विक्रम सिंह चौहान-
आखिर केरल के पत्रकार सिद्दीकी कप्पन को किस जुर्म की सजा दी जा रही है ? क्या एक मुसलमान पत्रकार नहीं हो सकता ? क्या एक मुसलमान पत्रकार देश के दूसरे राज्य में जाकर संवेदनशील मामलों की रिपोर्टिंग नहीं कर सकता ?
सिद्दीकी कप्पन हाथरस दलित किशोरी के साथ दुष्कर्म और उसके बाद उसकी हत्या की रिपोर्टिंग करने केरल से निकले थे कि योगी की पुलिस ने उन्हें और उनके तीन साथियों को पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) का सदस्य बता 5 अक्टूबर से जेल में रखा है।
जैसा कि देश में सभी मुसलमानों के साथ अभी हो रहा है सिद्दीकी कप्पन के साथ भी हुआ ,उन पर यूएपीए लगाया गया है। पत्रकार और तीन अन्य लोगों पर देशद्रोह, साम्प्रदायिक उन्माद भड़काकर दंगा कराने के प्रयास का मामला दर्ज किया गया है।
पहले पुलिस ने अदालत को बताया कि कप्पन और उनके साथी पीएफआई के सदस्य है, लेकिन एक सबूत जुटा पाए। फिर कहा पीएफआई से ये लोग दूसरी तरह से जुड़े हुए हैं। कमाल यह है कि इसका भी सबूत नहीं जुटा पाए। फिर भी न उच्च न्यायालय ने और न सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें जमानत दिया। इसी महीने सिद्दीकी कप्पन की न्यायिक हिरासत जिला अदालत ने 90 दिन के लिए बढ़ा दी है।
मतलब बेचारा मुफ्त में जेल में और सड़ेगा। वैसे भी धर्म इस्लाम और नाम में मुसलमान हो तो भारत के जेलों में आप सड़ने के लिए ही बने हैं। न सुप्रीम कोर्ट को इस बेगुनाह की फ़िक्र है और न देश में किसी और को।
सिद्दीकी कप्पन का मामला साफ बता रहा है मुसलमानों को दोयम दर्ज़े का नागरिक बनाने के लिए किसी सीएए की जरूरत नहीं है। वर्तमान व्यवस्था अभी से मुसलमानों को दोयम दर्ज़े का नागरिक बना चुकी है।