शीतल पी सिंह-
श्रीलंका की तबाही के कुछ सैंपल… ये सब यहां भी मौजूद हैं
लेकिन उत्तर भारत के सवर्ण दीवार पर लिखी इबारत पढ़ने को तैयार नहीं!
रवीश कुमार-
श्रीलंका के क्रिकेट खिलाड़ी जनता के साथ खड़े हैं। सरकार की आलोचना कर रहे हैं कि वह भाड़े के गुंडे भेज कर आम जनता पर हमले करवा रही है। भारत के खिलाड़ी होते तो इंवर्टर और बैटरी के विज्ञापन में लगे होते। सरकार से मार खाने के बाद जनता भी चुप रहने वाले इन क्रिकेटरों पर दिला लुटाती रहती। समय सबका साक्षी है।
अश्विनी कुमार श्रीवास्तव-
श्रीलंका में इस वक्त जो हो रहा है , वह इसलिए हैरान करने वाला है कि आखिर राष्ट्रवाद का जो नशा वहां की जनता को दशकों से राजपक्षे परिवार का मानसिक गुलाम बनाए हुए था, वह नशा अचानक उतर कैसे गया?
जबकि इतिहास अभी तक यही बताता है कि जब भी किसी दूसरे समुदाय से नफरत को आधार बनाकर उग्र राष्ट्रवाद का नशा किसी देश की जनता की नस- नस में भर दिया गया तो वह फिर कभी उतरा ही नहीं।
मसलन, हिटलर ने ऐसा ही राष्ट्रवाद, जो जर्मनी के लोगों में भरा था। वह जर्मनी के लोगों के दिलो – दिमाग से फिर कभी नहीं उतरा।
हालांकि हिटलर की फौज अंत में हारी जरुर मगर उसी राष्ट्रवाद के जोश में अंतिम दम तक वहां के बच्चे बच्चे ने सोवियत संघ की लाल सेना और मित्र राष्ट्रों की सेना से लड़ाई लड़ी।
ज़्यादातर खबरों में यही कहा और माना जा चुका है कि श्रीलंका आर्थिक रूप से दीवालिया हो गया है इसलिए श्रीलंका के लोग सरकार से बहुत नाराज़ हैं। लिहाजा राजपक्षे और उनकी सरकार इस वक्त उसी राष्ट्र की नजरों में सबसे बड़े दुश्मन बन चुके हैं, जिस राष्ट्र के नाम पर दशकों से वह सत्ता हथियाए हुए थे।
मगर इस थिअरी में एक बड़ा झोल यह है कि दशकों तक एक के बाद एक गलत और त्रासद आर्थिक प्रयोग करने वाले राजपक्षे की जानलेवा आर्थिक नीतियों के बावजूद ऐसा तो हुआ नहीं होगा कि वहां का रुपया एक रात में ही धड़ाम हो गया हो।
जाहिर सी बात है कि लगातार पिछले कई बरसों से श्रीलंका की आर्थिक हालत खराब होती जा रही होगी। तब भी वहां की जनता अगर नहीं जागी और राजपक्षे के उग्र राष्ट्रवाद पर लोग अंधभक्त ही बने रहे तो फिर सब कुछ लुटा कर होश में आने जैसी जगहंसाई आखिर अब वहां के लोग क्यों करवा रहे हैं?
अभी चंद रोज पहले ही राजपक्षे ने जनता के नाम संदेश देते हुए उसे याद दिलाया था कि जिस तरह लिट्टे का सफाया करके ‘राष्ट्र‘ और सिंहली लोगों को तमिलों से उन्होंने बचाया है, ठीक उसी तरह वह इस गंभीर आर्थिक संकट से भी जनता को जल्द ही उबार लेंगे।
जाहिर है, भोली भाली जनता को राजपक्षे पर फिर से यकीन आ गया होगा इसलिए तब तक जनता ने इतने बड़े पैमाने पर हिंसक विरोध नहीं शुरू किया। लेकिन ऊपर वाले ने राजपक्षे को और मौका नहीं दिया। राजपक्षे की क्षमता और लिट्टे की तरह आर्थिक संकट के सफाए करने के दावे का सच खुद ब खुद तब सामने आ गया, जब वहां का रुपया कागज के टुकड़ों जितना ही कीमती रह गया।
चूंकि अब उन कागज के टुकड़ों से रोटी भी नहीं मिल सकती तब जाकर कहीं राष्ट्रवाद का नशा लोगों के सिर से उतर पाया है। हो सकता है कि सेकंड वर्ल्ड वार में मित्र राष्ट्रों की सेनाएं और सोवियत सेना, जर्मनी यानी हिटलर की सेना से आमने सामने का युद्ध न लड़ती तो वहां की जनता भी इतने ही बुरे आर्थिक हालात झेलने के बाद उग्र राष्ट्रवाद को तिलांजलि दे देती।
बहरहाल, सब कुछ लुटा कर होश में आने वाली श्रीलंका की जनता ने कम से कम इतना तो साबित कर ही दिया है कि राष्ट्रवाद का नशा भी कभी न कभी उतर ही जाता है… चाहे वह कितना ही गहरा क्यों न नजर आ रहा हो…
राजीव नयन बहुगुणा-
श्रीलंका में क्रोधित जनता ने प्रधामंत्री महिंदा राजपक्षे के भक्तों को लिटरली कूड़ेदान में फेंका । समझदार को इशारा काफी ।
देखें वीडियो- https://www.facebook.com/100006443528948/posts/3306650819559670/?d=n