जीवन में अगर थोड़ा भी मन का चैन या जरा भी सफलता चाहिए तो शराब से तो तौबा करो ही, उन शराबियों से भी कर लो, जिनकी जिंदगी में हर खुशी या उत्सव का मतलब ही शराब है।
वैसे तो मैंने खुद अपनी जिंदगी के (और वह भी युवावस्था के) ज्यादातर साल शराब जैसी बुरी लत में बर्बाद कर दिए हैं। सन 1993 में जब मैंने इंटर पास करने के तुरंत बाद से ही शराब शुरू की तो 15-16 बरस बाद 2009-10 तक मैं इसको छोड़ नहीं सका।
हालांकि आज आठ-नौ बरस हो चुके हैं और तबसे मैंने शराब, सिगरेट या किसी भी तरह के नशे को दोबारा नहीं अपनाया। मगर नशे के उन 15-16 बरसों ने मुझे अच्छी पढ़ाई करने और बढ़िया कैरियर बनाने के बावजूद कई तरह के दारुण दुख दिए। याद करता हूँ तो आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। कई तरह के ऐसे संगी-साथी भी दिए, जो मेरे संगी-साथी कम शराब और अपने स्वार्थ के ज्यादा संगी थे।
आज भी गाहे-बगाहे अपने उसी दौर के संगी साथी मिलते रहते हैं मगर वे तब भी मुझसे ज्यादा शराब और नशे के संगी थे और आज भी हैं। उनकी दुर्दशा देखता हूँ तो याद आता है कि कभी इनसे भी बुरे दौर और दुर्दशा को मैंने भी झेला है। बस गनीमत इतनी ही रही है कि सब कुछ गंवाने या बहुत कुछ हमेशा के लिए गंवाने के मुहाने पर ही मुझे होश आ गया और मैंने शराब से तौबा कर ही ली।
जिस दिन तौबा की, उसी दिन से मेरे अच्छे दिन शुरू हो गए थे। व्यावसायिक और निजी जीवन में दिन-दूनी रात चौगुनी खुशी व तरक्की आने लगी थी। बस दुख इतना ही था, जो आज भी है कि शराबखोरी के अपने उस 15-16 बरस के दौर में जो दोस्त बनाये थे, जिनके साथ दिन-रात महफिलें बीती थीं, उनमें से अब केवल वही दोस्त मेरे साथ दोस्ती निभाते हैं, जो मेरी ही तरह शराब को बुरी शय मानकर यह जानते हैं कि वे शराब के चंगुल में फंस तो गए हैं मगर उससे उन्हें हर हाल में बाहर आना है।
अब ऐसे दोस्तों की तादाद बहुत ज्यादा तो हो नहीं सकती इसलिए मैं हर रोज मिलने-जुलने वाले दोस्तों के मामले में तकरीबन कंगाल ही हो चुका हूँ। अब मेरे जो भी दोस्त-यार या परिचित हैं, वे सभी मेरी ही तरह सादा जीवन, उच्च विचार टाइप ही हैं, जो मेरे दारूबाज दोस्तों की तरह मुझे हर शाम घंटों का वक्त नहीं दे पाते। इस कारण मैं अक्सर ही शाम की महफिलों को मिस करता हूँ।
मगर मैं जानता हूँ कि यह नुकसान शराब से होने वाले नुकसानों की तुलना में कुछ भी तो नहीं है। और ऐसा भी कतई नहीं है कि मेरे जीवन में अब कोई दुख-दर्द या परेशानी-संघर्ष नहीं है। ऐसा भला कैसे हो सकता है? मैं शराब पियूँ या न पियूँ मगर इंसान तो मैं बाकियों की ही तरह हूँ। इसलिए दुख-दर्द, परेशानी और संघर्ष आज भी मेरे जीवन में है। अंतर बस इतना आया है कि आज मैं अगर मजबूती से जी रहा हूँ, खुशहाल नजर आता हूँ तो इसके पीछे मेरी वह मानसिक ताकत व शारीरिक स्वास्थ्य है, जिसे मैंने शराबखोरी के चलते खोकर जीवन को मरणासन्न से भी बदतर बना लिया था।
लिहाजा मैं तो अब सबसे यही कहता हूँ कि अगर हो सके तो शराब की एक भी बूंद को अब कभी मत पीना। तभी अपनी जिंदगी में सफलता कैसे मिलती है, कैसे खुशियां और सुख-शांति खुद आपका दरवाजा खटखटा कर आती हैं, यह खुद सच होता हुआ देख सकोगे…और अगर भगवान न करे, शराब छोड़कर भी जीवन में खुशियां वापस नहीं लौटीं तो भी…इतना तो तय है कि बड़े से बड़ा दुख भी हंस कर झेला जा सकता है, मजबूती के साथ हर दुख-दर्द और संघर्ष के दौर को पार भी किया जा सकता है।
पर कहावत ही है कि किसी की सारी खुशी अगर शराब है…और आप शराब छोड़ने की उसे नसीहत देकर उसकी खुशियों के दुश्मन बन रहे हैं तो फिर यह आपकी भलाई के लिहाज से कहीं से भी उचित नहीं है। बेहतर यही है कि खुद छोड़ दो मगर दुनिया के हर शराबी को सुधारने का ठेका कभी मत लो।
लेखक अश्विनी कुमार श्रीवास्तव दिल्ली में पत्रकार रहे हैं। इन दिनों लखनऊ में रियल इस्टेट फील्ड के सफल उद्यमी हैं।
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