निर्भीक और तेज तर्रार पत्रकार श्याम मीरा सिंह ने फेसबुक पर दो पोस्ट शेयर की हैं. दरअसल श्याम ने डेरा सच्चा सौदा चीफ गुरमीत राम रहीम को लेकर एक वीडियो बनाई थी, जिसपर राम रहीम की तरफ से उनपर मानहानि का केस दायर किया गया है. अदालती लड़ाई शुरू हो चुकी है. जज, वकील, पीपी, पेशकार, पैरोकार इत्यादी के तमाम टंट-घंट से जो लोग वाकिफ हैं वे जानते होंगे की इन चक्करों में कितना तनाव होता मिलता है. बशर्ते श्याम हाई कोर्ट के बाहर अपनी सदाबहार मुस्कान के साथ कुछ कह रहे हैं.. आप उनका ही लिखा पढ़िए..
श्याम मीरा सिंह-
दिल्ली हाईकोर्ट में चल रहे केस के रिगार्डिंग मीडिया में चल रही ग़लत खबरों को लेकर कुछ कहना चाहता हूँ। पहले दिन मीडिया में चलाया गया कि मैंने राम रहीम के संबंधित ट्वीट डिलीट कर दिये। जबकि ये पूरा सच नहीं था। सच ये था कि मैंने उनमें कुछ भी ग़लत नहीं कहा था। लेकिन चूँकि उन ट्वीट के दौरान कोर्ट की कार्रवाई शुरू हो चुकी थी। इसलिए “मामला कोर्ट में है” तब तक ट्वीट ना करने के लिए एहतियाती दी गई। भले ही संबंधित व्यक्ति रेप और मर्डर मामले में दोषी हो लेकिन कोर्ट सुनवाई का मौक़ा बराबर देता है। इसलिए मुझे उस अमुक दिन के ट्वीट हटाने के लिए कहा गया। क्योंकि वे कोर्ट की कार्रवाई में दखल माने जाते। लेकिन मीडिया- ANI, Hindustan, News18, में ऐसे छापा गया कि मैं यहीं लड़ाई हार गया।
हेडलाइन में कहा गया कि “YouTuber श्याम मीरा सिंह ने राम रहीम से संबंधित ट्वीट हटाने के लिए कोर्ट से कहा” लेकिन उन ट्वीट को कोर्ट की कार्रवाई के कारण हटाया गया। उनका राम रहीम से कोई संबंध नहीं था। कल भी ऐसे छापा गया कि- श्याम मीरा सिंह ने वीडियो को सोमवार तक प्राइवेट करने के लिए कहा” सवाल ये है कि मैं क्यों कहूँगा? मैं तो वीडियो बचाने के लिए काम छोड़कर अदालती लड़ाई लड़ रहा हूँ। वकीलों से मिल रहा हूँ। कोर्ट के काग़ज़ात तैयार कर रहा हूँ। फोटोकॉपी निकलवा रहा हूँ।
मैं कोई बड़ा आदमी नहीं हूँ कि मेरे जूनियर ये काम कर रहे होंगे। मैं सामान्य सा लड़का हूँ। अगर मैं कोर्ट के काम में लगा हुआ हूँ इसका मतलब मैं अपना निजी काम नहीं कर पा रहा। घर की सब्ज़ी, दूध पानी लाने से लेकर कोर्ट में क्या तर्क जाने हैं। क्या रेफ़्रेंस जाने हैं। ट्रांसलेशन क्या जाना है। ये सब मुझे लगना पड़ रहा है। मेरे दो वकील साथियों को लगना पड़ रहा है। पिछले हफ़्ते से ठीक से खाना नहीं खा पाया। सिर्फ़ इसलिए कि बात वीडियो बचाने की नहीं है। बात इसकी है कि अगर ऐसा हुआ तो आगे ये एक एग्जाम्पल बन जाएगा। ये न केवल मेरे चैनल के लिए घातक होगा बल्कि पूरे भारतीय YouTube न्यूज़ चैनलों के लिए भी घातक हो जाएगा।
इस केस को लड़ा नहीं गया तो कोई भी धनवान शक्तिवान व्यक्ति कोर्ट में जाकर किसी भी YouTube चैनल को कोर्ट में घसीट देगा। ये हमें विश्वास है कि कोर्ट में न्याय ही मिलेगा, लेट अबेर, लेकिन शुरुआत में तो कोर्ट देखता है। स्थगित करता है। अंतरिम रोक लगाता है। यही कोर्ट में घसीटने वाले लोग चाहते हैं। यही प्रोसेस एक पनिशमेंट है। ताकि मानसिक और फ़ाइनेंशियल रूप से आदमी त्रस्त हो जाए। हमारे पीछे कंपनी नहीं है। कि कंपनी केस लड़ लेगी।
