देवप्रिय अवस्थी-
मुंबई शेयर बाजार का सेंसेक्स 67000 पार कर रहा है. महज डेढ़ महीने में सेंसेक्स में लगभग 4000 अंकों का उछाल संदेह पैदा करने के लिए काफी है. देश की अर्थव्यवस्था में किसी बड़े सकारात्मक बदलाव के अभाव में इस उछाल की वजह परदे के पीछे हर्षद मेहता के किसी नए अवतार का खेल भी हो सकता है. कुछ लोग कह रहे हैं कि चुनाव के बाद मार्केट चारों खाने चित्त हो सकता है. लेकिन मुझे चुनाव के पहले ही मार्केट ध्वस्त होने की आशंका है.
राहुल चौकसे- यह बुल रन निःसंदेह संदेहास्पद है। संदिग्ध FII व FPI ने हिंडनबर्ग के शिकार वाली कम्पनी में खूब पैसा घुमाया। ये FII या FPI भी संदिग्ध ही हैं। नेताओं का काला धन विदेशी रास्ते से सफेद होकर इसी स्टॉक मार्केट के माध्यम से ही आ रहा है। चुनावी साल में इसका आगमन द्रुतगति से होगा। FII और FPI खाते विदेश में इनके हवाला ऑपरेटर भी खोल सकते हैं। नेताओं और अफसरों की औलादें विदेश में रहकर यह खेल ज्यादा खेलती हैं। मार्किट में फ़र्ज़ी उछाल नुकसानदायक ही सिद्ध होगा। कम्पनियों के शेयर प्राइस ओवरबॉट जोन में है। कम्पनियों के नतीज़े में हमें सत्यम का खेल नहीं भूलना चाहिए।
अमरेन्द्र राय- शेयर बाजार का संबंध उत्पादन, बिक्री और लाभांश से जुड़ा होता है। उत्पादन होता है तो लोगों को रोजगार मिलता है, खरीद क्षमता बढ़ती है, शेयर बाजार ऊपर जाता है। लेकिन यहां, बेरोजगारी फैली हुई है। इसका सीधा और साफ मतलब है कि उत्पादन कम हो रहा है। अगर कम उत्पादन के बावजूद शेयर बाजार बढ़ रहा है तो बहुत बड़ा लोचा है।
गुरुदत्त तिवारी- साल की पहली तिमाही में कंपनियों के बेहतर नतीजे आ रहे हैं. मकान कार बिक्री जोरदार है. क्या यह मार्केट बढ़ने की वाजिब वजह नहीं. हर बात पर संदेह ठीक नहीं है.
देवप्रिय अवस्थी- मौजूदा सरकार कारपोरेट की हितैषी सरकार है. उनकी तत्परता से सेवा कर रही है, लेकिन महंगाई और बेरोजगारी से पीड़ित आम लोगों की मुश्किलें लगातार बढती जा रही हैं. फिर भी, विडंम्बना है कि कुछ लोग कंपनियों के आंकड़ों पर लहालोट हैं.
गुरुदत्त तिवारी- सामाजिक मुद्दे अपनी जगह हैं. हाल फिलहाल मार्केट बढ़ता रहे. इसकी पर्याप्त मूलभूत वजहें हैं. अंग्रेजी में कहे़ं तो Fundamentally market is very strong. EPFO और ESI के आंकड़े कहते हैं Net Payroll additionय 1.50 crore है. महंगाई 4% के आसपास है.
देवप्रिय अवस्थी- क्या कंपनियों के मुनाफे की कोई सीमा नहीं होनी चाहिए? क्या उन्हें अपने उत्पाद, खासकर आम लोगों की जरूरतों से जुड़े उत्पाद, किसी भी कीमत पर बेचने की छूट होनी चाहिए? दीगर है कि कारपोरेट सेक्टर के हित साधने के मामले में सभी सरकारें कमोबेश समान व्यवहार करती हैं. फिर चाहे कांग्रेस की सरकारें रही हों या भाजपा की. उनका नारा सर्व जन हिताय होता है और आचरण कारपोरेट हिताय.
अयोध्या नाथ मिश्रा- इकोनॉमी के सभी एस्पेक्ट को समेकित रूप में देखा जाना चाहिए। अभी सेविंग्स काफी ऊपर है। लोगों के पास पैसे है तब तो जमा करते हैं। कोई बड़ा पूंजीपति बैंक में ७ प्रतिशत पर रुपया जमा नही करता!
देव प्रिय अवस्थी- बेशक, जिन 80 करोड़ लोगों को सरकार मुफ्त अनाज उपलब्ध करा रही है, वे भी इसी देश के लोग हैं. महज डेढ़-दो करोड़ लोगों की बचत और निवेश से देश विकास नहीं करता है. असमानता की खाई जरूर चौड़ी होती है.
Anuj
July 20, 2023 at 8:17 am
ये वो ट्रेडर लग रहे हैं जिन्होंने “और कितना ही उठेगा” सोच के शॉर्ट किया होगा मार्केट। अब फटी पड़ी है तो पोस्ट लिख रहे हैं। मार्केट की नॉलेज और टेक्निकल अलालिसिस तो पक्का ही नही है इनको।