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उत्तराखंड

मलेथा में स्टोन क्रशरों के संचालन से पहाड़ों को खतरा

“मलेथा”- वीर शिरोमणि माधों सिंह भंडारी की कर्मस्थली जहाँ की गाथा इन दो पंक्तियों में गायी जाती है- ‘एक सिंह रण-वण, एक सिंग गाय का/ एक सिंग माधो सिंग और सिंग काहे का।’ किवदंती है कि अपने गॉव में जल की आपूर्ति के लिए आस्था के नाम पर अपने पुत्र की बलि वीर माधो सिंह भंडारी ने दी व आज तक इस गॉव के खेत हरियाली से लहराते रहे। पूरे राज्य में मलेथा की कृषि भूमि अपने आप में गाथा गाती रही है।

<p>“मलेथा”- वीर शिरोमणि माधों सिंह भंडारी की कर्मस्थली जहाँ की गाथा इन दो पंक्तियों में गायी जाती है- ‘एक सिंह रण-वण, एक सिंग गाय का/ एक सिंग माधो सिंग और सिंग काहे का।’ किवदंती है कि अपने गॉव में जल की आपूर्ति के लिए आस्था के नाम पर अपने पुत्र की बलि वीर माधो सिंह भंडारी ने दी व आज तक इस गॉव के खेत हरियाली से लहराते रहे। पूरे राज्य में मलेथा की कृषि भूमि अपने आप में गाथा गाती रही है।</p>

“मलेथा”- वीर शिरोमणि माधों सिंह भंडारी की कर्मस्थली जहाँ की गाथा इन दो पंक्तियों में गायी जाती है- ‘एक सिंह रण-वण, एक सिंग गाय का/ एक सिंग माधो सिंग और सिंग काहे का।’ किवदंती है कि अपने गॉव में जल की आपूर्ति के लिए आस्था के नाम पर अपने पुत्र की बलि वीर माधो सिंह भंडारी ने दी व आज तक इस गॉव के खेत हरियाली से लहराते रहे। पूरे राज्य में मलेथा की कृषि भूमि अपने आप में गाथा गाती रही है।

विगत एक महीने से इसी भूमि पर ग्रामीण पुनः माधो सिंह भंडारी को याद करते हुए ग्राम सभा में लग रहे स्टोन क्रशरों का विरोध करते हुए नजर आ रहे हैं। 9 वार्ड की जनता एक स्वर में हक़ हकूक की बात करते हुए अपने गॉव के ऊपर आने वाले संकटों के खिलाफ एकजुट हुई है। पहाड़ में किसी भी सामाजिक बदलाव में अहम भूमिका निभाने वाली मात्र शक्ति राष्ट्रीय राजमार्ग पर आन्दोलनरत है।
 
ग्राम सभा मलेथा में पांच स्टोन क्रेशर, दो वर्तमान में चलायमान व प्रस्तावित 3 स्टोन क्रशर सरकारी मानको को ताक पर रख कर कुछ पूंजीपतियों और कुछ राजनेताओं के हितों के लिए लगाए जा रहे हैं। पर्यावरण, स्वास्थय, जल, जंगल, वनस्पति, कृषि, पशु, इत्यादि के संरक्षण की जगह हानि पंहुचाने का जरिया बन गए है यह क्रशर उद्योग। क्रशरों के संचालन से जर्जर पहाड़ और कमजोर हो जाएंगे जिसके चलते बरसात के दौरन भूस्खलन के रूप आपदा आने  आशंका रहेगी। कुछ दिन पूर्व हिमालय दिवस के दिन राज्य की राजधानी में संकल्प लेने वाले सारे राजनेता आज इस उद्योग से हिमालय को पंहुचाने वाली क्षति पर मौन हैं।
  
