उत्तराखंड के श्रीनगर के प्रतिष्ठित थपलियाल परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है। वरिष्ठ पत्रकार डॉ. उमाशंकर थपलियाल और उनके पुत्र भवानी शंकर थपलियाल की हार्ट अटैक से मौत हो गई। घर से पिता-पुत्र की अर्थी एक साथ उठते देख पूरा शहर गमगीन हो गया। मंगलवार सुबह करीब साढ़े छह बजे रीजनल रिपोर्टर के संपादक भवानी शंकर (42) को सीने में दर्द की शिकायत हुई। वह स्वयं कार चलाकर पत्नी गंगा असनोड़ा थपलियाल के साथ बेस अस्पताल पहुंचे।
करीब आधे घंटे बाद इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई। बेटे का हाल-चाल पूछने जब डॉ. उमा शंकर थपलियाल (75) बेस अस्पताल पहुंचे तो बेटे की मौत की खबर सुनकर सदमे में चले गए। उन्हें आईसीयू में भर्ती कराया गया। करीब आधे घंटे के बाद उनकी भी मौत हो गई। भवानी शंकर थपलियाल की पत्नी गंगा असनोड़ा अमर उजाला के श्रीनगर कार्यालय की प्रभारी के तौर पर काम कर चुकी हैं। भवानी शंकर अपने पीछे एक पुत्र, एक पुत्री और पत्नी को छोड़ गए हैं। डॉ. उमाशंकर थपलियाल अपने पीछे एक बेटा, दो विवाहित बेटियां और पत्नी को छोड़ गए हैं।
पिता-पुत्र का अंतिम संस्कार पैतृक घाट अल्केश्वर में एक साथ किया गया। डॉ. उमा शंकर थपलियाल के छोटे पुत्र कालीशंकर थपलियाल ने पिता और बड़े भाई की चिता को मुखाग्नि दी। इस दौरान स्थानीय नागरिकों के साथ ही पौड़ी, रुद्रप्रयाग, टिहरी, चमोली जिले के अलावा कुमाऊं क्षेत्र के पत्रकार भी मौजूद थे। वरिष्ठ पत्रकार के निधन की सूचना मिलते ही उत्तराखंड के पत्रकार जगत में शोक की लहर दौड़ गई।
वरिष्ठ पत्रकार उमाशंकर थपलियाल और उनके पुत्र भवानी शंकर थपलियाल के असामयिक निधन पर मुख्यमंत्री हरीश रावत ने शोक जताते हुए इसे अपूरणीय क्षति बताया है। शिक्षा मंत्री मंत्री प्रसाद नैथानी, इंद्रभूषण बडोनी, नेता प्रतिपक्ष अजय भट्ट आदि ने भी शोक जताया है। देहरादून स्थित मीडिया सेंटर में आयोजित शोक सभा में दोनों को श्रद्धांजलि दी गई। इस दौरान संयुक्त निदेशक राजेश कुमार समेत कई वरिष्ठपत्रकार उपस्थित थे।
इन दो मौतों पर वरिष्ठ पत्रकार और रंगकर्मी Rajiv Nayan Bahuguna अपने फेसबुक वॉल पर लिखते हैं: ”मैं सच में पथरा गया. जैसे ही मुझे सुबह उमा काका और भवानी भुला के कूच करने की खबर मिली. फोन सुनते ही मैंने भवानी को काल लगा कर सूचना की पुष्टि करना चाहि. जब भवानी का नंबर डायल कर रहा था, तभी मुझे ध्यान आया कि मैं कर क्या रहा हूँ. जिसके निधन की सूचना है, उसी को फोन कर रहा हूँ. दरअसल श्रीनगर से सम्बंधित किसी भी मामले में मैं जिन लोगों से मशवरा लेता था, भवानी भी उनमे एक था. अभी हफ्ता भी नहीं बीता, कि मलेथा में एक कार्यक्रम में भवानी और मैं साथ थे. श्रीनगर तक मैंने उसी के साथ चलना पसंद किया. बीस मिनट के सफ़र में मैं खुद ही बोलता रहा. उसे मौक़ा नहीं दिया, ताकि वह अपनी पत्रिका में मेरे न लिखने को लेकर मुझे उलाहना न दे सके. भुला, और काका, मैं सच मच पथरा गया यार आज. ओ माय गॉड.”