21 अप्रैल को गंगोत्री व यमुनोत्री धामों के कपाट खुलने के बाद केदारनाथ धाम के कपाट खुले तो पिछले दो वर्षों से यात्रा पर छाये संकट के बादल छंटने के संकेत दिख रहे हैं। 26 अपैल को श्री बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने के साथ चार धाम यात्रा पूरी तरह प्रारम्भ हो जायेगी। गंगोत्री व यमुनोत्री धामों में पहले दो दिनों में डेढ़-दो हजार यात्रियों की आवक अच्छे संकेत दे रही है। केदारनाथ धाम में भी अच्छी संख्या में यात्रियों का आना पिछले भय के कम होने के संकेत हैं। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की केदार नाथ यात्रा के राजनैतिक अर्थ भले ही हों लेकिन यात्रा को प्रचार मिला है। पिछले दो वर्षों में आपदा के चलते यात्रा जिस प्रकार प्रभावित हुई, उससे उत्तराखण्ड का आम जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ। ट्रांसपोर्ट या होटल-रेस्टोरेंन्ट, घोडा-खच्चर या पालकी के लोग सबकी रोजी रोटी संकट में थी। एक हिसाब से आपदा से निबटना और यात्रा को सुचारु करना कितनी बड़ी चुनौती थी। इसे आपदा के प्रभावितों और आपदा की विभिषिका से एकाकार हुए बिना नहीं समझा जा सकता था।
केदारघाटी पूरी तरह तबाह थी और बाबा शिव का धाम केदारपुरी स्वयं खतरे में। ये कहना कतई सही नहीं है कि केदार घाटी की आपदा से निबटा जा चुका है। सरकार का पूरा ध्यान केदारनाथ यात्रा प्रारम्भ करने का रहा, निःसंदेह यह स्वागत योग्य है। और उतना ही या उससे भी अधिक निम के प्राचार्य कर्नल अजय कोठियाल और उनके टीम का अभिनन्दन होना चाहिए जिन्होंने रात-दिन, माइनस 21 डिग्री सेल्सियर की ठंड में अपने जवानों का हौसला बढाते हुए केदारनाथ यात्रा का मार्ग प्रशस्त किया। इस आपदा से निबटने के लिए हमें कर्नल कोठियाल के रुप में मैट्रो गुरु इ श्रीधरन मिल गये हैं, जो अपने काम को तन्मयता से पूरा करते हैं और काम को ही धर्म मानते हैं। बाबा केदार को नमन करने के साथ कर्नल कोठियाल को सेल्यूट किया जाना चाहिए।
केदार घाटी की आपदा के साथ लगातार दो यात्रा सीजन का चैपट हो जाना आम उत्तराखण्डी की आर्थिकी को बरबाद कर गया था। मुख्यमंत्री हरीश रावत की किसी भी मूल्य पर केदार यात्रा प्रारम्भ करने का संकल्प रंग लाया है। यदि यात्रा सुचारु चलती है तो निश्चित रुप से केदार घाटी आपदा से बाहर आयेगी और वहीं कार्य व्यवहार पटरी पर आ पायेगा। समय लम्बा लगे लोग अपने पैरों पर खडे होंगे। यात्रा जल्दी प्रारम्भ होना इसलिये भी आवश्यक था कि दो-चार साल में यात्रियों का रुझान दूसरे तीर्थों की ओर होने की संभावना से इंकार नही किया जा सकता था। एक तीर्थ की ओर बढ़े कदम दूसरी बार भी उसी ओर जा सकते थे। फिर भय का जो वातावरण बन गया था, उसे जल्दी से जल्दी मिटाना भी आवश्यक था। जो निश्चित रुप से कर्नल कोठियाल के साथ सरकार ने वह कर दिखाया है।
यात्रा के साथ प्रारम्भ हुई राजनीति चारों धामों के पट खुलने के साथ समाप्त हो जाये, यही कामना की जानी चाहिए। क्योंकि उत्तराखण्ड के चारों धाम केवल कांग्रेस-भाजपा या उत्तराखण्डियों के नहीं हैं, देश से कोने-कोने से आने वाले उन श्रद्धालुओं के हैं जिनकी आस्था सदियों से उन्हें गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ, बदरीनाथ तक लाती है। कई श्रद्धालु तो जीवन भर पाई-पाई जोड चार धामों के दर्शन कर अपना जीवन धन्य मानने ही यहां आते हैं। सचमुच ये धाम उन्ही के हैं। सदियों से हम यात्रियों का स्वागत-सत्कार करने की महारत लिए हैं। देश के किसी भी कोने में जब हम स्वयं को बदरीनाथ निवासी कहते हैं तो लोगों की श्रद्धा के पात्र बनते हैं। हमारा दायित्व है कि हम उस परम्परा को न केवल जीवित रखें बल्कि और आगे ले जायें।
