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क्या सुधीर चौधरी ‘आजतक’ में वो सब एकतरफ़ा प्रलाप कर पाएँगे जो ‘ZEE न्यूज़’ में रहते करते थे?

प्रभात डबराल-

आज के समय की पत्रकारिता में शीर्ष स्तर पर काम कर रहे लोगों की उपयोगिता का आकलन उनकी कार्य कुशलता के अलावा भी अनेक अन्य पैमानों पर किया जाता है (वैसे ये स्थिति थोड़ा बहुत हमेशा से रही है).

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फिर भी अगर ये बहस किसी अन्य दिशा में घूम ना जाने की गारंटी हो (अर्थात् जान की अमान चाहूँ) तो सुधीर चौधरी प्रकरण पर कुछ कहना चाहता हूँ. मैं इस भाई को ठीक ठाक जानता हूँ.

इसमें शक नहीं कि जैसे भी बनी हो सुधीर की ज़बरदस्त फ़ैन फ़ालोइंग है- आजतक के किसी भी मौजूदा एंकर से ज़्यादा.

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हो सकता है इंस्टाग्राम में फ़ॉलोअर थोड़ा बहुत ऊपर नीचे हों लेकिन एक ख़ास क़िस्म के दर्शकों में सुधीर पूजे जाने वाली स्थिति में है. ऐसे दर्शकों में सरधाना की भी ज़बरदस्त फोलोईंग थी. सरधाना के असमय निधन के बाद ये भी सुधीर के पीछे खड़े हो गए थे.

टीवी न्यूज़ दर्शकों का एक वर्ग और है. NDTV टाइप. ये वो लोग हैं जो चीख चिल्लाहट और नफ़रती माहौल को उतना पसंद नहीं करते. ऐसे अंग्रेज़ीदाँ दर्शक कमोबेश NDTV के साथ हैं.

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लेकिन इस मानसिकता के हिंदी दर्शक NDTV हिंदी के साथ भी हों ऐसा नहीं है. NDTV हिंदी की अतिवादिता भी बहुतों को रास नहीं आती. इसलिए ऐसे दर्शक इधर उधर डोलते रहते हैं.

मुझे लगता है TV-९ को ऐसे ही दर्शकों ने चढ़ाया था. हिंदी हिंदू हिंदुस्तान की रटंत से अघाए काफ़ी सारे दर्शक TV-९, यानी यूक्रेन युद्ध की ओर मुड़ गए. मत भूलिए कि TV-९ के चढ़ाव का काल आजतक के पराभव का काल भी था. इस दौरान आजतक तीसरे और, अगर मैं सही याद कर पा रहा हूँ तो, एक बार चौथे नम्बर पर आ गया था.

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इसलिए आजतक को अपने सामान्य दर्शक (जो टीवी-९ को गए) तो वापस लेने ही हैं, सरधाना के निधन से हुई कट्टर भक्त -टाइप दर्शकों की क्षति भी पूरी करनी है.

TRP के नए आँकड़े बताते हैं कि कट्टर भक्त- टाइप दर्शक इंडिया टीवी की ओर जाने लगे हैं. ये आजतक के लिए अच्छी खबर नहीं हो सकती.

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इस बिंदु पर आजतक के लिए सुधीर चौधरी की उपयोगिता बढ़ जाती है.

हालाँकि कुछ सवाल हैं जिनका जवाब वक्त आने पर ही मिल पाएगा.

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क्या सुधीर चौधरी आजतक में वो सब एकतरफ़ा प्रलाप कर पाएँगे जो ZEE न्यूज़ में रहते करते थे?

क्या सुधीर चौधरी अपनी भक्त- टाइप छवि बदलने की कोशिश करेंगे- इसकी शुरुआत उन्होंने ZEE में ही कर दी थी. और अगर ऐसा हुआ तो क्या सुधीर की फ़ैन फालोइंग बरकरार रह पाएगी.

राजनीति प्रेरित पत्रकारिता के दो ध्रुव राजदीप सरदेसाई और सुधीर चौधरी का एक ही संस्थान में होना भी इस प्रकरण का एक कोण है जिसका क्या असर होगा अभी कुछ कहा नहीं जा सकता.

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जो भी हो, सुधीर चौधरी को लेकर आजतक ने बहुत बड़ा दांव खेला है. मुझे लगता है ये दांव उल्टा पड़ने की सम्भावना अधिक है.

पश्चिमी देशों में एंकर के प्रति दर्शकों की निष्ठा काफ़ी हद तक स्थापित है. दर्शक अपने पसंदीदा एंकर के साथ कमोबेश बने रहते हैं. क्या यहाँ भी ऐसा ही है…?

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1 Comment

1 Comment

  1. Aamir Kirmani

    July 19, 2022 at 1:55 pm

    ज़रूरी नहीं कि हर एंकर के विचार और उसकी मानसिकता उसके चैनल और पत्रकारिता में दिखाई दे। मसलन यदि किसी की विचारधारा भाजपाई है तो वह भाजपा के पक्ष में बोले और अगर उसकी कांग्रेसी या वामपंथी विचारधारा है, तो वह उस प्रकार की पत्रकारिता करेगा। लेकिन हर एंकर अपनी स्क्रिप्ट नहीं पढ़ता और न लिखता है। कभी-कभी उसे अपने मालिकान और चैनल के एजेंडे पर भी काम करना पड़ता है, फिर चाहे उसे मजबूरी में करना पड़ेगा फिर स्वेच्छा से।
    इसलिए यह ज़रूरी नहीं कि सुधीर चौधरी उसी तरह की पत्रकारिता और एंकरिंग करें, जिस तरह की वे ज़ी न्यूज़ में डीएनए कार्यक्रम में किया करते थे।

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