वर्तमान में मोलाक तोक में चल रहे दो क्रशर के लिए के लिए ली गयी भूमि में लगभग 50 वृक्ष काट दिए गए जिसके लिए कोई अनुमति नहीं ली गयी और न ही वन विभाग द्वारा कोई कार्यवाही की गयी, जबकि कुछ समय पूर्व वन विभाग द्वारा एक ग्रामीण पर 30000 रूपए का जुर्माना पेड़ काटने  काटने के लिए लगाया गया। पूरे इलाके में 5 से ज्यादा क्रशरों से लगने के कारण जो वातावरण दूषित होगा वो यहाँ के वनस्पति को समाप्त करेगा ही साथ में पक्षियों के आवागमन पर रोक लगाएगा। 9000 नाली में फैले हुए हरे भरे खेत जो आज तक माधो सिंह भंडारी के वीर गाथा को गाते रहें हैं आज क्रशरों के कारण अपने अस्तित्व को खतरे में पाते देख रहें हैं। वायु प्रदूषण से कृषि में तो फर्क पड़ेगा ही साथ में ग्रामीणो को दूषित हवा लेने के लेने के लिए बाध्य होना पड़ेगा जिससे आम जन के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ेगा।

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चोपड़िया तोक में प्रस्तावित 2 स्टोन क्रशर जो निर्माणाधीन है नदी से 50 मीटर की दुरी पर है और आबादी से 30 मीटर की दूरी में, जिसके चलते ग्रामीणों को मजबूरीवश भविष्य में पलायन करना पड़ सकता है, 15 से 20 परिवार अभी से अपने आप को संकट में देख रहें हैं। गॉव का एक पानी का स्त्रोत जिस पर गर्मियों के दौरान पूरा गॉव आश्रित है वो क्रशर से महज 40 मीटर की दूरी पर है जिससे यह जल दूषित तो होगा ही साथ में श्रोत को ख़त्म भी कर देगा। ऐसे में जल संरक्षण को लेकर  सरकारी घोषणाएं व चिंतन मात्र एक दिखावा सा प्रतीत होता है।

क्रशर एक उधोग है और मलेथा में कहीं भी उधोग/ ओधोगिक क्षेत्र नहीं है ऐसे में उधोग गॉव की सीमा से दूर व कृषि भूमि या जंगल से दूर कहीं बंजर भूमि में लगाया जाना चाहिए था और साथ में जो भूमि अर्जित की है उसके आस पास के भू स्वामी से अनापत्ति संस्तुति लेनी आवश्यक थी। यह सारे प्रावधान मानो सिर्फ कागज़ तक ही सीमित है, मलेथा में न तो क्रेशर गॉव से दूर लगाया गया और न ही किसी प्रकार संस्तुति ली गई। सरकारी नियमों  अनुसार एक जिले में 7 क्रशरों की अनुमति है, मलेथा में अपने आप में 5 क्रशरों लगाए जाने तो पूरे जिले में अनुमान लगाया जा सकता है। टिहरी जिले में अलकनंदा, भागीरथी, भिलंगा व देवप्रयाग से गंगा के रूप में बड़ी नदियां बहती है जो ऐसे क्रशरों के लिए बहुत सहायक होती हैं।
 
ऐसी परिस्तिथि में जहाँ जनता के हितों को दर किनारे किया जा रहा हो, ग्रामीणों के नैसर्गिक रहन सहन को नष्ट किया जा रहा हो, सिर्फ उधोगपति या पूंजीपतियों के हितों की रक्षा को प्राथमिकता दी जा रही हो ऐसी स्तिथि में सरकारी तंत्र  सवाल उठना लाजमी है, राजनेताओं की निहित स्वार्थ का अंदेशा कतई गलत नहीं ठहरता। देखना यह है की क्या एक बार फिर वीरांगनाओं की भूमि में हो रहे संघर्ष इस तंत्र के जंजाल को तोड़ पायेगा या फिर वीर माधो सिंह भंडारी की सिर्फ अब गाथा ही गायी जायेगी।

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सेवा में,
      श्रीमान हरीश रावत जी,
      माननीय मुख्यमंत्री,
      उत्तराखंड सरकार।

विषय: मलेथा में लग रहे स्टोन क्रेशर के विषय हेतु

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महानुभाव,
           पत्र द्वारा आपका ध्यान मलेथा में लग रहे 5 स्टोन क्रेशर (3 प्रस्तावित) से होने वाले दुष्रभाव के बारे में जानकारी देने के साथ इस क्षेत्र के स्वरुप को सुरक्षित रखने हेतु अविलंब स्टोन क्रशरों का आवंटन रद्द कर मलेथा में राष्ट्रीय राजमार्ग पर आन्दोलनरत आंदोलनकारियों की मांग पूरी करें।

