पत्रकारिता एक ऐसा व्यवसाय है जिसे न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका के बाद चैथा महत्वपूर्ण स्तम्भ माना गया है। लेकिन आज स्थिति बिल्कुल इसके विपरीत हो गयी है। पत्रकारिता के क्षेत्र में व्यवसायिक स्पर्धा अपने मूल पेशे को भूल कर धन और पद अर्जन में लग गयी है और इसका जीता जागता प्रमाण स्वनाम धन्य पत्रकार श्री वेद प्रकाश वैदिक हैं। श्री वैदिक कभी डॉ. राममनोहर लोहिया पर थिसिस लिखा करते थे। और अपने को प्रखर समाजवादी प्रचारित करते थे और इसी प्रचार के बल पर जब पहली बार उत्तर प्रदेश में श्री मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने और अयोध्या का मंदिर-मस्जिद विवाद शुरू हुआ तो श्री वैदिक ने मुख्यमंत्री के विवेकाधीन कोष से 12 लाख रुपये लेने में जरा भी शर्म नहीं महसूस की जबकि यह कोष गरीबों, मजबूरों के लिए बनाया गया है।
पैसे की लिप्सा दिल्ली के कुछ स्वनामधन्य पत्रकारों में इतनी है कि उनके सामने देश की कीमत शून्य है। इसीलिए वैदिक जैसे लोग तथाकथित योग गुरु बाबा रामदेव के बहुत करीबी बन गये हैं और उनके काले धन को सफेद करने के लिए तरह तरह के हथकंडे अपनाने लगे। कभी यह तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. नरसिंह राव के बहुत करीबी हुआ करते थे लेकिन भाजपा सरकार आने के बाद अब यह प्रचार करने में उनको जरा भी संकोच नहीं है कि मोदी को प्रधानमंत्री बनवाने में उनका भी योगदान है।
श्री वैदिक ने हद तो तब कर दी जब पत्रकारिता का चोला उतारकर देश विरोधी कार्य करने में जुट गये और इसी कड़ी में उन्होंने यहां तक कह दिया कि कश्मीर को स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया जाये। यही नहीं पाकिस्तान के एक दिन के प्रवास पर जाने के बाद उनके साथ गये लोग तो वापस आ गये लेकिन वह भारत विरोधी दुर्दांत आतंकवादी हाफिज सईद से मिलने के लिए आईएसआई से संपर्क साधने में जुट गये और उसमें उन्हें सफलता भी मिल गयी। यह कितना घृणित और देशद्रोह का काम है कि जिसकी जितनी निंदा की जाये वह भी कम है।
आवश्यकता इस बात की है कि पत्रकारिता के भेष में छिपे ऐसे काले भेड़ियों को समाज से बाहर किया जाये और उनके ऊपर देशद्रोह का मुकदमा चलाया जाये ताकि भविष्य में कोई भी ऐसा अपराध न कर सके और देश की आजादी तथा सुरक्षा का खतरा न बन सके।
लेखक जगदीश नारायण शुक्ल दैनिक निष्पक्ष प्रतिदिन के संपादक हैं। प्रस्तुत लेख उनका संपादकीय है जो निष्पक्ष प्रतिदिन के गुरुवार संस्करण में प्रकाशित हो चुका है।