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मध्य प्रदेश

नोटबंदी के साइड इफेक्ट : असंगठित क्षेत्र के मजदूर नगदी के अभाव में न गांव में काम पाएंगे, न शहर में पनाह

-अभय नेमा
इंदौर। नोटबंदी पर प्रधानमंत्री ने खुद जनता से 50 दिन की मोहलत मांगी है लेकिन आरबीआई दिन रात भी नोट छपाई करवाए तो भी अर्थतंत्र में करेंसी की कमी पूरी होने में छह से आठ महीने लग सकते हैं। ऐसे में भवन निर्माण, कृषि समेत इनसे जुड़े काम धंधे और व्यापार व्यवसाय बुरी तरह प्रभावित होंगे और खास तौर पर असंगठित क्षेत्रो में काम कर रहे मजदूर अपनी रोजी रोटी से हाथ धो बैठेंगे। ये ही लोग काम की तलाश में गांव ले शहर आते हैं लेकिन नकद के अभाव में न तो इनके पास गांवों में काम होगा न ही शहरों में इन्हें पनाह मिलेगी।

<p><strong>-अभय नेमा</strong><br />इंदौर। नोटबंदी पर प्रधानमंत्री ने खुद जनता से 50 दिन की मोहलत मांगी है लेकिन आरबीआई दिन रात भी नोट छपाई करवाए तो भी अर्थतंत्र में करेंसी की कमी पूरी होने में छह से आठ महीने लग सकते हैं। ऐसे में भवन निर्माण, कृषि समेत इनसे जुड़े काम धंधे और व्यापार व्यवसाय बुरी तरह प्रभावित होंगे और खास तौर पर असंगठित क्षेत्रो में काम कर रहे मजदूर अपनी रोजी रोटी से हाथ धो बैठेंगे। ये ही लोग काम की तलाश में गांव ले शहर आते हैं लेकिन नकद के अभाव में न तो इनके पास गांवों में काम होगा न ही शहरों में इन्हें पनाह मिलेगी। </p>

-अभय नेमा
इंदौर। नोटबंदी पर प्रधानमंत्री ने खुद जनता से 50 दिन की मोहलत मांगी है लेकिन आरबीआई दिन रात भी नोट छपाई करवाए तो भी अर्थतंत्र में करेंसी की कमी पूरी होने में छह से आठ महीने लग सकते हैं। ऐसे में भवन निर्माण, कृषि समेत इनसे जुड़े काम धंधे और व्यापार व्यवसाय बुरी तरह प्रभावित होंगे और खास तौर पर असंगठित क्षेत्रो में काम कर रहे मजदूर अपनी रोजी रोटी से हाथ धो बैठेंगे। ये ही लोग काम की तलाश में गांव ले शहर आते हैं लेकिन नकद के अभाव में न तो इनके पास गांवों में काम होगा न ही शहरों में इन्हें पनाह मिलेगी।

सामाजिक और आर्थिक मसलों पर अनुसंधान करने वाले जोशी-अधिकारी इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल स्टूडीज़ (दिल्ली) की  शोध विभाग की प्रमुख डॉ. जया मेहता ने यह बात प्रगतिशील लेखक संघ की ओर से हाल ही में आयोजित एक परिचर्चा में कही। डॉ. जया मेहता ने नोटबंदी की वैधता, गोपनीयता, सरकार द्वारा इस संकट के निपटने के बारे में किए जा रहे दावों पर भी सवाल उठाए।

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उन्होंने बताया कि देश में नोट छापने के छापेखानों की क्षमता 2200 करोड़ नोट प्रति वर्ष छापने की है। जबकि नोटबंदी के कारण 2300 करोड़ नोट बैंकों में वापस आए हैं। एेसे में नोट प्रेस में साल भर छपाई हो और दोगुनी रफ़्तार से भी हो और यह भी मानकर चला जाए कि इस बीच छोटे नोट यानी की 100, 50, 20 और 10 के नोट नहीं छपेंगे या कम छपेंगे तो भी बाजार में पूरे नोट वापस आने में 6 से 8 महीने लगेंगे।

यानी छह से आठ महीने तक बाजार में नकदी का संकट बना रहेगा और इसका सबसे बुरा असर भवन निर्माण क्षेत्र पर पड़ेगा। भवन निर्माण यानी कंस्ट्रक्शन में करीब साढ़े चार करोड़ मजदूरों को काम मिलता है। इसमें संगठित क्षेत्र में 1.4 करोड़ मजदूर और असंगठित क्षेत्र में 3 करोड़ मजदूर हैं। मुद्रा की कमी से ये लोग अपने रोजगार से हाथ धो बैठेंगे और इनसे संबंधित अन्य उद्योग, व्यापार, व्यवसाय भी प्रभावित होने लगेंगे। इसके असर की खबरें भी आने लगी हैं। सीमेंट और निर्माण कंपनी लार्सन एंड टूब्रो ने 14 हजार लोगों को हटा दिया है। भीलवाड़ा से लेकर दिल्ली तक की औद्योगिक इकाइयों में उत्पादन आधा रह गया है जिसके कारण मजदूरों को काम से हटाया जा रहा है।

