लखनऊ : साहित्य अकादमी सम्मान प्राप्त हिन्दी के क्रान्तिकारी कवि व पत्रकार वीरेन डंगवाल की कर्मस्थली बरेली में देश भर से साहित्यकार 20 व 21 फरवरी को जुटेंगे। वे वीरेन की कविताओं से लेकर उनके सृजन पर चर्चा करेंगे, व्यक्तित्व के विविध पहलुओं से रू ब रू होंगे तथा उनके साथ की यादों को साझा करेंगे। ‘स्मरण: वीरेन डंगवाल’ शीर्षक से जन संस्कृति मंच और वीरेन डंगवाल स्मृति आयोजन समिति, बरेली की ओर से आयोजित इस दो दिवसीय कार्यक्रम में कवि सम्मेलन का भी आयोजन किया गया है। यह जानकारी जन संस्कृति मंच के उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष कौशल किशोर तथा सचिव प्रेमशंकर सिंह की ओर से जारी विज्ञप्ति के माध्यम से दी गई।
यह दो दिवसीय कार्यक्रम बरेली कॉलेज के प्रेक्षागह में हागा जिसका उदघाटन 20 जनवरी को दिन के 1 बजे वीरेन डंगवाल के अनन्य मित्र व जाने माने कवि आलोक धन्वा करेंगे। उदघाटन सत्र की अध्यक्षता प्रसिद्ध आलोचक मैनेजर पाण्डेय द्वारा किया जायेगा। इस सत्र को आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी व कवि मंगलेश डबराल भी संबोधित करेंगे। उदघाटन के बाद ‘मानी पैदा करता जीवन’ शीर्षक से दूसरे सत्र की शुरुआत होगी। इसकी अध्यक्षता मंगलेश डबराल द्वारा किया जाएगा। पहले दिन शाम में ‘उजले दिन जरूर आयेंगे’ कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया है जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना करेंगे। 21 फरवरी को दूसरे दिन देा सत्रों में कार्यक्रम होगा। पहले सत्र का विषय है ‘हजार जुल्मों से सताये लोगों की उम्मीद और कविता’। इसकी अध्यक्षता कवि व आलोचक राजेन्द्र कुमार करेंगे। अन्तिम सत्र का विषय है ‘कविता और जगहें’। इसकी अध्यक्षता आलोचक रविभूषण करेंगे।
ज्ञात हो कि वीरेन डंगवाल का निधन पिछले साल 28 सितम्बर को बरेली में हुआ। कैंसर जैसी बीमारी से उन्होंने जिंदादिली और जिजीविषा के साथ लंबे समय तक संघर्ष किया। उनका जन्म 5 अगस्त 1947 को कीर्तिनगर, टिहरी गढ़वाल में हुआ था। ‘इस दुनिया में’, ‘दुष्चक्र में स्रष्टा’ तथा ‘स्याही ताल’ उनके प्रकाशित कविता संग्रह है। कुछ वर्ष पहले ‘कवि ने कहा’ शीर्षक के तहत भी उनकी कविताओं का एक चयन प्रकाशित हुआ था। उनके निधन के बाद अभी हाल में उनके पहले संग्रह ‘इस दुनिया में’ का दूसरा संस्करण नवारुण’ से छपकर आया है। वीरेन डंगवाल की कविताओं के अनुवाद बांग्ला, मराठी, पंजाबी, मलयालम व अंग्रेजी में भी प्रकाशित हुए हैं। वीरेन एक बेहतरीन अनुवादक भी थे। उन्होंने पाब्लो नेरूदा, नाजिम हिकमत, ब्रेख्त सरीखे महान क्रान्तिकारी कवियों की रचनाओं का अनुवाद किया था।
वीरेन डंगवाल जन संस्कृति मंच के संस्थपकों में थे। निधन के समय वे इसके राष्ट्रीय उपाध्यक्ष थे। उनकी दुनिया जहां अपनों के प्रति अतिशय प्रेम व अपनेपन की मिठास से भरी रही है और जिसमें ‘इतने भोले न बन जाना साथी’ के रूप में हिदायत भी है, वहीं भीषण व घने अंधेरे तथा शोषक व लुटेरी ‘काली’ ताकतों’ की साफ पहचान है, उनके प्रति तीव्र घृणा व नफरत का भाव है। वीरेन का रचना संसार व व्यक्तित्व इसी संघर्ष और ‘आएंगे उजले दिन जरूर आएंगे’ परिवर्तन के आशावाद के बीच सृजित हुआ। इसी से वह ताकत मिली जिसके बूते वे योद्धा की तरह कैंसर जैसी बीमारी से अन्तिम संास तक लड़ते रहे, उसे हावी नहीं होने दिया। वैसे तो समाज के कैंसर से सारी जिन्दगी उनका संघर्ष जारी रहा। अपनी मशहूर कविता ‘हमारा समाज’ में इसे वे यूं बयां करते हैं ‘हमने यह कैसा समाज रच डाला है/इसमें जो दमक रहा, वह शर्तिया काला है/कालेपन की वे सन्तानें/हैं बिछा रही जिन काली इच्छाओं की बिसात/वे अपने कालेपन से हमको घेर रहीं/काला जादू है हम पर फेर रही/बोलो तो, कुछ करना है/या काला शरबत पीते पीते मरना है ?’
कौशल किशोर
अध्यक्ष
जन संस्कृति मंच, उत्तर प्रदेश
मो – 8400208031