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उत्तर प्रदेश

ठंडा पड़ा सपा का सियासी घमासान, कई चेहरे हुए बेनकाब

अजय कुमार, लखनऊ
अंत भला, तो सब भला। समाजवादी पाटी में पिछले कुछ समय से अखिलेश बनाम ‘अन्य’ के बीच छिड़े घमासान की पटकथा का पटाक्षेप हो गया। अखिलेश यादव के खिलाफ मोर्चा खोले बाप-चचा को एक तरह से मुंह की खानी पड़ गई। अखिलेश पिछले कई दिनों से कुनबे की जंग में हारते हुए प्रतीत हो रहे थे,लेकिन इस हार में भी उनकी जीत छिपी हुई थी। इस बात का अहसास पाले लोंगो की संख्या भी कम नहीं थी। इसके पीछे की वजह थी,अखिलेश की स्वच्छ छवि और बाहुबली और भ्रष्टाचारी नेताओं के प्रति उनका सख्त रवैया।

<p><strong><span style="font-size: 10pt;">अजय कुमार, लखनऊ</span></strong><br />अंत भला, तो सब भला। समाजवादी पाटी में पिछले कुछ समय से अखिलेश बनाम ‘अन्य’ के बीच छिड़े घमासान की पटकथा का पटाक्षेप हो गया। अखिलेश यादव के खिलाफ मोर्चा खोले बाप-चचा को एक तरह से मुंह की खानी पड़ गई। अखिलेश पिछले कई दिनों से कुनबे की जंग में हारते हुए प्रतीत हो रहे थे,लेकिन इस हार में भी उनकी जीत छिपी हुई थी। इस बात का अहसास पाले लोंगो की संख्या भी कम नहीं थी। इसके पीछे की वजह थी,अखिलेश की स्वच्छ छवि और बाहुबली और भ्रष्टाचारी नेताओं के प्रति उनका सख्त रवैया।</p>

अजय कुमार, लखनऊ
अंत भला, तो सब भला। समाजवादी पाटी में पिछले कुछ समय से अखिलेश बनाम ‘अन्य’ के बीच छिड़े घमासान की पटकथा का पटाक्षेप हो गया। अखिलेश यादव के खिलाफ मोर्चा खोले बाप-चचा को एक तरह से मुंह की खानी पड़ गई। अखिलेश पिछले कई दिनों से कुनबे की जंग में हारते हुए प्रतीत हो रहे थे,लेकिन इस हार में भी उनकी जीत छिपी हुई थी। इस बात का अहसास पाले लोंगो की संख्या भी कम नहीं थी। इसके पीछे की वजह थी,अखिलेश की स्वच्छ छवि और बाहुबली और भ्रष्टाचारी नेताओं के प्रति उनका सख्त रवैया।

यह सच है चाहें भ्रष्टाचार का आरोप झेल रहे गायत्री प्रजापति आदि कुछ नेताओं को मंत्रिमंडल में वापस लेने का मामला रहा हो या फिर बाहुबली मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल का सपा में विलय की बात दोंनो ही मोर्चो पर जनता के बीच यही मैसेज गया कि यह सब अखिलेश की मर्जी के खिलाफ हो रहा है। इस बात का कहीं न कहीं अहसास नेताजी मुलायम सिंह यादव और सपा के प्रदेश अध्यक्ष तथा मंत्री शिवपाल यादव को भी था। बात यहीं तक सीमित नहीं थी। 2017 में अखिलेश की सीएम पद की दावेदारी के आसपास भी सपा का कोई अन्य नेता दिखाई नहीं दे रहा था। यूपी में कई सर्वे रिपोर्टो में भी इस समय अखिलेश यादव सीएम पद के सबसे लोकप्रिय चेहरा माने जा रहे हैं। यही वजह थी, कल तक सीएम का फैसला चुनाव बाद ,नवनिर्वाचित विधायकों और स्वयं के जरिये करने की बात करने वाले नेताजी को जैसे ही प्रोफेसर रामगोपाल यादव ने पत्र लिखकर आईना दिखाया तो उन्हें हकीकत समझने में देरी नहीं लगी।

