरी बच्ची कोचिंग पढने जाती है, आज तक मैं वहां नहीं गया हूं। सब कुछ मां के नाम के सहारे ही चल रहा है।

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माल जाना है, फिल्म देखना हो, कही घूमना हो, पापा साथ नहीं रहता है। बच्चों को हिदायत है पापा के बारे में बात करने से परहेज करना है। बात चल भी जाये तो पापा पत्रकार हैं, ये तो कभी बोलना ही नहीं है।

सुबह आँफिस किसी रास्ते से जाना है और फिर आँफिस से किस रास्ते से लौटना है, किसी को पता नहीं रहता था। कोई टाइम टेबल आने जाना का नहीं रहा। हालांकि इसका काम पर बुरा प्रभाव पड़ा।

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इतना ही नहीं, एक समय ऐसा भी आया जब खबर रोकने को लेकर लगातार धमकी दी जाने लगी। उस दौर में घर से आफिस के रास्ते दो दो तीन तीन बार गाड़ी बदलना पड़ रहा था।

हमेशा गाड़ी में दो तीन लोग साथ रहते थे। गाड़ी पर से चैनल का स्टिकर हटा दिये। जैसे ही कोई बाइक सवार ओवरटेक करता था, धड़कन तेज हो जाती थी। हमेशा चेहरा छिपा कर चलते थे कि कहीं कोई पहचान ना ले।

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मुजफ्फरपुर में ब्रजेश ठाकुर के ठिकाने पर लगातार छापे मारी चल रही थी। लेकिन एक समय ऐसा आया कि हमारे मुजफ्फरपुर के रिपोर्टर खबर कवर करने से हाथ खड़े कर दिये क्योंकि उन्हें लगातार ठाकुर के गुर्गे धमकी दे रहे थे। कई बार हमला भी कर दिया।

ऐसे में अपने टीम का मनोबल बना रहे, इसके लिए मैंने खुद मुज़फ़्फ़रपुर जाने का निर्णय लिया। पत्नी सहित पूरा आफिस मेरे इस निर्णय के खिलाफ था। आप मत जाइए, कुछ भी हो सकता है। लेकिन मैं ब्रजेश ठाकुर के घर पहुंच गया। तब तक कवर करते रहा जब तक पुलिस की कारवाई चलती रही। उस दौरान मुझे टारगेट में लेने की कोशिश हुई लेकिन सादी वर्दी में मौजूद पुलिस वाले मुझे पूरी तौर पर तब तक कवर रखा जब तक मैं वहां से निकल नहीं गया।

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दो वर्षों तक कभी किसी सार्वजनिक समारोह में शामिल नहीं हुआ। कहीं भी बाहर निकलते थे तो लौटने के बाद आफिस में साथ काम करने वाले को पता चलता था कि मैं कहां गया था। सब कुछ छुप छुपा कर चलता रहता था।

ऐसा नहीं है कि इस दौरान कभी मैंने अकेला महसूस किया हो। ये अलग बात है कि जब एक दिन हमारे बास जब मुझसे ये सवाल किये कि संतोष जी आप मुजफ्फरपुर बालिकागृह मामले को लेकर लगातार खबर चला रहे हैं, कही कोई चैनल खबर नहीं चला रहा है, देखिए सामने में पांच पांच अखबार हैं, कही एक पंक्ति भी खबर नहीं छपी है, आपके पास साक्ष्य हैं ना?

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मैं दस सेकेंड तक चुप रहा और मैंने कहा- सर जिसकी लड़ाई हमलोग लड़ रहे हैं, उसका इस दुनिया में कोई नहीं है। जीवन में मैं और आप कहीं कोई पाप किये होंगे तो इस लड़ाई से इतना पुण्य अर्जित हो जायेगा कि सात जन्म तक खत्म नहीं होगा।

उस सवाल के बाद फिर कभी हमारे बास ने इस खबर को लेकर कभी सवाल नहीं किया। फिर भी कई ऐसे मौके आये जब खबर रोकने के लिए बड़े बड़े लोगों का फोन आया। कभी प्यार से तो कभी धमकी भरे लहज़े में खबर रोकने को कहते थे। फिर भी मैं चलता रहा।

