देहरादून : राजभवन उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय,हरिद्वार के कुलपति प्रो महावीर अग्रवाल से संबधित जानकारियां उपलब्ध कराने में जिस तरह से लेट लटीफी कर रहा है उससे राजभवन सचिवालय की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने लगे हैं। बडा सवाल उभरकर यह आ रहा है कि राजभवन में आखिर वो सख्श कौन है जो कुलपति के शैक्षणिक अभिलेखों को अपीलकर्ता को उपलब्ध नहीं कराना चाहता है। यहां यह समझना जरूरी है कि राज्यपाल संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हैं और राजभवन सचिवालय से ही कुलपति की नियुक्ति की जाती है। फिर क्यों प्रो महावीर अग्रवाल के दस्तावेजों को उपलब्ध कराने के लिए उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलसचिव को बार बार लिख कर समय वर्बाद कराया जा रहा है। क्या राजभवन में कुलपति के दस्तावेज नहीं हैं या फिर अपनी गर्दन बचाने के लिए गेंद कुलसचिव के पाले में डाली जा रही है। इस पूरे प्रकरण में कुलपति प्रो महावीर अग्रवाल की चुप्पी संदेह को और भी गहरा रही हैं।
उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो महावीर अग्रवाल की उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्याल के कुलपति पद पर जनवरी 2013 में नियुथ्क्त की गई थी। हालांकि पैलन में प्रो पंकज चांदे का चयन कुलपति पद पर हुआ था, लेकिन उनके द्वारा ज्वाइन न करने पर प्रो महावीर अग्रवाल को कुलपति बनाया गया । मजेदार बात यह है कि प्रो अग्रवाल ने 2007 व 2010 में भी कुलपति पद के लिए आवेदन किया था लेकिन दो सामाजिक कार्यकर्ताओं की लिखित शिकायत के बाद प्रो अग्रवाल का कुलपति पद पर चयन नहीं हो पाया था। खुद राजभवन सचिवलाय ने सेचना अधिकार के तहत यह जानकारी उपलब्ध कराई थी। लेकिन जब इसी से संबधित जानकारी राजभवन सचिवालय से 27 फरवरी 2015 को मांगी गई तो राजभवन के सूचना अधिकारी ने इस प्रकार की किसी भी शिकायत होने से साफ इंकार कर दिया। इतना ही नहीं 27 फरवरी से आज तक अपीलकर्ता को कुलपति प्रो अग्रवाल की हाईस्कूल, इंटर व स्नातक की अंकतालिकाएं व प्रमाण पत्र सूचना अधिकार अधिनियम के अंतर्गत सूचना अधिकारी व अपीलीय अधिकारी ने सूचनाएं उपलब्ध नहीं कराई।
राजभवन सचिवालय व उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलसचिव के बीच ही सूचनाओं का आदान प्रदान हो रहा है। राजभवन सचिवालय के सूचना अधिकारी ने संस्कृत विवि हरिद्वार के सूचना अधिकारी को सभी सूचनाएं अपीलार्थी को उपलब्ध कराने का आदेश 7 मार्च 2015 को दिया था, लेकिन संस्कृत विवि सूचना अधिकारी व कुलसचिव ने अंकतालिकाओं के स्थान पर प्रो महावीर अग्रवाल का सात पृष्ठीय जीवन वृत अपीलकर्ता को उपलब्ध करा दिया है।
इसके बाद अपीलकर्ता ने प्रथम अपील राजभवन सचिवालय में की जिसकी सुनवाई 11 मई 2015 को हुई। इस बार भी राजभवन सचिवालय सूचना देने के बजाय उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय प्रशासन को ही आगे कर रहा है। सवाल यह है कि जब सूचनाएं राजभवन सचिवालय से मांगी जा रही हैं तो फिर क्यों राजभवन सचिवालय उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय हरिद्वार के कुलसचिव को निर्देश दे रहा है कि अपीलकर्ता को सूचनाएं दी जायं। क्या राजभवन में संस्कृत विवि हरिद्वार के कुलपति प्रो महावीर अग्रवाल के शैक्षणिक अभिलेख नहीं हैं या फिर राजभवन सचिवालय के आला अधिकारी अपनी गर्दन बचाने के लिए संस्कृत विपश्वविद्यालय के कुलसचिव को बलि का बकरा बना रहे हैं।
इस पूरे प्रकरण में राजभवन सचिवालय की कार्यशैली पर सवाल उठने के साथ ही कुलपति प्रो महावीर अग्रवाल का व्यक्तित्व भी दांव पर लगा है। अब देखना होगा कि गले की फांस बना यह प्रकरण क्या मोड़ लेता है।
आरटीआई कार्यकर्ता श्याम लाल से संपर्क : 9412961750