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हमारी कृषि पर भी नोटबंदी की मार पड़ने वाली है। अभी खरीफ की बिक्री और रबी की बुवाई का समय है। किसानों को मुद्रा चाहिए लेकिन पहले तो नोटबंदी के नाम पर किसानों की सारी मुद्रा उनके बैंकों में रखवा ली और अब यह नियम लगा दिया है कि पुराने पांच और हजार के नोट से काॅपरेटिव से  बीज खरीद सकेंगे लेकिन अब किसानों के पास मुद्रा ही नहीं है तो वे कहां से बीज खरीदेंगे। कृषि क्षेत्र में 10 करोड़ मजदूर हैं। खेतिहर मज़दूर गांव से शहर भी आते हैं लेकिन शहरों में काम नहीं मिलने पर इन्हें वापस गांव जाना पड़ रहा है। गौर करने वाली बात यह है कि इन मजदूरों की आवाज और इनके दुख-तकलीफों की बात न तो कोई मीडिया, न सोशल मीडिया और न ही कोई अखबार करता है।  एेसे में यह पता भी नहीं चलेगा कि ये मजदूरों की पूरी जमात और उनके दुख तकलीफ कहां गुम हो जाएंगे।

डॉ. जया मेहता ने नोटबंदी के निर्णय की वैधता के बारे में सुप्रीम कोर्ट की वकील इंदिरा जयसिंह के हवाले से कहा कि रिजर्व बैंक की धारा 26 (2) में यह प्रावधान है कि आप नोटबंदी में कोई खास सीरीज को बंद कर सकते हैं लेकिन पूरे नोट ही बंद नहीं कर सकते हैं। सरकार ने पांच सौ और हजार के नोटों की पूरी की पूरी सीरीज ही बंद कर दी जो कि गलत है। इसके पहले जब दो बार नोटबंदी हुई तो ब्रिटिश सरकार ने और फिर मोरारजी देसाई ने अध्यादेश का सहारा लिया था। इस बार इस फैसले के लिए अध्यादेश का सहारा क्यों नहीं लिया गया। इस तरह एक बड़े फैसले को लेने में संसद की उपेक्षा की गई।

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उन्होंने कहा कि नोटबंदी का फैसला कतई गोपनीय नहीं था। यह फैसला रिजर्व बैंक बोर्ड के डायरेक्टर करते हैं जिन्हें एक महीने पहले इसकी सूचना देनी पड़ती है और बैठक का एजेंडा बताना पड़ता है। रिजर्व बैंक के बोर्ड़ में तीन डायरेक्टर निजी कंपनियों से जुड़े हैं और इन्हें नियमानुसार नोटबंदी के एजेंडा की जानकारी एक महीने पहले दे गई होगी। ऐसे में सरकार द्वारा इस मामले को गोपनीय रखने की बात गले से उतरती नहीं है। आरबीआई के डायरेक्टर डा. नचिकेता आईसीआईसीआई बैंक से जुड़े रहे हैं। डा. नटराजन टीसीएस टाटा कंसल्टेंसी सर्विस के एमडी और सीईओ रह चुके हैं। भरत नरोत्तम दोषी महिंद्रा एंड महिंद्रा लि, के सीईओ रह चुके हैं। वे गोदरेज से भी जुड़े रहे हैं। रिजर्व बैंक के नियमों के तहत मौद्रिक नीति संबंधी किसी भी निर्णय का फैसला रिजर्व बैंक का बोर्ड़ करता है और फिर केंद्र सरकार से इसे लागू करने के लिए कहता है। इस बोर्ड में कार्पोरेट से जुड़ी निजी कंपनियों के चार डायरेक्टर थे एेसे में सरकार का यह दावा करना कि इस निर्णय को पूरी तरह से गोपनीय रखा गया संदेह पैदा करता है।

8 नवंबर को नोटबंदी की घोषणा के बाद से ही सरकार रोज ही नई अधिसूचना ला रही है अब तक 10 अधिसूचनाएं आ चुकी हैं। सरकार ये नए नियम अपनी विवेक के आधार पर कर रही है जो यह कहता है कि पुराने नोट विमान में बैठने वालों को चलते रहेंगे, पेट्रोल पंपों पर चलते रहेंगे लेकिन कोआपरेटिव बैंक में नहीं चलेंगे। गौर करने वाली बात है कि सरकार यह कैसे तय कर रही है कि पुराने नोटों से विमान में यात्रा करने करने की छूट रहेगी लेकिन कोआपरेटिव में इन नोटों को बदलने की छूट नहीं रहेगीा। यह सब जानते हैं कि विमान में कौन सा वर्ग बैठता है और कोआपरेटिव बैंक पर में गरीब और किसान वर्ग के लोग निर्भर रहते हैं। इसी तरह से अब बिग बाजार से डेबिट कार्ड के जरिए दो हजार रुपए निकालने की छूट दे दी गई है। बिग बाजार ही क्यों सरकार ने चुना, यह भी सवाल है।

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परिचर्चा में महिला हितों की पैरवीकार कल्पना मेहता ने कहा कि नोटबंदी के कारण महिलाओं को अपनी छोटी-मोटी बचत से हाथ धोना पड़ा है। यह पैसा उनके पास रहता था जो आड़े वक्त में उनके काम आता था। परिचर्चा में प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव विनीत तिवारी, बैंक एंप्लाइज आफिसर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अालोक खरे,  प्रगतिशील लेखक संघ इंदौर के अध्यक्ष एसके दुबे, अशोक दुबे, राकेश सिंह,  अजय लागू, सुलभा लागू, मनोज मेहता व अभय नेमा ने भी भाग लिया।

Nema Abhay
[email protected]

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