Vinayak Vijeta : अब मैं खुद को शर्मिन्दा महसूस कर रहा हूं. जिस पत्रकार की पिटाई के कारण मीडिया थी उद्वेलित, वह पत्रकार सुनील केसरी भामाशाह सम्मान पाने में था व्यस्त. बीते 12 जुलाई को उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के सुरक्षाकर्मियों द्वारा दो पत्रकार छायाकार राहुल और सुनील कुमार केसरी से बदसलूकी और हाथापाई की घटना की आंतरिक सच्चाई मैं नहीं जान पाया था क्योंकि कुछ पारिवारिक कारणों से मैं काफी दिनों से पटना से बाहर था।
रविवार को श्रमजीवी पत्रकार यूनियन के अपने पुराने साथियों के बुलावे पर मैं आज उनके मनोबल को बढ़ाने के लिए गया। एक पत्रकार के धर्म के नाते उनके आज के मार्च में शामिल हो गया। पर अब से थोड़ी देर पहले मुझे मिली दो तस्वीरों ने विचलित कर दिया। मैं खुद को काफी शर्मिन्दा महसूस कर रहा हूं। सनद रहे कि पत्रकार प्रकरण में दो पत्रकारों के साथ बदसलूकी हुई थी।
सुर्खियों में आए इस मामले के चित्र और विजुवल में जिस पत्रकार के साथ सबसे ज्यादा बदसलूकी दिखाई दे रही है उसका नाम सुनील कुमार केसरी है। इस मामले को लेकर पूरे बिहार के पत्रकार उद्वेलित हैं। बिहार श्रमजीवी पत्रकार यूनियन ने भी बदसलूकी के खिलाफ रविवार को राजभवन मार्च किया जिसमें मैं भी शामिल हुआ। पर इस घटना के सबसे ज्यादा पीड़ित सुनील केसरी इस राजभवन मार्च में शामिल नहीं हुआ।
एक तस्वीर मुझे मिली है तो मुझे खुद को पत्रकार कहने में भी शर्मिन्दगी महसूस हो रही है। जिस सुनील केसरी के लिए पटना के पत्रकार राजभवन मार्च पर यूनियन कार्यालय (विद्यापति मार्ग) से निकले वह सुनील केसरी इस मार्च में शामिल होने के बजाए कुछ ही फर्लांग की दूरी पर स्थित विद्यापति भवन में आयोजित वैश्य महासम्मेलन में खुद को सम्मानित किए जाने और भामाशाह अवार्ड पाने के इंतजार में बैठा था जबकि पत्रकारों का राजभवन मार्च इसी रास्ते गुजर रहा था।
अब आप मित्र बताएं कि ऐसे समय में इस पत्रकार को पहले अपने आत्म सम्मान, उसके कारण बिहार के उद्वेलित पत्रकारों के सम्मान के बारे में सोचना चाहिए था या उस कागज के सम्मान के लिए जो उसे वैश्य सम्मेलन में प्रदान किया गया। मैं अपने सभी वरीय अनुभवी पत्रकार बंधुओं समेत सभी पत्रकार संगठनों से यह गुजारिश करुंगा कि आइंदा ऐसे मामलों में कुछ सोच-विचार कर ही कदम उठाएं ताकि हम आगे से उपहास का पात्र नहीं बन सकें।
पटना के वरिष्ठ पत्रकार विनायक विजेता की एफबी वॉल से.