अविनाश पांडेय समर-
सुप्रीम कोर्ट फिर पलटी मार गया। शाहीन बाग आंदोलन की रिव्यू पेटीशन ख़ारिज करते हुए बोला कि आंदोलनकारियों के पास कभी भी कहीं भी विरोध का अधिकार नहीं है!
कमाल है कि पिछले महीने ही किसान आंदोलन पर एकदम उल्टी लाइन लेते हुए प्रदर्शन ख़त्म कराने से इंकार कर दिया था!
वह भी तब जब किसान बाहर से आये हैं, शाहीन बाग वाले दिल्ली के ही हैं।
माने चेहरा देख के फ़ैसला होगा अब?
वह भी बड़ी बेंच का फ़ैसला बदल के?
सर्वोच्च न्यायालय की 3 सदस्यीय खंड पीठ ने हिम्मत लाल शाह बनाम कमिश्नर दिल्ली पुलिस मामले (1973 AIR 87) में 5 सदस्यीय माने बड़ी- खंड पीठ के फैसले का अद्भुत पुनर्पाठ कर दिया था! उस फैसले में अदालत ने साफ़ कहा था कि ‘बेशक नागरिक जहाँ उनका मन करे ऐसी किसी भी जगह पर यूनियन बना के नहीं बैठ सकते- इसका यह मतलब भी नहीं है कि सरकार कानून बना कर सारे सार्वजनिक रास्तों पर शांतिपूर्ण ढंग से इकठ्ठा होने का अधिकार ख़त्म नहीं कर सकती.” (अनुवाद मेरा)
अब देखिये कि जस्टिस संजय किशन कौल के नेतृत्व में तीन सदस्यीय खंडपीठ ने इसका क्या पाठ कर डाला!
“हम ये बात पूरी तरह से साफ़ करना चाहते हैं कि सार्वजनिक रास्ते और जगहें इस तरह से और अनंतकाल के लिए कब्जा नहीं की जा सकतीं। लोकतंत्र और असहमति साथ साथ चलते हैं पर प्रदर्शन चिन्हित जगहों में ही होने चाहिए’ (अनुवाद मेरा।)
सबसे पहले तो 3 सदस्यीय खंडपीठ अपने से बड़ी 5 सदस्यीय खंडपीठ का फैसला बदल दे यह न्यायिक रूप से गलत है. फिर उसका पुनर्पाठ गलत करे यह और भी ज़्यादा! जो फैसला यह कह रहा है कि जनता कहीं भी प्रदर्शन नहीं कर सकती पर सरकार उसे हर सार्वजनिक जगह में प्रदर्शन करने से रोक भी नहीं सकती!