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सुख-दुख

सड़क दुर्घटना में घायल पत्रकार शुभम की आर्थिक तंगी झेलते हुए हुई मौत

बरेली में एक पत्रकार आर्थिक तंगी झेलते हुए मौत का शिकार हो गया. आज सुबह शिवम ने अपने घर में अंतिम साँस ली. शुभम करीब तीन महीने पहले एक एक्सीडेंट में घायल हो गए थे. शुभम को एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण जल्द ही अस्पताल से डिस्चार्ज करा लिया गया था.  मीडिया से जुड़े तमाम मित्रों ने प्रशासन से शुभम के इलाज के लिए सहयोग मांगा लेकिन दुर्भाग्य यह रहा कि हर जगह से निराशा ही मिली.

<p>बरेली में एक पत्रकार आर्थिक तंगी झेलते हुए मौत का शिकार हो गया. आज सुबह शिवम ने अपने घर में अंतिम साँस ली. शुभम करीब तीन महीने पहले एक एक्सीडेंट में घायल हो गए थे. शुभम को एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण जल्द ही अस्पताल से डिस्चार्ज करा लिया गया था.  मीडिया से जुड़े तमाम मित्रों ने प्रशासन से शुभम के इलाज के लिए सहयोग मांगा लेकिन दुर्भाग्य यह रहा कि हर जगह से निराशा ही मिली.</p>

बरेली में एक पत्रकार आर्थिक तंगी झेलते हुए मौत का शिकार हो गया. आज सुबह शिवम ने अपने घर में अंतिम साँस ली. शुभम करीब तीन महीने पहले एक एक्सीडेंट में घायल हो गए थे. शुभम को एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण जल्द ही अस्पताल से डिस्चार्ज करा लिया गया था.  मीडिया से जुड़े तमाम मित्रों ने प्रशासन से शुभम के इलाज के लिए सहयोग मांगा लेकिन दुर्भाग्य यह रहा कि हर जगह से निराशा ही मिली.

बरेली के मीडिया कर्मियों ने अपने स्तर से भरपूर सहयोग किया शुभम का. फिर भी शुभम और उनका परिवार आर्थिक संकट के तले दबा रहा. इन्हीं हालात में शुभम हमारे बीच नहीं रहा. वह जाते जाते बड़े सवाल पीछे छोड़ गया है कि आखिर क्या समाजसेवा की कीमत ऐसे ही चुकानी पड़ती है… क्या जिन संस्थानों में पत्रकार काम करते हैं, उनकी अपने पत्रकारों के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं बनती?

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भीम मनोहर
बरेली
09359139815

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0 Comments

  1. सुनील धनखड़

    October 19, 2016 at 3:36 pm

    दिल्ली से लेकर पूरे देश में पत्रकार बेहद बुरे हालात में दम तोड़ रहे हैं. उनके मरने के बाद परिवार की सुध लेने वाला भी कोई नहीं है. पांच सितारा पत्रकारों की खामौशी की नींद तोड़ने के लिए आम पत्रकार की मौत बहुत छोटी चीज है. लेकिन अगर यही छुटभैये पत्रकार एक साथ काम करना छोड़ दें, तो मठाधीशों को औकात समझ आ जाएगी. लेकिन छुटभैया पत्रकारों में भी हजार बंटवारे हैं, लिहाजा भोगते रहिए बेबसी की मौत.

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