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सपा में बैठकों का दौर शुरू हो गया। नेताजी ने अनुज शिवपाल के प्रभाव मंडल से निकल कर  जब अन्य लोंगो/नेताओं की भी बात सुनी तो उन्हें यह समझने में देर नहीं लगी कि वह हकीकत से काफी दूर चले गये थे। उन्हें अखिलेश को लेकर बरगलाया जा रहा था। इसके बाद ‘छोबी पाट’ में माहिर मुलायम ने पूरी बाजी ही पलट दी। शिवपाल यादव जो अखिलेश को, उनके भाग्य और विरासत को लेकर तांने मार रहे थे,वह भी यह कहने को मजबूर हो गये कि अगर सपा को बहुमत मिला तो सीएम अखिलेश यादव ही होंगे। प्रो0रामगोपाल के एक पत्र ने ऐसी खलबली मचाई की जो लोग अखिलेश की ‘छाया’ से बच रहे थे,वह उनके साथ ‘गोल मेज कांफ्रेस’ करने को मजबूर हो गये। 

बहरहाल, परिवार में अलग-थलग पड़े अखिलेश का बुरें वक्त में उन लोंगो ने भी साथ छोड़ दिया जो कल तक उनके सामने सांये की तरह मंडराते रहते थे। आजम खान जो तंज कसने में माहिर हैं की मौकापरस्ती मीडिया के एक सवाल ( 2017 के चुनाव में अखिलेश सीएम चेहरा होंगे) पर उस समय सामने आई जब वह अखिलेश का पक्ष लेने की बजाये यह कहने लगे वह तो सिर्फ साइकिल के चेहरे का जानते हैं।

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आजम ही नहीं, पिछले कुछ महीनों की समाजवादी जंग में और भी कई चेहरे बेनकाब होते देखे गये। अमर सिंह ने भी शिवपाल के साथ मिलकर अखिलेश के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था,जिसके बाद अखिलेश ने अमर सिंह को अंकल मानने से ही इंकार कर दिया था। नेता तो नेता ऐसे नौकरशाहों की भी अच्छी खासी संख्या सामने आ गई जो मुलायम की चरण वंदना के सहारे मलाई मारने की कोशिश करते दिखे। समाजवादी कुनबे पर मंडरा रहा खतरा कितना भयानक था, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि 05 नवबंर 2016 को रजत जयंती वर्ष मनाने जा रही समाजवादी पार्टी इस मौके पर आयोजित होने वाले जलसे से पूर्व ही बंटवारे के मुहाने पर खड़ी नजर आने लगी थी। यह स्थिति जनता की वजह से होती तो और बात थी,लेकिन यदुवंश के रखवाले ही  पार्टी के ‘विभीषण’ बन गये हैं।

चर्चा यहां तक छिड़ गई कि रजत जयंती कार्यकम के दिन (05 नवंबर 2016) से एक दिन पूर्व अखिलेश अपनी भावी सियासत को लेकर बड़ा धमाका कर सकते हैं। यह धमाका क्या होगा,इसको लेकर तरह-तरह के कयास भी लगाये जाने लगे थे। इस बात का अंदाजा नेताजी से लेकर शिवपाल यादव, राम गोपाल यादव और मोहम्मद आजम खान जैसे नेताओं के अलावा तमाम विधायकों और पार्टी उम्मीदवारों को भी था। इसी लिये सब भला बनने का नाटक करते हुए अपने-अपने हिसाब से पार्टी के संकट पर राजनैतिक रोटियां सेंकने में लगे हुए थे।

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भतीजे अखिलेश यादव के खिलाफ मोर्चा खोले शिवपाल ने तब तो हद ही कर दी जब अपने गृह जनपर इटावा में एक कार्यक्रम के दौरान अखिलेश का बिना नाम लिये, उन्होंने यहां तक कह दिय,’ कुछ लोगों को बैठे-बिठाए विरासत मिल जाती है और किसी को भाग्य से……। जो लोग समर्पण भाव से मेहनत करते हैं उनको कुछ भी नहीं मिलता।’ यह और बात थी कि जब शिवपाल को अपनी गलती का अहसास हुआ तो तुरंत उन्होंने अपने सुर बदल लिये और कहने लगे,‘ हमारा पूरा परिवार एक है और बहुमत में आने पर अखिलेश यादव का ही नाम सीएम के तौर पर प्रस्तावित किया जाएगा।’