जून 13 की आपदा के समय जब समूचा मीडिया उत्तराखण्ड में हो रही लूट खसोट की खबरों से भरा पड़ा था और एक प्रकार से उस लूट-खसोट की खबरों में पहले निकलने की होड़ थी, गुजरात के बडोदरा से खबर आयी, वह सकून भरी थी। उत्तराखण्ड में उस खबर को अमर उजाला की तत्कालीन श्रीनगर ब्यूरोचीफ गंगा असनोडा थपलियाल ने प्रसारित किया, जिसमें बडोदरा के 50 से अधिक लोगों ने कहा कि त्रिजुगीनारायण के लोगों ने न केवल आपदा के समय तीन दिनों तक भोजन आवास की व्यवस्था की बल्कि बस में बैठने तक उनके साथ रहे। ग्राम वासियों ने उनसे पैसा लेने से इंकार करते हुए कहा था, जब आप अपने घर पहुंचें तो अपना कुशलक्षेम भेज दें, वही हमारी सेवा का मूल्य है।
बडोदरा के उन लोगों का संकट यह था कि घर पहुंचने के बाद वे त्रिजुगीनारायण के लोगों को अपनी कुशलक्षेम नहीं दे पा रहे थे क्योंकि घाटी में संचार सेवायें पूरी तरह ध्वस्त थीं। उस समाचार ने समाचारों की दिशा ही बदल दी और उत्तराखण्ड में सहयोग की सकारात्मक खबरें आने लगीं, लेकिन इसी पत्र ने आपदा की अच्छी रिपोर्टिंग में उक्त समाचार को शामिल करने के बावजूद गंगा असनोडा थपलियाल को सम्मानित नहीं किया। इस घटना का उल्लेख करना इसलिए समीचीन है कि उत्तराखण्ड के मीडिया को अधिक जिम्मेदारी के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना चाहिए।
चारधाम यात्रा प्रारम्भ कर अच्छी शुरुआत है लेकिन सरकार को फूलकर कुप्पा नहीं होना चाहिए। प्रदेश में न केवल चार धाम बल्कि सभी सड़कों की हालत बदतर हैं। यात्रा मार्ग और दूसरी जगहों पर चिकित्सक नहीं हैं। हम उत्तराखण्ड में भ्रष्टतम नौकरशाही के सहारे जीने को विवश हैं, जिसे राज्य का सबसे भ्रष्ट नौकरशाह कहा जा रहा है, वह टीवी स्क्रीन या अखबारों की हेडलाइन बना हुआ है। माइनस 21 डिग्री सेल्सियस तापमान पर अपना जीवन जोखिम में डालकर भी केदारनाथ धाम को यात्रा योग्य बनाने वाले जांबाजों का श्रेय भी खुद हड़पने को आतुर आततायियों से उत्तराखण्ड को सावधान होना चाहिए। निश्चित ही कई अधिकारी-कर्मी कर्नल कोठियाल न सही उनकी क्षमताओं के कुछ अंश लिए जरुर होंगे, सरकार को उन्हें अवसर देना चाहिए कि वे अपनी क्षमतायें दिखा सकें। भ्रष्टों से किनारा आवश्यक है।
एक बात और, विपक्ष को अपना दायित्व बखूबी निभाना चाहिए लेकिन भ्रष्ट नौकरशाहों के मुद्दे पर वह भी मौन है। चारधाम यात्रा उत्तराखण्डी आर्थिकी की लाइफ लाइन है। उसकी बेहतरी के सुझाव आयें और सरकार उन्हें माने भी। हमें समझना चाहिए कि यात्रा प्रारम्भ होने के साथ मानसून के लिए हमारी तैयारियां क्या हैं? सिरोबगड और लामबगड को साल के दस महीने भूलने का खमियाजा हमको बरसात में मिलता है। क्या ये भूल आने वाली बरसात में भी भारी नहीं पडेगी?
लेखक पुरुषोत्तम असनोरा उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार, उनसे संपर्क [email protected]