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अभी मेरे उपर इसी खबर को लेकर तीन तीन मुकदमा चल रहा है।

खैर ये सब काम करने के दौरान चलता रहता है। लेकिन यह लड़ाई अंजाम तक पहुंचे, इसके लिए ऐसे ऐसे लोगों का साथ मिला कि आप सोच नहीं सकते हैं। कोई हाथ देखने वाले ज्योतिषी को लेकर चले आते थे कि देखिए इनका सब कुछ ठीक चल रहा है या नहीं।

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मुंबई में मेरा एक मित्र रहता है। उसने मुझसे कहा कि अगर आपको कुछ हो गया तो आपके परिवार का क्या होगा। एक करोड़ का जीवनबीमा कर दिया है। किसी ने ये नहीं कहा कि छोड़ दीजिए, किस लफड़े में पड़े हुए हैं। मेरी मां कभी कभी घबरा भी जाती थीं।

रंजू हमेशा साथ खड़ी रही, जो होगा देखा जायेगा के अंदाज में। कहतीं- आप गलत नहीं हैं, हां ऐसा कभी नहीं हो कि आप सामने वाले के पीछे हाथ धोकर पड़े हुए हैं.. बस अपना काम करना है।

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इसके अलावे हमारे साथ काम करने वाले तमाम सहयोगी इस खबर को लेकर मेरे साथ खड़ा रहा।

कोई भी इस खबर को लेकर अपडेट आता था पूरी टीम हरकत में आ जाती थी ।

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इस लड़ाई में रवीश जी, पटना हाईकोर्ट की वकील समा सिन्हा और सुप्रीम कोर्ट के वकील फौजिया शकील के योगदान को भी भुलाया नहीं जा सकता। रवीश जी के खबर दिखाने के बाद राष्ट्रीय मीडिया हरकत में आयी।

समा सिन्हा बिना किसी फीस के पटना हाईकोर्ट में बच्चियों के साथ खड़ी रहीं। वहीं फौजिया शकील सुप्रीम कोर्ट में मोर्चा सम्भाले रहीं। इस दौरान उन्हें काफी नुकसान उठाना पड़ा। फौजिया के पति बिहार सरकार के सुप्रीम कोर्ट मेंं वकील थे। जब इस केस से हटने के लिए फौजिया शकील पर दबाव डाला जाने लगा तो इनके पति ने बिहार सरकार के वकील के पद से त्यागपत्र दे दिया।

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एक दौर ऐसा आया जब ऐसा लगा कि कोर्ट ही सरकार और अभियुक्त के साथ खड़ा है। उस वक्त समा सिन्हा के योगदान को कैसे भुलाया जा सकता है। कोर्ट में कोई आवेदन करने को तैयार नहीं था। एक को मैंने तैयार भी किया तो बीच में ही छोड़ कर भागने लगा। फिर समा सिन्हा ने अपने जूनियर को भी आवेदक बना दिया।

इतना ख़ौफ़ था ब्रजेश ठाकुर को लेकर कि जिसने भी सहयोग के लिए हाथ बढाया, तीसरे दिन उसका मोबाईल ही बंद आने लगता था। फिर भी बहुत सारे अनाम लोगों का साथ मिला जो सिर्फ एक सूचना देने के लिए कभी चिट्ठी का सहारा लेते तो कभी किसी ने मोबाइल फोन का सहारा लिया।

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ये लोग लिखते-कहते : बस ये जानकारी आपको दे रहे हैं सर, मेरा नाम नहीं आना चाहिए। इसी तरह एक बड़ी सूचना किसी रिक्शे वाले ने मुझे मोकामा स्टेशन से फोन करके आधी रात में दिया था। सर बालिकागृह वाली लड़की को भगा दिया सब मिल कर।