मगर ऐसा कहते हुए शिवपाल के हावभाव यही दर्शा रहे थे कि मानों वह अखिलेश को खैरात में सीएम की कुर्सी देने की बात कर रहे थे। उक्त चिंगारी की आग ठंडी भी नहीं हो पाई थी और नेताजी का बयान आ गया,‘ सीएम का फैसला संसदीय बोर्ड और मैं करूंगा। मुलायम के इस बयान ने आग में घी डालने का काम किया। पानी सिर से ऊपर जाता देख मुलायम के चचेरे भाई रामगोपाल यादव ने अखिलेश यादव की तरफदारी में मुलायम सिंह को एक खत लिख कर उन्हें समाजवादी पार्टी के पतन के लिए जिम्मेदार ठहराया. इसके बाद मुलायम सिंह दिल्ली में रामगोपाल के घर पहुंचे जहां दोनों के बीच करीब तीन घंटे बात हुई और उसके बाद पूरे ड्रामे का पटाक्षेप हो गया। उम्मीद पर दुनिया कायम है और इसी उम्मीद के सहारे कहा जा सकता है कि संभवता सपा का सियासी ड्रामा थम गया होगा। सपा के लिये खुशी की बात यह है कि ‘ अंत भला तो सब भला ।’

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अब अखिलेश देर से ही सही, पूरे जोर-शोर और पूरी आजादी के साथ मैदान में उतरेंगे। वह जानते हैं कि सरकार का मुखिया होने के नाते स्वाभाविक रूप से उनके (अखिलेश यादव) काम की परीक्षा चुनाव में होनी है। इसका फायदा उन्हें इस लिये मिलना तय है। क्योंकि अपने पूरे कार्यकाल में युवा अखिलेश न केवल अपराधीकरण और भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त दिखे, बल्कि मुख्यमंत्री के तौर पर उनकी साफ-सुथरी छवि, जाति व धर्म की सियासत में विकास के मुद्दे पर खास ध्यान, युवाओं में मजबूत पकड़,आधुनिक, तरक्की पसंद जझारूपन के अलावा हाल में पार्टी व परिवार में उठे विवादों के बीच जिस तरह का स्टैंड अखिलेश ने लिया उससे आज जनता में उनकी छवि और निखरी। अब कोई उन्हें नौसुखिया, अनुभवहीन सीएम नहीं कह सकता है। उम्मीद है कि 05 नवंबर 2016 को पार्टी के रजत जयंती कार्यक्रम में पूरा कुनबा एक साथ एक मंच पर दिखाई पड़ेगा। वर्चस्व की इस जंग ने कई चेहरों को भी बेनकाब कर दिया जिनसे अखिलेश को भविष्य में बचकर रहना होगा।

प्रो0 रामगोपाल ने खत कुछ इस तरह लिखा था…

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आदरणीय नेताजी सादर चरण स्पर्श,

समाजवादी पार्टी को आपने बड़ी मेहनत से बनाया था. पार्टी चार बार सत्ता में भी पहुंची. पिछली बार किसी अन्य दल के समर्थन की आवश्यकता भी नहीं पड़ी. उत्तर प्रदेश की वर्तमान सरकार ने जो कार्य किए हैं वो पूरे देश के लिए पथ प्रदर्शक का कार्य कर रहे हैं। मुख्यमंत्री जी इस समय निर्विवाद रूप से प्रदेश के सबसे बड़े लोकप्रिय नेता हैं, लेकिन पिछले कुछ दिनों में जो कुछ हुआ उससे पार्टी का मतदाता निराश और हताश है. और अब तो उसमें नेतृत्व के प्रति आक्रोश भी उत्पन्न हो रहा है। लोगों को कष्ट ये है कि पहले नंबर पर चल रही पार्टी कुछ इन गिने चुने लोगों की गलत सलाह के चलते काफी पीछे चली गई है. ये जो आजकल आपको सलाह दे रहे हैं, जनता की निगाह में उनकी हैसियत शून्य हो गई है।

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पार्टी जिसे चाहे उसे टिकट दे, लेकिन जीतेगा वही जिसकी हैसियत होगी. और पार्टी तभी चुनाव जीतेगी जब पार्टी का चेहरा अखिलेश यादव होंगे. अगर आप चाहते हैं कि पार्टी फिर 100 से नीचे चली जाए तो आप चाहें जो फैसला लें, लेकिन एक बात याद रखें कि जो जनता आपकी पूजा करती है, समाजवादी पार्टी बनाने के लिए, वही जनता पार्टी के पतन के लिए आपको और केवल आपको दोषी ठहराएगी. इतिहास बहुत निष्ठुर होता है, ये किसी को बख्शता नहीं. 

सादर आपका,
रामगोपाल यादव
15 अक्टूबर, 2016

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लेखक अजय कुमार लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनसे संपर्क [email protected] या 9335566111 के जरिए किया जा सकता है.

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