पर्यावरण, स्वास्थय, जल, जंगल, वनस्पति, कृषि, पशु, पशु चारा इत्यादि पर दुष्प्रभाव पड़ने की प्रबल संभावनाएं हैं। आपके संज्ञान में कुछ बिंदु जिसके तहत यह उधोग पूरे इलाके के जान-जीवन को प्रभावित करेगा निम्न प्रकार है:

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1. ग्राम सभा मलेथा में पांच स्टोन क्रेशर, दो वर्तमान में चलायमान व प्रस्तावित 3 स्टोन क्रशर है और एक हॉट मिक्स प्लांट है।
2. यह सारे उधोग गॉव से 30 मीटर की परीधि व कृषि भूमि में स्थित हैं।
3. इतनी अधिक संख्या में लग रहे स्टोन क्रेशरों से उत्पन्न होने वाले प्रदूषणों से यहाँ का पूरा वातावरण प्रदूषित होगा, जो अपनी क्षमता से कई गुना दुष्प्रभाव छोड़ेगा।
4. 9000 नाली में फैले हुए कृषि क्षेत्र अपनी नैसर्गिता खो देंगे, साथ में ग्रामीणो की आजीविका को कृषि पर आधारित है पर प्रहार होगा।
5. वातावरण दूषित होने के कारण आम जन के स्वास्थय पर भारी प्रभाव बढ़ेगा, स्वास-दमा जैसे जानलेवा बिमारी लोगों को अपना शिकार बना सकती है।
6. चोपड़िया में लग रहे स्टोन क्रेशर नदीवर्ती तट पर लगाये जा रहे हैं, जिससे अलकनंदा नदी (गंगा) का प्रदूषित होना संभव है।
7. चोपड़िया तोक में लग रहे स्टोन क्रेशर के समीप  प्राकृतिक जल श्रोत है, जिसपे पूरा गॉव गर्मिंयों में पीने के पानी के लिए आश्रित रहता है। इस स्टोन क्रेशर लगने से पानी तो दूषित होगा ही साथ में पानी का श्रोत भी विलुप्त हो जाएगा।
8.  सरकारी नियमों व मानवीय द्रिस्टीकोण के अनुसार स्टोन क्रेशर जैसे उधोग आबादी व कृषि भूमि से दूर लगाए जाने चाहिए थे जबकि सारे क्रेशर आबादी व कृषि भूमि के समीप लगाए गए हैं। चोपड़िया तोक में 15-20 परिवारों के घर मात्र 30 मीटर की दुरी पर है, क्रेशर लगने से इन परिवारो का रहना दुर्भर हो जाएगा और इनको पलायन या विस्थापन की शरण लेनी पड़ सकती है।
9.  मोलाक तोक में लगे २ स्टोन क्रेशर व एक हॉट मिक्स प्लांट से उत्पन्न होने वाले प्रदुषण से लगे हुए जंगल के वनस्पति नष्ट हो जाएगी जिसके कारण इस वन पर आश्रित ग्रामीण जो अपने पशुओं के लिए चारा लाया करते थे या पशुओं का चारा के श्रोत समाप्त हो जाएगा।
10.  इन उधोग के लिए ली गयी भूमि के आस पास के भू- स्वामियों से अनापत्ति भी नहीं ली गई है, जिससे कारण इन उधोग के दुष्प्रभाव इन ग्रामीणों को भुगतने पड़ सकते हैं।
11. मध्य हिमालय के पहाड़ जर्जर होने कारण इन क्रेशरों से पहाड़ और कमजोर होंगे, जिससे बरसात में भूस्खलन होने व आपदा के आने की संभावनाएं प्रबल है।

इन बिन्दुओं को संज्ञान में रखते हुए हम सरकार से से अपील करते हैं कि जहाँ सरकार हिमालय बचाने के लिए कई तरह के कार्यक्रम करने की बात कर  रही है वहीं मध्य हिमालय में स्टोन क्रेशरों पर मौन क्यों है। पर्यावरण, जल  संरक्षण, जन भावनाओ व जन हित मद्देनजर सरकार से निवेदन है कि उचित कार्यवाही कर स्टोन क्रेशरों पर रोक लगाएं।

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(कृष्ण नन्द मैठाणी)                      (समीर रतूड़ी)                    (जगदम्बा प्रसाद रतूड़ी)                 (अनिल स्वामी)   
(राजेंद्र तिवारी)                          (प्रभाकर गौड़)                      (पी.डी.डोभाल)                  (Dr. Arvind Darmoda)

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