गुरु तेगबहादुर अस्पताल के उस लड़की नर्स और उस महिला डाक्टर को मैं कैसे भूल सकता हूं जो रिपोर्ट दिखा दी कि देखिए लड़की गर्भवती है, आप खबर चलाईए, इन बच्चियों के साथ दरिंदों ने बहुत बुरा किया है।

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मुज़फ़्फ़रपुर पुलिस के उस महिला अधिकारी को कैसे भूल सकते हैं जिन्होंने रात के दस बजे गार्डीनियर अस्पताल से फोन की थी कि संतोष जी चार घंटे से हमलोग यहां आये हुए हैं, डाक्टर बच्चियों की जांच नहीं कर रहा है। फिर मैं कैसे रात में अकेले अस्पताल पहुंच गया, अभी भी सोचता हूं तो पूरा शरीर कांप उठता है।

अस्पताल के चारों तरफ ब्रजेश ठाकुर के गुर्गे खड़े थे। कुछ तो लड़कियों को प्रलोभन भी दे रहे थे। उसी दौरान इस पूरे मामले में सबसे मजबूत गवाह और पीड़िता घोष से मेरी आमने सामने मुलाकात हो गयी जिसने ब्रजेश ठाकुर के सारे खेल की परत खोल कर रख दी।

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मिलते ही वो लड़की कहती है- आप ही वो पत्रकार हैं… कुछ नहीं होगा… ब्रजेशवा बहुत उंची चीज है…

मैंने पूछा- तुम इसके पास कैसे आ गयी…

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वो बोली- अरे ये मुझे सोना गांछी से खरीद कर लाया था… मेरी दो सहेलियों को इन सालों ने मार दिया… वो सामने रोड पर देख रहे हैं, सब उसके गुर्गे हैं… बस चले तो मुझे भी खत्म कर देगा क्यों उसे पता है मैं छोड़ने वाली नहीं हूं।

हाल में जब मैं दिल्ली गया था तो उस दिन किसी वजह से सुनवाई नहीं हो पायी थी। कोर्ट में ही इस केस से जुड़े वकील से भेंट हो गयी। उनका पहला सवाल था- आप हो संतोष सिंह… आप से कुछ बातें करनी हैं… कोर्ट के बाद आइए… साथ खाना खाते हैं.

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मिलने तो गये थे एक घंटे के लिए पर चार घंटे साथ रह गये।

उन वकील साहब का कहना है- संतोष जी, आपको लगता है कि ब्रजेश ठाकुर बालिका गृह में रहने वाले गूंगी बहरी, पगली लड़की के साथ रेप करता होगा… देखने में भी ऐसी नहीं हैं कि किसी के यहां इन लड़कियों को भेजा जाये।

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मैंने कहा आप सही कह रहे हैं. मेरा भी मानना है कि ऐसा ब्रजेश ठाकुर खुद नहीं करता हो लेकिन घोष से आप मिले हैं.

जैसे ही मैंने घोष का नाम लिया, वकील साहब का चेहरा ही उड़ गया.

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कहा- आपका निशाना एकदम सही जगह लगा है. वो हमलोगों से बात ही नहीं करती है. एक वही है जिसे कहीं भेजा भी जा सकता है या फिर उसके साथ कोई रिश्ता भी बना सकता है. वकील साहब उससे बात करिए. पूरा खेल समझ में आ जायेगा.

खैर अब तो सजा हो गयी है. फिर भी बहुत सारे ऐसे रसूखदार लोग हैं जिन्हें सिस्टम ने बचा लिया. लेकिन अभी भी उम्मीद जिंदा है. खेल अभी बाकी है. सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई ने भले ही क्लोजर रिपोर्ट सौंप दिया है, फिर भी कुछ सम्भावनायें बची हुई हैं।

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कशिश न्यूज के संपादक संतोष सिंह की एफबी वॉल से.

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0 Comments

  1. mukesh mishra

    February 14, 2020 at 6:54 pm

    santosh singh khud farzi patrkar cum dalal hai…..iski sampatti ki jaanch honi chahiye ki etv me stringer se lekar ab tak kitni sampatti banaya hai….

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