इसलिए ये केस मेरे चैनल ही नहीं। YouTube पर सही सूचनाएँ पहुँचाने के काम में लगे सब लोगों के लिए महत्वपूर्ण केस है। लेकिन मीडिया दूसरे पक्ष पर क्वेश्चन करने के बजाय हेडलाइनों के माध्यम से मेरी क्रेडिबिलिटी को गिराना चाहता है। वे ऐसा क्यों कर रहे हैं? वे दूसरे पक्ष से सवाल करने के बजाय भ्रामक हेडलाइनों से मुझे को लोगों की नज़र में गिराना चाहते हैं? इसका जवाब आप बेहतर जानते हैं। मीडिया की हेडलाइनों में छापा गया कि मैंने कोर्ट से कहा है कि मैं सोमवार तक वीडियो को प्राइवेट मोड पर डाल रहा हूँ।
जब कि सच ये है कि हम अपनी वीडियो के लिए लड़ रहे हैं न कि प्राइवेट करने के लिए कोर्ट में जाना मंज़ूर किया। लेकिन सामने वाले पक्ष की माँग थी की वीडियो पूरी तरह हटाई जाए। हमने कहा नहीं हटाएँगे। फिर सामने के पक्ष ने कोर्ट से माँग की कि वीडियो पर अस्थायी समय के लिए स्टे लगा दी जाए। लेकिन हमने पहली ही सुनवाई में इसका विरोध किया। दूसरी सुनवाई में अंतरिम राहत (इंटरिम रिलीफ़) पर बहस होनी थी। लेकिन ये सुनवाई अभी पूरी न हो सकी। इसपर अगले सोमवार को एकबार फिर बहस होनी है। सामने के पक्ष ने कोर्ट से माँग की कि जब तक अंतरिम राहत पर कोर्ट सुनवाई करके निर्णय न ले ले तब तक कम से कम वीडियो प्राइवेट मोड पर डाल दी जाए। सामने वाला पक्ष तर्क देता है कि उन्हें इस वीडियो से हर मिनट, सेकंड नुक़सान हो रहा है। सामने वाले पक्ष और कोर्ट की सलाह के कारण हमें वीडियो अगले दो दिन प्राइवेट करने के लिए मजबूर होना पड़ा। क्योंकि हम कोर्ट के एक एक शब्द को मानने के लिए बाध्य हैं। ये इच्छा नहीं थी बल्कि बाध्यता थी। लेकिन ये हैडलाइन बनी कि- “श्याम मीरा सिंह ने कहा वीडियो सोमवार तक प्राइवेट मोड पर डाल दूँगा।”
कोर्ट के मसले संवेदनशील होते हैं। काम्प्लेक्स होते हैं। हम केवल लड़ सकते हैं। न्याय देने का काम कोर्ट का है पर मीडिया की भ्रामक हेडलाइनों पर विश्वास न करिए। मैं समझौते के लिए वीडियो नहीं बनाता। उनसे इतना नहीं कमाता कि कोर्ट में लड़ सकूँ। पर लड़ूँगा। जब तक लड़ने की जगह होगी लड़ूँगा। अख़बारों में या वेबसाइटों की हेडलाइनों को ही सब कुछ न मान लें। बेहतर है पूरी खबर पढ़ें। आपको लग भी कैसे सकता है कि मैं किसी बाहरी दबाव और समझौते में आकर दब जाऊँगा। अगर अपने लैपटॉप, कैमरा, मोबाइल, बर्तन बेचकर भी ये क़ानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी, तब भी लड़ूँगा।
इससे पहले की पोस्ट.. कोर्ट में लंबी लड़ाई है। हर दिन हमारा हो ऐसा नहीं है। पर कोर्ट पर पूरा भरोसा है। लेट-अबेर सच की जीत होगी। जब तक क़ानूनी लड़ाई में हमारे लड़ने के लिए जगह बचेगी। हम लड़ेंगे। समझौता नहीं करेंगे।
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Sk
January 5, 2024 at 9:15 pm
बढ़िया है …एकदम झकास बलात्कारियों को रेले रहिए …जहां हमारी आवश्यकता हो बताइयेगा जरूर