सहारा के मीडियाकर्मी भुखमरी के दौर से गुजर रहे हैं। उन्हें समय पर वेतन नहीं मिल रहा है और मिल भी रहा है तो स्लैब बनाकर मिल रहा है। एक अनुमान के मुताबिक सहारा को मीडिया कर्मचारियों का लगभग 100 करोड़ की देनदारी है यानी बैकलाग बढ़ता जा रहा है। ऐसे में राष्ट्रीय सहारा अखबार की एक यूनिट का एक अधिकारी आउटसोर्स पर एक युवती को ले आया। युवती को अखबारी ज्ञान नहीं है। अधिकारी इस युवती पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान है।
बताया जाता है कि अधिकारी उस युवती को अपने बाद सारे अधिकार देना चाहता है। इसलिए वहां अक्सर टकराव होता है। यह अधिकारी रिपोर्टिंग के एक चीफ से, एकाउंट प्रभारी से और विज्ञापन प्रभारी से भिड़ चुका है। कारण यही है कि अधिकारी चाहता है कि इस युवती को काम सिखाया जाए। सूत्रों का कहना है कि जब युवती को काम ही नहीं आता तो उसे रखा ही क्यों गया? सहारा में पहले ही स्टाफ की भारी कमी है। अधिकांश लोग वेतन न मिलने और अनियमित वेतन की वजह से नौकरी छोड़ चुके हैं।
जो कर्मचारी काम कर रहे हैं उन पर काम का बोझ बढ़ गया है। ऐसे में कोई भी इस युवती को काम सिखाने के लिए तैयार नहीं है, लेकिन अधिकारी चाहता है युवती को हर हाल में काम सिखाया जाए। अखबार के सूत्रों का कहना है कि युवती से यह लगाव समझ से परे है। इस यूनिट में कई अन्य को भी आउटसोर्सिंग से भर्ती किया गया है लेकिन वे अपने काम में पारंगत हैं तो ऐसे में युवती को किसलिए बिना अनुभव के नियुक्ति दी गई है?
कुमार कल्पित
November 28, 2018 at 7:44 pm
यह कोई नयी बात नहीं है। इससे पहले भी इसी तरह के लोगों को महत्व मिलता रहा है। इसके पूर्व संपादकीय विभाग में कार्यरत एक महिला कर्मचारी ने तो दो- दो संपादकों की नाक में दम कर रखा था। पहले वाले संपादक तो तबादला होने पर उसे अपनी गाड़ी से ज्वाइनिंग स्थल पर ले गए तो दूसरे वाले के केबिन में उक्त महिला ने जमकर उत्पात मचाया। उनके मुंह पर अखबार का बंडल दे मारा। अब रही इस अधिकारी की बात तो चर्चा है कि ये महाशय संस्थान के वित्तीय संकट के बाद भी अपने साथ दौरे पर ले गए। सूत्रों का कहना है कि इस दौरे पर इन दोनों के अलावा कोई और नहीं था। बात खुलने पर इन महाशय ने दलील दी कि, विज्ञापन में सहयोग के लिए टूर पर ले गए थे। बताते चलें कि इसी अधिकारी ने बैकडोर से इसकी संस्थान में इंट्री ही नहीं कराई बल्कि ब्यूरो चीफ वाला केबिन में स्थापित करा दिया।
sundra pinu
November 30, 2018 at 5:29 am
हकीकत यह है कि इस समय राष्ट्रीय सहारा का कोई माई-बाप नहीं है। कुछ चमचे जो सहलाने में माहिर हैं उनको यूनिट मैनेजेर बना दिया। जैसे इस खबर में जिस अधिकारी की बात कही गयी है वो चमचो का भी चमचा है। सूत्रों से पता चला है कि यह अधिकारी अपने आप को यूनिट में सहाराश्री और अपनी चेली को भाभी जी समझता है। और चेली किसी भी डिमार्टमेंट हेड हो या कोई अन्य अधिकारी सब से बत्तमीजी से बात करती है। और किसी कर्मचारी द्वारा विरोध करने पर यह चमचा इतना चिड़ जाता है कि कर्मचारियों से गाली-गलौच करने लगता है। ट्रांसफर की, निकाल देने की धमकी देता है। उपस्थिति रजिस्टर निकलवाकर उसे आॅफिशियल मुद्दा बनाने की कोशिश करता है। सूत्रों से पता चला किसी कर्मचारी पर हाथ भी उठाने की कोशिश की थीं। सहारा के दफतरों में पहले भी ऐसा माहौल कई बार हुआ था। परन्तु तब माई-बाप सतर्क थे।