संजय कुमार सिंह-
आशुतोष के साथ बातचीत में कल रात मैंने कहा कि मीडिया का यह हाल 40 साल में बनाया गया है। यह सब बेकार की बात है कि सरकार मजबूर करती है। अगर सरकार मजबूर करती तो द टेलीग्राफ कैसे छाप रहा है।
इस दलील के साथ ही इसमें इसके मूल संस्थान की चर्चा आती ही है। हाल में मैंने एक इंटरव्यू में सुना कि द टेलीग्राफ के संपादक ने कहा कि मेरी जिम्मेदारी अखबार की ही है। जाहिर है, अगर संस्थान वैसा नहीं है तो संस्थान जाने।
संपादक चाहे तो अपना काम करता रह सकता है।
अब आज इस तस्वीर को देखिए – संपादक को तय करना था। तय कर दिया। क्या कोई संपादक के इस अधिकार या विवेक को चुनौती दे सकता है। मेरे ख्याल से नहीं।