मीना कोटवाल-
दो साल पहले जब The Mooknayak की शुरूआत की थी तो सोचा नहीं था कि इतने कम समय में द न्यूयार्क टाइम्स में इसके सफलता की दास्ताँ छपेगी. दुनिया के सबसे बड़े अख़बारों में से एक में हमारे संघर्ष की कहानी छपी है.
कैसे पुरुषवादी-जातिवादी इस समाज से हर कदम पर लड़कर मैंने द मूकनायक को खड़ा किया. जब तक़रीबन सभी लोगों ने नकार दिया, अपमानित किया, नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी तब वंचित-शोषितों के लिए आवाज़ उठाने का रास्ता चुना. बेटी को गोद में लेकर भारत के सुदूर इलाक़ों से दबे-कुचले लोगों की कहानियाँ दिखानी शुरू की. जिन तक सदियों से माइक नहीं पहुँचा था वहाँ ना सिर्फ़ हम पहुँचे बल्कि उनकी समस्याओं को दिखाया और कोशिश की कि उसकी एक छाप छुटे.
चाहे दिल्ली कैंट का मामला हो या फिर हाथरस का मामला, इंद्र मेघवाल की दर्दनाक ख़बर हो या फिर जितेंद्र मेघवाल का मामला हमने कोशिश की कि अपनी वेबसाइट और सोशल मीडिया के ज़रिए हर छोटी-बड़ी अपडेट अपने दर्शकों तक पहुँचाए. जब-जब हमें आर्थिक मदद की ज़रूरत पड़ी आप सब लोगों ने दिल खोलकर मदद और समर्थन किया.
दोस्तों, बीबीसी में जब जातिवाद की पीड़ा झेली तभी सोच लिया था कि हाशिए पर खड़े लोगों का अपना मीडिया हाउस होना चाहिए. जिस जातिवादी-पुरूषवादी मीडिया में आजतक दलित-आदिवासी संपादक नहीं बन पाए वहाँ हमारा टिके रहना और उच्च पद पर पहुँचना बहुत मुश्किल है, उनके मुद्दे समझना इससे भी ज़्यादा मुश्किल है. इन्हीं सब बाधाओं की वजह से द मूकनायक की शुरूआत की जो अब किसी परिचय का मोहताज नहीं है. शुक्रिया न्यूयॉर्क टाइम्स, शुक्रिया करन इस शानदार कहानी के लिए.
स्टोरी ये है-