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सुख-दुख

सुभाष मिश्र, शेष नारायण, ताविशी समेत तकरीबन एक सैकड़ा पत्रकार नहीं रहे

धीरेंद्र नाथ श्रीवास्तव-

  • उत्तर प्रदेश में कोरोना का कहर
  • सरकार केवल शोक व्यक्त करने को ही मान बैठी है दायित्व
  • जो जीवित हैं उनमें से भी अधिसंख्य मुफलिसी के शिकार

लखनऊ। जानलेवा कोरोना की दूसरी लहर ने एक माह के अंदर यूपी के तकरीबन एक सैकड़ा पत्रकारों को निगल लिया। इसे लेकर मीडिया जगत में शोक और भय का माहौल है।

प्राप्त सूचनाओं के मुताबिक कोरोना ने 8 मई को लखनऊ और कानपुर के वरिष्ठतम पत्रकारों में एक सुभाष मिश्रा को निगल लिया। एक दिन पहले दिल्ली तक की पत्रकारिता में विशिष्ठ स्थान रखने वाले लम्भुआ, सुल्तानपुर के भाई शेष नारायण सिंह को निगलने की सूचना आई थी। उससे पहले ताविशी श्रीवास्तव ( लखनऊ ) बचा लो- बचा लो की गुहार लगाते हुए चली गईं।

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कोरोना ने इससे पहले प्रमोद श्रीवास्तव ( लखनऊ ), विनय प्रकाश श्रीवास्तव (लखनऊ), पीपी सिन्हा (लखनऊ), केशव पाण्डेय (लखनऊ), मदन बहादुर सिंह (लखनऊ), प्रशांत सक्सेना (बरेली), पवन मिश्रा (लखनऊ), राशिद मास्टर साहब, हिमांशु जोशी (लखनऊ), अमृत मोहन (लखनऊ), निलांशु शुक्ला (लखनऊ), सच्चिदानंद गुप्ता सच्चे (लखनऊ), दुर्गा प्रसाद शुक्ला (लखनऊ), मोहम्मद वसीम (लखनऊ), हमजा रहमान (लखनऊ), रफीक (लखनऊ), अंकित शुक्ला (लखनऊ), चंदन प्रताप सिंह (लखनऊ), सलाउद्दीन शेख, मोहम्मद कलाम (लखनऊ), मोहम्मद वसीम (लखनऊ), रीता सिन्हा (लखनऊ), कैलाश नाथ विश्वकर्मा (लखनऊ), अजय शंकर तिवारी (गोरखपुर), मनोहर अंधारे, राशिद, डा. राम नरेश त्रिपाठी ( इलाहाबाद ), अरूण पाण्डेय, लोकेन्द्र सिंह, प्रशांत सक्सेना, गोपाल मिश्र (औरैया), रामेन्द्र सिंह (वाराणसी), रत्नाकर दीक्षित (वाराणसी), बद्री विशाल (वाराणसी), शंभूनाथ उपाध्याय (वाराणसी), विजय सिंह (वाराणसी), ओम प्रकाश जायसवाल, जुनैद अहमद, सतीश मिश्रा (कासगंज) दुष्यंत कुमार (मेरठ), मधुसूदन त्रिपाठी (लखनऊ), राशिद खान (मुज्जफरनगर), गोपी उर्फ जसविंदर (मुज्जफरनगर), दिनेश पाठक (अलीगढ़), प्रशांत सक्सेना (बरेली), गोविंद भारद्वाज (बदायूं), पकंज कुलश्रेष्ठ (आगरा), बृजेन्द्र पटेल (आगरा), अमित भारद्वाज (आगरा), विजय शर्मा (आगरा), अमी आधार (आगरा) औऱ विमल अवस्थी (कानपुर ) को हम लोगों से छीन लिया।

इस तरह के औऱ भी कलमकार है जो इस बीमारी की वजह से दम तोड़ चुके हैं, जिनकी सूचना युग जागरण के श्री अनिल त्रिपाठी जी को नहीं प्राप्त हो सकी है। कोई मित्र उन्हें 94 15186452 पर उन्हें सूचना दे सकता है।

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वैसे एक अनुमान के अनुसार यूपी के 75 जिलों में लगभग 100 से अधिक पत्रकार कोरोना की भेंट चढ़ चुके हैं।

जीवन की अंतिम सांस तक परहित जीने वालों इन पत्रकारों के परिजनों का क्या हाल है ? यह किसी को पता नहीं है। इन सभी मामलों में सरकार अभी तक केवल शोक व्यक्त करने को ही दायित्व मान बैठी है।

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वैसे जो पत्रकार जीवित हैं, उनमें से भी अधिसंख्य कोरोना की वजह से मुफलिसी की मार झेल रहे हैं। बहुतेरे की नौकरियां चली गई हैं। ऐसों की परेशानी किसी को रुला देने के लिए काफी है।

समाज में प्रतिष्ठित स्थान होने के कारण ये लोग किसी से अपना दुख भी बयां नहीं कर सकते। और, कहें किससे? सामने दूर दूर तक अब भी अंहकार प्रभावी है जबकि सूबे के मन्त्री और विधायक भी कोरोना की भेंट चढ़ चुके हैं।

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बहरहाल संतोष के लिए सरकार का प्रेस नोट जरूर हवा में है कि वैक्सीन लगवाने में मीडिया को प्राथमिकता दी जाएगी और मृत्यु पर पांच लाख रुपए की मदद।

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